Friday, September 20, 2024
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सुग्रीव की श्रीराम से मित्रता, बालि वध और सीता की खोज का भावविभोर मंचन

पवन कुमार गुप्ताः ऊंचाहार, रायबरेली। विगत कई दिनों से एनटीपीसी आवासीय परिसर के डीएवी पब्लिक स्कूल ग्राउंड में चल रही श्री राम लीला का कानपुर के नयापुल मुंशीपुरवा से आए हरिदर्शन मानस कालामंच के कलाकारों द्वारा गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरित मानस के विभिन्न प्रसंगों का मंचन किया जा रहा है।
एनटीपीसी में चल रही रामलीला में आज के प्रसंग में किष्किंधा कांड में दर्शाए गए चित्रण श्री राम और सुग्रीव की मित्रता का वर्णन किया गया। रामलीला के मंचन में यह बहुत ही महत्वपूर्ण प्रसंग है। पंचवटी से देवी सीता का हरण हो जाने पर उनकी खोज में निकले भगवान राम और लक्ष्मण वन में विचरण करते करते किष्किंधा पर्वत के समीप पहुंचते हैं और इधर जब दो राजकुमारों को किष्किंधा के समीप आते हुए सुग्रीव ने देखा तो वह थोड़ा भयभीत हुए और अपने गुप्तचरों को भेज कर उनका भेद जानने को कहा। चूंकि सुग्रीव अपने भाई बालि के डर से हनुमान जामवंत और अपने कुछ वानर साथियों के साथ किष्किंधा पर एक गुफा में छिपे थे। इसलिए उन्हें अपने भाई बाली के किसी चाल का भय सता रहा था।
एनटीपीसी में चल रही रामलीला में आज के इस प्रसंग में दिखाया गया कि सुग्रीव के कहने पर हनुमान भेष बदलकर दोनों राजकुमारों का परिचय जानने के लिए उनके समीप पहुंचते हैं। यह दोनों राजकुमार कोई और नहीं भगवान राम और लक्ष्मण थे। हनुमान ने अपनी मधुर वाणी और बुद्धि कौशल से दोनों राजकुमारों को प्रभावित किया। परिचय पूर्ण होने के बाद हनुमान ने भगवान श्री राम से सुग्रीव की मित्रता कराई और एक दूसरे की आप बीती को सुना। इस प्रसंग में श्री राम ने कहा कि मित्र एक दूसरे का भला करके उपकार जरूर करते हैं लेकिन उपकार जताते नहीं। एक मित्र का सुख दूसरे मित्र का भी सुख ही होता है और उसका दुख भी दूसरे मित्र के लिए दुख ही होता है यानी दोनों एक दूसरे के सुख-दुख के साथी होते हैं। श्री राम ने देवी सीता की खोज के लिए सुग्रीव से मित्रता की और सुग्रीव को अपने भाई बाली से अपना राज्य और अपनी भार्या को वापस प्राप्त करना था। श्री राम और सुग्रीव ने आपस में मित्रता कर एक दूसरे के सुख-दुख में साथ खड़े रहने का संकल्प लिया। अतः इस प्रसंग से सीख यही मिलती है कि सच्चा मित्र वही है जो एक दूसरे के सुख-दुख में काम आए और एक दूसरे के सुख-दुरूख को अपना सुख दुरूख समझे। इस मित्रता की शुरुआत हनुमान की उपस्थिति में हुई और हनुमान को संकट मोचन कहा जाता है अतः उनके कार्य भी अंत में बिना बाधा के संपन्न हुए थे। इसके पश्चात रामलीला में बाली वध का वर्णन किया गया। श्री राम से सुग्रीव ने बालि वध करने के पश्चात मां सीता की खोज कर पता लगाने का पुनः वचन देते हैं और फिर सभी का कहना मानकर हनुमान माता सीता की खोज के लिए लंका की ओर प्रस्थान करते हैं। विगत साथ दिनों से चल रही रामलीला में आज इस सुंदर प्रसंग को देखकर दर्शक भी भाव विभोर और मंत्र मुग्ध हुए।