आधुनिक युग में युवाओं को पुराने जमाने के मनोरंजन के साधन रंगमंच, नाटक, नाट्यशाला से मिली प्रेरणा और मूल्यों को रेखांकित कर जागरूकता कराना ज़रूरी- एड किशन भावनानी
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर हर साल 27 मार्च को विश्व रंगमंच (थिएटर) दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष 27 मार्च 2022 को भी 60 वां विश्व रंगमंच दिवस मनाया जा रहा है जिसकी स्थापना 1961में इसे इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यूट (आईटीआई) नें स्थापित किया गया था जो अभी तक सांस्कृतिक क्षेत्र में नाटक, रंगमंच क्षेत्र में भव्यता से मनाया जाता है क्योंकि इसमें हमारी पौराणिक परंपराओं और मनोरंजन की खुशबू छिपी है जो आज के मनोरंजन साधनों में विलुप्त होने के कगार पर है। रंगमंच के हर नाटक से दर्शक एक प्रेरणा, एक संदेश लेकर जाते थे और अपने जीवन में उसे अपना कर जीवन उस अनुरूप ढालकर खुशियां बटोरते थे। जीवन गुलजार होकर सुखों की सुगंध बिखेरता था जो आज के आधुनिक युग में मनोरंजन के साधनों में बहुत कम दिखाई देता है।
साथियों बात अगर हम नाटक को रंगमंच, नौटंकीयों नाट्य शालाओं की के वर्तमान में प्रचलन की करें तो हमने आजकल के आंदोलनों में बड़े शहरों में देखे होंगे कि वहां अपनी बातें, मांगे, विरोध को रास्तों, चौराहों पर नाटकों के द्वारा युवाओं द्वारा नाटक प्रस्तुतकर बात को सरकार,शासन प्रशासन तक पहुंचाने की कोशिश की जाती है बस!!! यही बात आधुनिक युग में युवाओं को समझाने के लिए जागरूक कराना है कि पुराने जमाने ने इन्हीं नाटक और रंगमंचों के माध्यम से संपूर्ण मानव समाज को मनोरंजन, नाटक, रंगमंच के माध्यम से प्रेरणा, सीख दी जाती थी कि कैसे कुरीतियों, ग़लत प्रथाओं, गलत कार्यों भावों को छोड़ जीवन को साफ सुथरा, अच्छा, योग्य शैली में ढालें और जीवन को सफल बनाएं।
साथियों बात अगर हम भारत में रंगमंच के इतिहास की करें तो, भारत में रंगमंच का इतिहास बहुत पुराना है। ऋग्वेद में सबसे पहले रंगमंच और नाट्यशाला का उल्लेख मिलता है, ऋग्वेद के सूत्रों में कुछ नर्तकी जैसे यम और यमी, उर्वशी, पुरुरवी का उल्लेख मिलता है। नाटक, नौटंकी या थियट जो जी चाहे कह सकते है। पुराने समय में मनोरंजन के साधन में नाटक और नौटंकी हुआ करता था, थियटर बहुत कम था। अगर भारत की बात करें तो सिनेमा नहीं होता था। मनोरंजन का एक मात्र साधन थियटर था। इसी के महत्व के प्रति जागरूक करने के लिए विश्व रंगमंच दिवस मनाया जाता है। हमारे पूर्वजों से लेकर आज तक थियटरों का बोलबाला है परंतु बदलते समय के साथ भारत में भी रंगमंच का चलन कम हो गया है।
