रायबरेली, पवन कुमार गुप्ता। क्या आपने सुना है कि बिना ईंधन के ठंडे या गरम पानी में डालते ही चावल पककर तैयार जो जाता है। आश्चर्य जनक बात है किन्तु सत्य है। सुनने में यह बात असंभव सी लगती है किन्तु यह सच्चाई है। इस सच्चाई से रूबरू होना है तो उत्तर प्रदेश के ऊंचाहार ब्लाक के गांव बरसवां में आना होगा। यहां पर दुर्लभ प्रजाति का यह धान गांव के उन्नतशील किसान राम गोपाल सिंह तैयार कर रहे है।
पूरे भारत में चावल बहुत चांव से खाया जाता है जिसमे पश्चिम बंगाल में चावल के बिना तो भोजन ही व्यर्थ माना जाता है। भारत में चावल की विभिन्न प्रजातियां है किन्तु आज एक ऐसे चावल के बारे में यहां चर्चा होगी जिसे सुनकर हर कोई दंग रह जाएगा। इस चावल के विशेष गुणों के कारण लोग इसे जादुई चावल या चमत्कारित चावल भी कहते है। वैसे कृषि विज्ञान में इसे बोका प्रजाति के नाम से भी जाना जाता है।
ऊंचाहार के बरसवा गांव निवासी राम गोपाल सिंह इस जादुई चावल के धान के पौधे लगाए हुए हैं।करीब आधा एकड़ भूमि पर इस जादुई धान की फसल लहलहा रही है। इस चावल में कार्बोहाइड्रेट के साथ प्रोटीन की प्रचुर मात्रा है।इसलिए इसे मधुमेह रोगी भी खा सकते है। इसके पेड़ की लंबाई करीब एक मीटर है। यह फसल करीब 150 दिन में तैयार हो जाती है ।
यहां और भी है दुर्लभ फसलें
बरसवा गांव के राम गोपाल सिंह विगत चार वर्षो से बड़ी दुर्लभ प्रजाति की विभिन्न फसलों की खेती करते है। जो औषधीय व पोषक तत्वों से भरपूर है। उन्होंने इससे पूर्व अपने खेतों में पंजाब नाबी का काला गेहूं,मणिपुर का चाकहाऊ काला चावल और स्कॉटलैंड का काला आलू की खेती कर चुके है। जिसके लिए उनको कृषि विभाग से कई बार सम्मान भी मिल चुका है। इस बार उन्होंने एक दुर्लभ प्रजाति के चावल की फसल तैयार की है। जिसकी चर्चा पूरे क्षेत्र में है और यह उत्तर प्रदेश में कृषि के क्षेत्र में अपने आपमें एक नायाब प्रयास भी है।
जादुई चावल का है ऐतिहासिक महत्व
ऊंचाहार के बरसवा गांव में तैयार हो रहे इस जादुई चावल(बोका) का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। यह चावल की नई प्रजाति नहीं है। हां बल्कि सदियों पहले विलुप्त हुई फसल की इस प्रजाति को पुनर्जीवित किया जा रहा है। कृषि वैज्ञानिक व इतिहासकार बताते है कि यह चावल मुगलकालीन है।आज से करीब ढाई सौ वर्ष पूर्व 17 वीं शताब्दी में इस चावल का प्रयोग किया जाता था। उस समय मुगल सेना से लडने वाले अहोम सैनिकों का यह मुख्य आहार था।युद्ध के दौरान इस चावल को अहोम सैनिक अपने साथ ले जाते थे।
जादुई चावल को मिल चुका है जी आई टैग
विशिष्ट प्रकार के इस जादुई चावल बोका को भारत सरकार ने जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग (जी आई)भी दिया है। यह टैग उस वस्तु में मिलता है जो देश में विशिष्ट होती है। यह टैग वस्तु को कानूनी अधिकार देता है।
असम के बाद उत्तर प्रदेश में शुरू हुआ है उत्पादन
बोका चावल की प्रजाति विलुप्त होने के बाद कुछ वर्ष पहले असम के किसानों ने इसका पुनः उत्पादन शुरू किया है। लंबे समय की यह फसल को कुछ चुनिंदा किसान ही कृषि विशेषज्ञों के साथ मिलकर असम में पैदा कर रहे है। उसके बाद अब यह फसल उत्तर प्रदेश के ऊंचाहार में तैयार हो रही है। इस फसल की नर्सरी के लिए बीज भी असम से ही मंगवाए गए है। किसान राम गोपाल सिंह बताते है कि यहां का वातावरण इस विशेष किस्म की फसल के लिए अच्छा है।इसलिए उम्मीद की जाती है कि आधा एकड़ भूमि में करीब पांच से छह कुंतल धान की पैदावार होगी।