कभी हमारी सरकार ने सोचा है कि भारत के जिस आम आदमी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में देश के लिए अपना सब कुछ लुटा दिया था औरतों ने अपने गहने कपड़े ही नहीं अपने बच्चों तक को न्यौछावर कर दिया था , वो आम आदमी जो मन्दिरों में दान करने में सबसे आगे होता है वो आम आदमी आज टैक्स की चोरी क्यों करता है ?
वो आम आदमी जो अपनी मेहनत की कमाई का कुछ हिस्सा भ्रष्टाचार के दानव को सौंपने के बाद अगर अपनी कमाई का कुछ हिस्सा छुपाकर अपने नुकसान की भरपाई करके अपने बच्चों का भविष्य संवारने लिए लगाता है तो काले धन और भ्रष्टाचार की इस लड़ाई में भी सबसे पहले वह ही क्यों पिस रहा है ?
जिन पर देश बदलने की जिम्मेदारी है वो नहीं बदल रहे तो देश कैसे बदलेगा
एक नई उम्मीद एक सपना इस देश की हर आँख में पल रहा है कि ’’मेरा देश बदल रहा है’’ सपना टूटा आँख खुली, हर दिल को समझने में जरा देर लगी कि लोग हैं कि बदल नहीं रहे हैं आम आदमी जो पहले अपनी परिस्थिती बदलने का इंतजार करता था आज देश की परिस्थितियों बदलने का इंतजार कर रहा है हाँ इंतजार के अलावा वो सवाल कर सकता है कि हर बार उम्मीद टूट क्यों जाती है?
इंतजार इतना लंबा क्यों होता है?
नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स को तो इस देश का हर नागरिक जानता है लेकिन बैंक के अधिकारी! आप से तो यह अपेक्षा देश ने नहीं की थी!
प्रधानमंत्री जी ने आपके कन्धों पर इस देश को बदलने की नींव रखी थी और आप ही नींव खोदने में लग गए? आम आदमी लाइन में खड़ा 2000 रुपए बदलने का इंतजार करता रहा और आपने करोड़ों बदल दिए ?
और इतने बदले कि बैंक नए नोटों से खाली हो गए लेकिन आप रुके नहीं!
आज हर रोज छापेमारी में जो नोट जब्त हो रहे हैं वो किसी के हक के थे!
किसी के भोग विलासिता के लिए किसी की जरूरत का आपने गला घोंट दिया!
वो करोड़ों की रकम जो में मुठ्ठी भर लोगों से जब्त हुई वो करोड़ों की आवश्यकताएँ पूरी कर सकती थी यही इस देश का दुर्भाग्य है जब वो लोग जो जिनके कन्धों पर देश को बदलने की जिम्मेदारी है वो ही नहीं बदल रहे तो देश कैसे बदलेगा ?