इतिहास में बहुत तारीखे हैं जिन्हे हम भूल नहीं पाएंगे,उन्ही में से एक हैं ये भी।अपने देश में १९८७ से पहले से ये युद्ध का पर्याय कहों या छोटा गैर सैनिक युद्ध कहो किंतु हो रहा हैं बार बार एक समय के अंतराल पर,जिसमे निर्दोष जानें जा रही हैं।पंजाब में भी कोई न कोई बहाना बनाकर अशांति फैलाने की कोशिश की जा रही हैं।पहले १३ दिसंबर २००१ के दिन हुआ संसद पर हमला हुआ जो लोकशाही का मंदिर हैं जहाँ की पवित्रता का हनन किया गया था। जिसमे २४ लोगों की जानें गई और १८ लोग घायल हुए।वहां पर एक घायल सैनिक ने भी अपनी आपबीती बताई थी जो दिल को छू लेने वाली थी। ये हमलें की जिम्मेवारी जैशे मोहम्मद और लश्करे तोइबा जैसे आतंकवादी संगठनों ने ली थी ।२६ नवम्बर २००८ के दिन लश्करे तोइबा के चरम पंथियों ने मुंबई की कई प्रतिष्ठित जगहों पर हमलें किए थे, जिसमें लियोपोल्ड कैफे और होटल ताज,छत्रपति शिवाजी टर्मिनस जहां बहुत सारे यात्री मौजूद थे ।होटल ओबेरॉय में भी हमला हुआ, कामा अस्पताल के बाहर भी एक पुलिस वान को अगुवा कर अस्पताल में घुसे जिसमे हुई गोलीबारी में आतंकवाद निरोधक दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे और अशोक कामटे मारे गए।नरीमन हाउस पर भी हमला कर बहुत सारे बंधक बनाया था।जहां मदद करने के लिए साथ वाली बिल्डिंग में कमांडोज को हेलीकॉप्टर से उतरना पड़ा था।और सबसे बड़ा हमला होटल ताज पर हुआ जो १०५ साल पुरानी हैं,जिसके गुम्बद में लगी भयावह आग आज भी लोगों को याद हैं।जब हमला हुआ तो लोग खाना खा रहे थे और अंधाधुंध गोलियां चलने लगी और अफरातफरी हो गई। ३१ लोग मारे गए और सुरक्षा कर्मचारियों ने ४ हमलावरों को मार दिया था। तुकाराम ओमले को ४० गोलियां लगी थी फिर भी उन्होंने एके ४७ लिए हुए महम्मद कसाब जिंदा पकड़ा भागने नहीं दिया।तुकाराम इसी कारण उन्हें हमेशा याद किए जायेंगे। उनको खुद को बहुत सारी गोलियां लगी होने के बावजूद उसे छोड़ा नहीं था।ऐसा क्यों हो रहा हैं बार बार हमारे साथ? कश्मीर में भी ये इतने सालों से हो रहा हैं।जिसमे बेकसूर लोगों को मारा जाता हैं और उनसे लड़ने में हमारे कई जवान शहीद हो गए हैं। इसके अलावा देश के कई हिस्सों में आयेदिन ऐसे हमले होते रहे हैं।१९४७ से शुरू हुई प्रॉक्सी वार हैं जो कश्मीर में कबालियों के भेष में उनके सैनिकों ने हमला कर दिया और आधा कश्मीर पाकिस्तान के कब्जे में चला गया।ऐसा क्यों हो रहा हैं ये समझने वाली बात हैं।पड़ोसी देश से आए आतंकी तो हमेशा ही आतंक फैला हत्याएं करने को तैयार बैठे हैं लेकिन हमारी सुरक्षा व्यवस्था की और से लिए गए कदमों से कई ऐसे आतंकियों को पहले ही गिरफ्तार कर लिया जाता हैं लेकिन कुछ वारदातें फिर भी हो जाती हैं जिसमे बेगुनाह लोग और अपने सुरक्षादल के सिपाही भी मारे जाते हैं।क्या अपने सुरक्षा कर्मचारियों की कीमत पर उनको मार गिराना ठीक हैं क्या? १० के बराबर भी १ सैनिक नहीं हैं,१०० आतंकवादियों को मार कर भी एक सैनिक को खोना हमे पहुंचता नहीं हैं। ये बहुत महंगा व्यवहार हैं।क्यों हमने १९४७ में,२००१ में ,२००८ में सभी हमलों के बाद हमने उन्हें क्यों न सख्त कदम उठा के पाठ पढ़ाया गया?
क्या हमे सौ सुनार की और एक लुहार की वाली नीति को अपना कर उनके पर बड़ा वार करदेना चाहिएं? आज तक हम टहनियां और पत्तों को मार रहें थे उनकी जड़ों को उखाड़ फेंकना बाकी हैं अभी।कब होगा ये तो पता नहीं लेकिन जब तक आतंक की जड़े जमी पड़ी हैं तब तक आतंक का उत्पाद होता ही रहेगा।क्या उन जड़ों पर वार करने से ही आतंकवाद का खात्मा होगा ये बात सौ फीसदी तय हैं।कश्मीर भी आतंकित रहेगा और देश के दूसरे हिस्सों में भी आतंकी हमले होते रहेंगे।
जयश्री बिरमी
अहमदाबाद