Friday, September 20, 2024
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जम्मू-कश्मीर में भाजपा का नया दांव, इंजीनियर राशिद की रिहाई से चुनाव गरमाया

जम्मू कश्मीर जम्मू-कश्मीर में करीब 10 साल बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहा है और राजनीति के नये दांव पेंच ने इसे दिलचस्प बना दिया है। बारामूला के सांसद राशिद इंजीनियर जेल से बाहर आ गए हैं। राशिद को जमानत मिलते ही राजनीतिक पारा गरमा गया है।
आतंकवाद के लिए धन जुटाने के आरोपी सांसद इंजीनियर राशिद के चुनाव प्रचार से किसे फायदा और किसे नुकसान होगा, यह सवाल घाटी में गहराता जा रहा है। नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और कांग्रेस में खलबली मच गई है। नया सवाल खड़ा हो गया है कि आखिर राशिद की आवामी इत्तेहाद पार्टी से बीजेपी को क्या फायदा होने वाला है।
राशिद के जेल से बाहर आने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की चुनौतियां सबसे अधिक बढ़ गई हैं। राशिद वही शख्स है जिसने जेल में बंद रहने के बावजूद 2024 में पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को बारामूला लोकसभा सीट से हरा दिया था। अब उमर अब्दुल्ला दलील दे रहे हैं कि राशिद को चुनाव के लिए जमानत मिली है। राशिद और उनके लोग भाजपा के इशारे पर काम कर रहे हैं। नेशनल कांफ्रेस के बाद पीडीपी सुप्रीमो महबूबा मुफ्ती ने राशिद की पार्टी पर जमकर निशाना साधा है, उनका कहना है कि राशिद की पार्टी आईपी भाजपा की नई अघोषित पार्टी है।
दरअसल राशिद लंबे समय से सलाखों के पीछे रहे हैं, यही वजह है कि जनता की सहानुभूति वे लोकसभा में भी बटोरने में कामयाब रहे, इस बार वह विधानसभा चुनाव में इसी भावना के साथ और मतदाताओं से जुड़ सकते हैं जिससे विपक्षी दलों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद राशिद की पार्टी ने पूरे घाटी में पैर पसार लिए है। उत्तर से लेकर दक्षिण तक रशीद के 26 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। राशिद के छोटे भाई शेख ख़ुर्शीद ने लैंगेट से नामांकन भरने के बाद कहा था कि राशिद के जमानत से बाहर आने पर सैलाब आएगा। राशिद के भाई खुर्शीद अहमद शेख सरकारी अध्यापक थे जिन्होंने चुनाव लड़ने के लिए नौकरी छोड़ दी है।
घाटी में नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी का अपना वोट बैंक है। राशिद की पार्टी इन्हीं वोटरों को अपने पाले में ला सकती है, इससे जहां मामला त्रिकोणीय होगा तो भाजपा को एक तरह से फायदा मिल सकता है। महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी और राशिद की पार्टी के बीच इस चुनाव में तालमेल नहीं हो पाया है।
इस चुनाव को लेकर भाजपा की रणनीति हर किसी को हैरान कर रही है। जो पार्टी पहले दावा कर रही थी कि वो सभी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने वाली है, जिस बात को लेकर गृहमंत्री अमित शाह ने खुद पार्टी कार्यकर्ताओं को आश्वासन दिया था कि कश्मीर घाटी में भी प्रत्याशी उतारे जाएंगे, अब उस दावे को, उस विश्वास को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं को चोट पहुंची है। भाजपा कार्यकर्ताओं को बता दिया गया है कि पार्टी घाटी में और उम्मीदवार नहीं उतारने वाली है।
कश्मीर घाटी से कुल 47 विधानसभा सीटें हैं और भाजपा नेसिर्फ 19 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। उनमें भी आठ सीटें तो दक्षिण कश्मीर की हैं, 6 सेंट्रल कश्मीर की और पांच उत्तर कश्मीर की सीटें हैं। पार्टी का मानना है कि कश्मीर में इस बार भी उसका प्रदर्शन कोई बहुत ज्यादा शानदार नहीं रहने वाला है, वो अपने दम पर घाटी में ज्यादा सीटें जीतती हुई नहीं दिख रही। इसी वजह से पार्टी की रणनीति यह है कि वो निर्दलीय उम्मीदवारों पर अपना दांव चलेगी।
अनंतनाग से भाजपा प्रत्याशी रफीक वाणी ने खुलकर कह दिया है कि चाहे इंजीनियर राशिद हो, चाहे सज्जाद लोन हो, चाहे अल्ताफ बुखारी हो, वो सभी उनके अपने हैं, कई निर्दलीय प्रत्याशी भी पार्टी के लिए ही फायदा पहुंचाने का काम करने वाले हैं।
भाजपा की रणनीति है कि वो जम्मू की सभी 35 सीटों पर जीत दर्ज करेगी, वहीं घाटी में अपने साथी पार्टियों और निर्दलीयों पर भरोसा जताएगी। लेकिन भाजपा का कश्मीर घाटी में ना लड़ना पार्टी के कई कार्यकर्ताओं को ही पसंद नहीं आ रहा है।
जम्मू-कश्मीर में 2014 में विधानसभा चुनाव हुए थे1तब 87 सीटों में से पीडीपी ने 28, भाजपा ने 25, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 15 और कांग्रेस ने 12 सीटें जीती थीं। भाजपा और पीडीपी ने मिलकर सरकार बनाई और मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बनेलेकिन ये गठबंधन ज्यादा नहीं चला और 19 जून 2018 को भाजपा ने पीडीपी से नाता तोड़ लिया। राज्य में अभी राष्ट्रपति शासन लागू है1 जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में चुनाव होंगेऔर नतीजे 8 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे।।
कश्मीर घाटी की राजनीति के नतीजे पूरे राज्य के नतीजे पर असर डाल सकते हैं। यह भी तय लग रहा है राशिद इंजीनियर की पार्टी विधानसभा चुनाव में गेम चेंजर साबित हो सकते हैं।
– कविता पंत
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार है। )