फिरोजाबादः जन सामना संवाददाता। चंद्रा प्रभु मन्दिर में प्रतिदिन भक्ति की बहार बह रही है। जिसका सैकड़ों जैन श्रद्वालु धर्म लाभ उठा रहे।
शुक्रवार को वैज्ञानिक संत आचार्य निर्भय सागर ने अपने प्रवचन में कहा कि जीवन बहुत अनमोल है। जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे का स्वामित्वपना दिखाता है, मान प्रतिष्ठा अभिमान जताता है, वहाँ झगड़े अवश्य होते हैं। आज लोग धन का बटवारा तो करते है, लेकिन प्रेम का बटवारा नही, यदि प्रेम का बटवारा करने लग जाये, तो नफरत की दीवार खडी नहीं होती। जिस घर में बेटे की और शादी के बाद परिवार में प्रेम के बटबारे को समझ लेते है, तो उस घर झगड़े और अशांति नहीं होती। अपेक्षायें बढ़ने से कषाय बढ़ती है, इसलिए कभी भी अपेक्षायें नहीं रखनी चाहिए। नारी देश, समाज, परिवार और सारे विश्व की धुरी है, नारी के बिना संसार की कल्पना करना व्यर्थ है। नारी के बिना देश, समाज और परिवार का उत्थान असम्भव है। इसलिए भारतीय संस्कृति में नारी को देवी का रूप कहा जाता है। नारी का अपमान देवी का अपमान है। अपने सोच बदलो नारी को सिर्फ भोग की सामग्री मत समझो। योगी के जीवन में नारी अहितकर है, क्योंकि नारी साधना में बाधक है, साधनों में नहीं। मैत्री उसी से करना चाहिए, जिससे विचार मिलते हों, मेला में तभी जाना चाहिए तब मित्र और संगी साथी हो, साधु की संगति जरूर करना चाहिए। साधु संत की संगति से सबका उत्थान होता है। माता पिता अपनी संतान का और गुरु अपने शिष्य का उत्थान और अपने से बड़ा देखना चाहता है। गुरु के चरणों में पाप गलता है और पुण्य जुडता है। आत्म ज्ञान के बिना ध्यान, तप और त्याग नक्टी के श्रृंगार के समान अशोभनीय होता है।