Friday, May 3, 2024
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माँ और मुहाजिरनामा के लिए मशहूर मुनव्वर राना अब हमारे बीच नहीं

काफी समय से बीमार चल रहे मुनव्वर राना का उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में रविवार (14 जनवरी 2024) रात लगभग 11 बजे इंतकाल हो गया। मुनव्वर राणा का जन्म 26 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के एक गांव में आयशा ख़ातून और अनवर राना के घर हुआ था। भारत विभाजन के समय उनके बहुत से नज़दीकी रिश्तेदार और पारिवारिक सदस्य पाकिस्तान चले गए थे लेकिन उनके पिता ने यहीं रहने का फैसला किया। बाद में उनका परिवार कोलकाता चला गया। जहां उन्होने अपनी तालीम मुकम्मल की। उनका असली नाम सय्यद मुनव्वर अली था। मुनव्वर राना अपने परिवार के साथ लखनऊ में रहते थे। उनकी अहलिया रैनी राना, बेटी सुमैया राना समेत चार और बेटियां और बेटा तबरेज़ उनके परिवार में मौजूद हैं। उन्होंने अब्बास अली ख़ान बेखुद और वाली आसी को अपना उस्ताद बनाया था। मुनव्वर राना दुनिया के जाने-माने शायरों में गिने जाते हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता शाहदाबा के लिये उन्हें सन् 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहित्य अकादमी और माटी रतन सम्मान के अलावा कविता का कबीर सम्मान, अमीर खुसरो अवार्ड, गालिब अवार्ड आदि से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उनकी दर्जन भर से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इनमें
मां, गजल गांव, पीपल छांव,बदन सराय, नीम के फूल, सब उसके लिए, घर अकेला हो गया आदि शामिल हैं। उन्होने मां और मुल्क के बंटवारे पर जो ’मुजाहिरनामा’ लिखा वह आज भी लोगों की जुबान पर है। उन्हें उनके शानदार लेखन के लिए 1993 में रईस अमरोहवी पुरस्कार और रायबरेली पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 1995 में दिलकुश पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जबकि 1997 में सलीम जाफ़री पुरस्कार से नवाजा गया। उसके बाद साल 2004 में सरस्वती समाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके बाद 2005 में उन्हें ग़ालिब, उदयपुर पुरस्कार से सम्मानित गया। उन्हें 2006 में कविता के कबीर सम्मान उपाधि इंदौर से सम्मानित किया गया। इसी क्रम में 2011 में उन्हें पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी द्वारा मौलाना अब्दुल रजाक मलिहाबादी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी बेबाक तबियत और आज़ाद तब्सिरों के चलते वे अक्सर विवादों में घिर जाया करते थे। कड़ी आलोचनाओं से वे कभी विचलित नहीं होते थे। किसानों के आंदोलन के दौरान मुनव्वर राणा ने कहा था कि संसद भवन को गिराकर वहाँ खेत बना देना चाहिए। राम मंदिर पर फैसला आने के बाद मुनव्वर राणा ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर सवाल उठा दिया था। 2015 में उन्होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार को वापस कर दिया और आगे कोई भी सरकारी अवार्ड न लेने के बारे में कहा। इस विवादास्पद बयान से उन्हें मीडिया और सोशल मीडिया में सख्त मुख़ालिफ़त का सामना करना पड़ा। एक बार फिर मुनव्वर राना सुखिऱ्यों में तब आए। जब मोदी से मुलाकात कर उन्हें मुसलमानों की स्थिति से अवगत करवाते हुए कहा था कि मुसलमानों के लिए आपने क्या किया है?
मुनव्वर राना की चन्द ग़ज़लें
जिसे दुश्मन समझता हूँ वही अपना निकलता है।
हर एक पत्थर से मेरे सर का कुछ रिश्ता निकलता है।
डरा-धमका के तुम हमसे वफ़ा करने को कहते हो,
कहीं तलवार से भी पाँव का काँटा निकलता है?
ज़रा सा झुटपुटा होते ही छुप जाता है सूरज भी,
मगर इक चाँद है जो शब में भी तन्हा निकलता है।
किसी के पास आते हैं तो दरिया सूख जाते हैं,
किसी की एड़ियों से रेत में चश्मा निकलता है।
फ़ज़ा में घोल दीं हैं नफ़रतें अहले-सियासत ने,
मगर पानी कुएँ से आज तक मीठा निकलता है।
जिसे भी जुर्मे-ग़द्दारी में तुम सब क़त्ल करते हो,
उसी की जेब से क्यों मुल्क का झंडा निकलता है।
दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों-मील आती हैं,
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है।
तुम्हारे शह्र में मय्यत को सब काँधा नहीं देते,
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं।
अजब दुनिया है नाशायर यहाँ पर सर उठाते हैं,
जो शायर हैं वो महफ़िल में दरी-चादर उठाते हैं।
मुनव्वर राना के शेर
आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए।
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए।

ज़िंदगी तू कब तलक दर-दर फिराएगी हमें,
टूटा-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए।

बरसों से इस मकान में रहते हैं चंद लोग,
इक दूसरे के साथ वफ़ा के बग़ैर भी।

एक क़िस्से की तरह वो तो मुझे भूल गया,
इक कहानी की तरह वो है मगर याद मुझे।

भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है।
मुहब्बत करने वाला इस लिए बरबाद रहता है।

कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा।
तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखा।

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई।
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई।

मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता।
अब इस से ज़यादा मैं तेरा हो नहीं सकता।

मुख़्तसर होते हुए भी ज़िंदगी बढ़ जाएगी।
माँ की आँखें चूम लीजे रौशनी बढ़ जाएगी।

−अब्दुल हमीद इदरीसी, कानपुर