आज के युग में प्रत्येक देश, समाज एवं वर्ग विकसित होना चाहता है। जब पुरुष वर्ग की चाह है कि वह क्षेत्र में नये नये आयाम प्राप्त करे तो विकास की इस दौड़ में महिलाएं पीछे क्यों रहें? यह प्रश्न अर्थहीन कतई नहीं है। इसी नजरिये से देखा जाये तो लड़कियों के विवाह की उम्र का प्रश्न भी केवल संतुलित सामाजिक व्यवस्था तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह उनके स्वास्थ्य, सोंच, सुरक्षा, विकास से भी जुड़ा है। अतएव नारी वर्ग को अपने जीवन स्तर को ऊंचाई तक ही नहीं ले जाना है बल्कि उन्हें एक ऐसा उदाहरण पेश करना है जिसकी उपयोगिता सदैव बनी रहे। बदलते दौर में नारी वर्ग ने सुंदर कपड़े पहनना, सुन्दर व आकर्षक दिखना, सुंदर घर सजाना तक ही सीमित नहीं रखा है बल्कि ज्ञान-विज्ञान की उच्चकोटि की बातें करना भलीभांति सीख लिया है। लेकिन अब नारी वर्ग को अपने पैरों पर खड़े होकर स्वयं को निर्मित करते हुए समाज एवं राष्ट्र के विकास में भी योगदान देना है। और इस उद्देश्य में एक बड़ी बाधा मानी जाती है कच्ची उम्र में विवाह के बंधन में बंध जाना। लेकिन अब इस बाधा से मुक्ति मिलने का एक नया अध्याय शुरू करते हुए एक अच्छी पहल की गई है और वहल है वैवाहिक बन्धन में बंधने हेतु 21 वर्ष की न्यूनतम उम्र का नियत किया जाना।
हालांकि नया कानून के बन जाने पर भी नारी वर्ग परम्पराओं एवं बंधनों से मुक्त हो जायेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं दी जा सकती है। क्योंकि आज भी देश एवं दुनिया में नारी वर्ग के सम्मान एवं अधिकार के लिये बने कानूनों की धज्जियां उड़ते हुए बखूबी देखी जाती हैं। वहीं समाज का एक बड़ा तबका आज भी नारी वर्ग को दोयम दर्जा का ही मानता है। उनकी सोंच है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियां जल्दी परिपक्व हो जाती हैं, इसलिए दुल्हन को दूल्हे से कम उम्र की होना चाहिए। यह भी कहा जाता है कि पति के उम्र में बड़े होने पर पत्नी को उसकी बात मानने पर उसके सम्मान को ठेस नहीं पहुंचती है। लेकिन समय-समय पर लड़कियों की शादी की उम्र पर पुनर्विचार करने की जरूरत बताई जाती रही हैं। अतीत पर नजर डालें तो वर्ष 1929 के बाद शारदा एक्ट में संशोधन करते हुए 1978 में महिलाओं के विवाह की आयु सीमा बढ़ाकर 15 से 18 साल की गई थी। शायद यह भी सवालों के घेरे में आ चुकी थी क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मातृत्व मृत्यु दर गर्भावस्था पर उसके संक्रमित कारणों के चलते हर वर्ष लगभग एक लाख महिलाओं की मातृत्व के कारण मौत हो जाती है। मातृत्व मृत्यु दर का एक बड़ा कारण कम उम्र में शादियां होना ही है।
इसलिये लड़कियों की उम्र बढ़ाने पर व्यापक स्तर पर चर्चा होती रही है और आवश्यकता के अनुसार समय-समय पर परिवर्तन भी किये जा रहे हैं। भारत के अलावा अन्य देशों की बात करें तो चीन में शादी की न्यूनतम उम्र पुरुषों के लिए 22 साल नियत है और महिलाओं के लिए 20 साल। पाकिस्तान सहित कई अन्य मुस्लिम देशों में पुरुषों के लिए शादी की उम्र 18 साल और महिलाओं के लिए 16 साल है। ईरान में लड़कियों के विवाह के लिए न्यूनतम आयु 13 साल नियत है लेकिन अदालत और लड़की के पिता की अनुमति हो तो 9 वर्ष में भी लड़कियों की शादी कर दी जाती है। इराक में लड़कियों की शादी की उम्र 18 वर्ष नियत है लेकिन अगर लड़की के मां-बाप की इच्छा हो तो शादी 15 वर्ष की उम्र में भी हो सकती है। ऐसे में यह कतई नहीं नकारा जा सकता है कि कम उम्र में शादी होने व फिर मातृत्व की ओर बढ़ने में अनेक खतरे हैं और लड़कियों की शादी की उम्र में विचार करने की व्यापक स्तर पर आवश्यकता है। महिला मृत्यु दर में कमी लाना और पोषण के स्तरों में व्यापक सुधार लाना जरूरी है। वहीं मां बनने वाली लड़की की उम्र से जुड़े पूरे मुद्दे को संवेदनशील नजरिये के साथ देखना भी जरूरी है। भारत में लड़कियों की शादी की उम्र 21 वर्ष नियत किये जाने की पहल स्वागत योग्य है।