साथियों बात अगर हम विश्व रंगमंच दिवस के लक्ष्यों की करें तो, दुनिया भर में सभी रूपों में रंगमंच को बढ़ावा देना,लोगों को रंगमंच के सभी रूपों के महत्त्व से अवगत कराना, थिएटर समुदायों के काम को व्यापक स्तर पर बढ़ावा देना ताकि सरकारें और वैचारिक नेता रंगमंच के सभी रूपों में नृत्य के महत्व से अवगत हों और इसका सहयोग करें, स्वयं के लिए सभी रूपों में रंगमंच का आनंद लेने के लिए,रंगमंच के आनंद को दूसरों के साथ साझा करना, अगर हम गहराई से रेखांकन करें तो आज भी सामाजिक मुद्दों पर नुक्कड़ नाटक, रंगमंच पर नाटक काफी प्रचलन में हैं।साथियों बात अगर हम विश्व रंगमंच दिवस पर हर साल एक नई थीम के पालन की करें तो 2022 में रंगमंच और शांति की संस्कृति यह थीम रखी गई है पिछले 59 वर्षों में हर वर्ष नई थीम रखी जाती है और उसपर चलने की कोशिश की जाती है यह दिन उन लोगों के लिए एक उत्सव के बराबर है जो कला रूपी थिएटर के मूल्य और महत्व को समझते हैं। परंतु यह चिंतनीय बात है कि वर्तमान आधुनिक युग में शासन-प्रशासन इससे जुड़े व्यक्तित्व का अभी आर्थिक विकास के लिए व्यक्तिगत क्षमता का एहसास नहीं करा सके हैं इसीलिए एक जागरूकता आंदोलन की सहायता से दुनिया भर के कला रूपों के महत्व को उजागर करने के लिए कला रूपों के मूल्यों के महत्व से लोगों को अवगत कराने के लिए विश्व रंगमंच दिवस 27 मार्च को मनाने का विशेष उद्देश्य है।साथियों बात अगर हम नए और पुराने जमाने की फिल्मों की करें तो, आज भारत में भी साइंस फिक्शन पर बनी मूवीस की भरमार है साथ ही कई फिल्में विश्व स्तरपर भारत को गौरवान्वित कर रही है, तो वहीं 1957 में मदर इंडिया, 1988 में सलाम बोम्बे और 2001 में लगान फिल्म ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुई थी।भारत और दुनियाभर में फैले कोरोना वायरस संकट के दौरान फिल्मजगत और थिएटर से जुड़े लोगों ने भी इस महामारी से निपटने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
साथियों बात अगर हम विश्व रंगमंच दिवस संदेश की करें तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अनुसार, 1962 में पहला विश्व थिएटर दिवस संदेश जीन कोक्टयू द्वारा लिखा गया था। साल 2002 में यह संदेश भारत के सबसे प्रसिद्ध थिअटर पर्सनैलिटी गिरीश कर्नाड ने दिया। कला की ये ऐसी विधा है जिसने समय के साथ खुद को काफी बदला और हमेशा ही समाज का मनोरंजन करने के साथ ही उसे शिक्षित करने का काम भी किया है। डिजिटल युग में इसे समाज में अपना वह स्थान नहीं मिल पा रहा है।
प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार व नाटककार भारतेन्दु हरिश्चंद्र के नाटकों एवं मंडली द्वारा देशप्रेम और नवजागरण फैलाने का अहम कार्य किया गया, जिसे कई कला प्रेमी आज भी आगे ले जा रहे हैं। भारतेन्दुजी की कृति ‘अंधेर नगरी’, मोहन राकेश का ‘आषाढ़ का एक दिन’ और धर्मवीर भारती का ‘अंधायुग’ जैसे नाटकों का मंचन आज भी श्रेष्ठ माना जाता है। भारत में नाटकों की शुरुआत नील दर्पण, चाकर दर्पण, गायकवाड और गजानंद एंड द प्रिंस नाटकों के साथ हुई थी।अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि विश्व रंगमंच (थिएटर) दिवस 27 मार्च 2022 को मनाया जा रहा है।यह दुनिया एक रंगमंच है और सभी स्त्री-पुरुष सिर्फ़ इसके पात्र हैं।आधुनिक युग में युवाओं को पुराने ज़माने के मनोरंजन के साधन रंगमंच नाटक नाटयशाला से मिली प्रेरणा और मूल्यों को रेखांकित कर जागरूक करना ज़रूरी है।
[ लेखक, विशेषज्ञ स्तंभकार] एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्