सोशल साइट्स पर अनेक जघन्य अपराधों के ऐसे-ऐसे मामले बढ़-चढ़ कर प्रकाश में आ रहे हैं, उससे यही लगने लगा है कि आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोग पूरी तरह से बेखौफ होने लगे हैं। उन्हें किसी का जान या परिवार से कोई मतलब नहीं रहा है। उन्हें किसी की जान ले लेने से कतई संकोच नहीं रहा है। अनेक मामले प्रकाश में आ चुके है कि किसी को सबक सिखाने में उसकी जान चली गई। सबक सिखाने का यह तरीका तो कतई उचित नहीं हो सकता कि कानून के हवाले ना कर उसे जान से ही मार डाला जाए। क्या हमारे समाज से मानवीय तकाजा खत्म होता जा रहा है? कानून का राज संदेह के घेरे में आ चुका है? अगर ऐसा नहीं तो फिर क्यों लोग कानून को अपने हांथों में ले रहे हैं? पुलिस के पास जाने के वजाय लोग स्वयं फैसला करने लगे हैं। समाज में हिंसक नजारों से सवाल उठना लाजिमी है कि क्या समाज को हिंसक होने की त्रासदी से बचाया जाना एक जरूरूरत बन गया है। ? तमाम संचार माध्यमों पर अपराध और हिंसा को आम घटना की तरह परोसा जाने लगा है। मुहिम तक छेड़ दी जाती है। न्यायालय की बात नहीं बल्कि लोग अपने मन मस्तिष्क से फैसला ले रहे हैं और सजायें देने की बात कर रहे हैं। अब तो ऐसे नजारे भी सामने आ चुके है कि सजायाफ्ता अपराधियों को लोग सम्मानित कर रहे हैं, शायद ऐसे नजारों से सबसे हमारे सामाजिक मूल्यों को आघात लगा है और यह आघात अकथनीय है।
समाचारों की सुर्खियों पर अगर विचार करें तो पिछले कुछ सालों से जिस तरह उन्मादी व अराजक तत्व समाज को सुधारने के नाम पर हिंसा को हथियार के रूप में प्रयोग कर रहे हैं या करते देखे जा रहे हैं। वह एक गम्भीर विषय है।इ इस पर विचार किया जाना चाहिये। ऐसा माहौल तैयार कर दिया गया है जिससे कि अपने ही बीच रहने वाले बहुत सारे लोगों को कई लोग शक की नजर से देखने लगे हैं। ऐसे में नैतिक मूल्यों की स्थापना कैसे हो, यह बड़ी चिंता का विषय है। पहले तो स्कूलों में नैतिक शिक्षा का पाठ तो पढ़ाया जाता था शायद उसे तो किनारे ही कर दिया गया। ऐसे में समाज के अगुआकार लोग अपने आचरण में जब तक नैति मूल्यों को स्थापित नहीं करेंगे, हिंसक एवं असहिष्णुता की वृत्ति का उन्मूलन जटिल बना रहेगा। अतएव नैतिक मूल्यों की रक्षा हेतु सभी को आगे आना होगा और समाज को विकृत होने से बचाना होगा। नैतिक मूल्यों का संरक्षण करना किसी एक की नहीं बल्कि हर धर्म व सम्प्रदाय की जिम्मेदारी है।