लो बसंत फिर से आया,
सज गई फूलों से हर डाली।
बह रही सुगंध लेकर हवा,
ये कूक रही कोयल काली।
धरती ओढ़ सतरंग चुनरिया,
लहराती खेतों में हरियाली।
मधु मस्त हो रहा है भंवरा,
रंग मोह में फंसी है तितली।
सज गए बौर से पेड़ यहां,
लग गई है बेर झरबैली।
महके पुष्प बेला, गेंदा,
जुगनू से रोशन रात रानी।
कामदेव ने रची कामना,
जीवन में भर गई खुशहाली।
बसंत पंचमी ऋतुराज बना,
बन गई “नाज़” भी ऋतु रानी।