Tuesday, May 7, 2024
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बुढ़ापे की लाठी

मैंने सोचा था तुमको ,
तुम मेरे बुढ़ापे की हो लाठी।
जो जोड़ा था तिनका-तिनका ,
आज यहां सब बिखर गया ।
भौतिकता की चमक में तू बेटा ,
माता-पिता को भूल गया।
ख़ुद भूखे रहकर हम दोनों ने,
तुम बच्चों को अच्छी शिक्षा दी।
तुम कैसे भूल गए उनको,
जिसने जीवन तेरा संवारा।
आज उनके अपने बच्चों ने,
बेसहारा करके छोड़ दिया।
छोड़ उन्हें वृद्ध आश्रम में,
ख़ुद जाकर परदेस बसा। रातों की नींदें खुद की खुशियां,
सब तुझको बेटा भेंट किया।
मैं तरस गया घोड़ा बनने को,
वह तरस गई दादी सुनने को।
वह छुप- छुप रोती तेरी देख फोटो,
तू कितना निष्ठुर निकला बेटा।
जाने क्या अपराध था मेरा,
तूने जीते जी हमें मार दिया।
तू कहता है मेरा फर्ज था बेटा,
आपने नया काम कोई ना किया।
सुन मेरा तो जीवन बीत गया,
हम सीख गए रहना भी यहां।
दिल में अभी भी तू रहता बेटा,
तेरे जीवन की मुझको है चिंता।
सुनो ‘नाज़’ मेरे पोते से मेरी है विनती,
तेरे संग बर्ताव वह करे ना तेरे जैसा।
जो जोड़ा था तिनका- तिनका ,
आज यहां सब बिखर गया।

डॉ. साधना शर्मा
इ.प्र.अ.(राज्य अध्यापक पुरस्कृत)
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कन्या सलोन रायबरेली।