कानपुर, अर्पण कश्यप। जिसे आज समाज भूल चुका है, जिसे आज के बच्चे पहचानते भी नहीं हैं, उस विरांगना को याद कर श्रृद्धांजलि देते हुए बिगत दिनों अखिल भारतवर्षीय गोंड महासभा ने एक कार्यक्रम आयोजित किया। भारतीय इतिहास में महारानी दुर्गावती का नाम बहुत ही सम्मान के लिया जाता है। 5 अक्टूबर 1524 को महोबा में जन्मी दुर्गावती बचपन से ही बहुत साहसी थी। उन्हें बचपन से ही शिकार खेलने का शौक था, उनके पराक्रम की कहानियाॅ दूर दूर तक फैली हुई थी। दुर्गावती ने युद्ध भूमि में अपने पुत्र को अपने सामने दुश्मनों के हाथों मरते देखने के बावजूद अपनी लड़ाई जारी रखी थी और स्वयं लड़ते लड़ते हुए 24जून 1564 को वीरगति को प्राप्त हो गयी थीं।
दुर्गावती का गोंड समाज बिगत 10 सालों से लगातार बलिदान दिवस लोक गीत व भजन संगीत गाकर प्रसाद वितरण कर मनाता आ रहा है। इसी क्रम में वीर दुर्गावती का 453वाॅ बलिदान दिवस यशोदा नगर स्थित एक गेस्ट हाउस में मनाया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता गिरीश कुमार ने की। इस मौके पर सुंगीराम गोंड, छंगूर राम गोंड, राजू, शिवानन्द, रामशंकर, अवधेश, सुरेन्द्र, शिवमूर्ति, रामबाबू, सहित अन्य लोग मौजूद रहे।