ये एक चलन है कि पाखंडपूर्ण सरकारें जो सत्ता में रहकर राजनीतिक गुनाह करते हैं। सत्ता से हटते ही स्वतः उसकी आलोचना करना शुरू कर देते हैं और सत्ता के इस खेल में आम आदमी पिस कर रह जाता है। महंगाई जो सुरसा की तरह मुंह फाड़े हुए है उसका मुंह लगातार फैलता ही जा रहा है। ‘बहुत हुई महंगाई की मार’ का नारा देने वाली सरकार भी इस महंगाई रोकने में नाकाम साबित हो रही है। इस आपदाकाल में जहां लोग बेरोजगारी और भुखमरी से जूझ रहे हैं। वहाँ महंगाई की मार का बोझ उठा पाना आम आदमी के लिए बहुत मुश्किल हो रहा है।
पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी करके और आम आदमी की रोजमर्रा की जरूरतों की चीजें भी परिवहन लागत बढ़ने से महंगी होती जा रही है। कोरोना की मार से अधमरा हुआ आदमी बेरोजगारी और महंगाई दोनों की मार झेल रहा है। छह महीने से रसोई गैस के दाम बढ़ते ही जा रहे हैं। साथ ही गैस की सब्सिडी खत्म कर दी गई है। खाने के तेल कीमत ₹200 से ऊपर हो गई है। डीजल पेट्रोल की कीमतों में भी लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसे में आम आदमी की जेब का और रसोई का बजट बिगड़ता जा रहा है। इस महामारी का प्रभाव लोगों के काम धंधे पर भी बहुत पड़ रहा है। लोन की किश्ते, स्कूल की फीस, डॉक्टर की फीस और अन्य खर्चे उठा पाने में लोग अक्षम हो रहे हैं। ऐसे में निराश व्यक्ति आत्महत्या की ओर कदम बढ़ा रहा है।
एक जानकारी के आधार पर रीना कार के पति की मृत्यु हो गई। रीना को समझ में नहीं आ रहा कि वह घर कैसे चलाएं। लड़की की इंजीनियरिंग की फीस भरने को पैसे नहीं है। घर में ए सी है लेकिन लाइट बिल बढ़ जाने की वजह से वह इसे चलाती नहीं। खाद्य पदार्थ महंगी होने के कारण खाना भी एक वक्त ही बनाती है। अभी कुछ समय पहले खबर आई थी कि उस बत्तीस साल के बेरोजगार राकेश दास ने नोएडा के एक होटल में नाइट्रोजन गैस सूंघकर आत्महत्या कर ली। सुसाइड नोट में उसने लिखा है नौकरी जाने के बाद वह कर्ज में डूब गया। पांच लाख से ज्यादा का कर्ज हो जाने के कारण और नौकरी ना होने की वजह से वह आत्महत्या कर रहा है। इससे इतर गरीबों की हालत भी कुछ कम खराब नहीं है। एक मजदूर राकेश्वर ने अपने बच्चों का स्कूल से नाम इसलिए कटवा दिया कि जब खाने के लिए पैसे नहीं है तो स्कूल की फीस कहां से भरेंगे।
कोरोना की तीसरी लहर अभी बाकी है मगर महंगाई और बेरोजगारी आम आदमी की पहले ही कमर तोड़ दे रही है। हालात इतने बदतर होते जा रहे हैं यदि सरकार ने महंगाई पर लगाम और रोजगार के अवसर नहीं तलाश नहीं किये तो तो आम आदमी की जिंदगी बहुत कठिन हो जाएगी। काम धंधा ठप होने की वजह से मजदूरों को दिहाड़ी नहीं मिल पा रही है। वह अपने शहर में पलायन करके भी खाली बैठे हुए हैं। राजनीतिक स्वार्थ ना साधकर बल्कि जनता के हितों को ध्यान में रखकर योजनाएं शुरू करने के साथ.साथ उस पर अमल भी किया जाए तभी इन परेशानियों से बाहर आया जा सकता है।
मंहगाई की मार से बेहाल आदमी
प्रियंका वरमा माहेश्वरी
(गुजरात)