‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ यह कहावत इसलिए कही गई कि यदि आपका मन और नीयत साफ है तो वह व्यक्ति गंगा के समान पवित्र है। कुंभ मेले में स्नान की मान्यता है कि गंगा, यमुना, और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान करने से पापों का नाश, मोक्ष प्राप्ति और आत्मा की शुद्धि होती है। यह मेला साधु-संतों, गुरुओं और श्रद्धालुओं के मिलन का केंद्र है, जहां ज्ञान, भक्ति और सेवा का आदान-प्रदान होता है लेकिन यह कुंभ स्नान जो 144 साल बाद आया है और जहाँ सबसे ज्यादा भीड़ नजर आ रही है उसे देखकर लगता है कि हर किसी को अपने पाप धोने है या फिर धरती पर पापियों की संख्या इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि कुंभ स्नान के द्वारा पाप धोये जा रहे हैं या फिर लोग नए पाप करने के लिए शक्ति संचय कर रहे हैं क्योंकि इस कुंभ मेले में ज्ञान और साधना का संगम दिखाई नहीं दे रहा है।
सबसे ज्यादा आश्चर्य करने वाली बात यह है कि कोई यह नहीं सोच पा रहा कि नदियों की सफाई का काम अभी पूरा नहीं हुआ है और वह अभी भी मैली है। जनता खुद भी गंदगी और अव्यवस्था फैलाने में योगदान दे रही है। अस्थि विसर्जन और भी तमाम तरह की गंदगी जो नदियों में फैली रहती है जो नदी के पानी को विषाक्त बनाती है। सरस्वती नदी जो गंदे नाले के रुप में परिवर्तित हो गई है और यमुना नदी पर तो कुछ दूर जाने पर से ही बदबू आने लगती है। नदियां अभी भी विषाक्त है और करोड़ों लोग उसमें स्नान कर रहे हैं। ऐसे में उसमें स्नान करके क्या बीमारियों को आमंत्रण देना नहीं है? क्या इस कुंभ स्नान में साफ सफाई पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए?
इस समय आस्था से ज्यादा अंधविश्वास और पाखंड अपने चरम पर है। अंधविश्वास का चरम तो कोविड के समय में ही दिख गया था जब लोग थाली पीटने और दिया जलाने का काम कर रहे थे और वैसे भी आस्था के नाम पर गोमूत्र तो पिया ही जा रहा है। सबसे मजे की बात तो यह है कि कमाई के लिए ऑनलाइन डुबकी भी लगवाई जा रही है और ऑनलाइन डुबकी लेकर भक्तगढ़ अभिभूत भी हो रहे हैं। आम जनता को दरकिनार कर वीआईपी दर्शन ज्यादा फलफूल रहा है। अंधविश्वास इतना चरम है कि लोग आंखों के सामने घट रही घटना को भी ईश्वर की मर्जी का नाम दे देते हैं। यह दुखदाई है कि लोग अपने कर्म से ज्यादा कुंभ स्नान, गंगा स्नान को महत्व देते हैं। यह विचार ही नहीं करते कि अपने कर्मों का फल तो मिल ही जाना है, कितने भी स्नान कर लो यदि आपका मन, साफ नहीं है तो डुबकी लगाने से भी कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला है।
युवा जो देश का भविष्य होता है जो देश के विकास में योगदान देता है। वो पढ़े-लिखे लोग जिन्हें देश की तरक्की में आगे आना चाहिए वह बाबा बने घूम रहे हैं जिन्हें देश को नई टेक्नोलॉजी देने में सहयोग करना चाहिए वह बाबा बने घूम रहे हैं।
कुंभ मेले में भगदड़ से हुई मौतों से मालूम होता है कि व्यवस्था कितनी चाकचौबंद थी? करोड़ों लोगों के जमावड़े पर व्यवस्था चौकस होनी चाहिए क्योंकि देश के साथ-साथ विदेशी मेहमान भी पधारे हैं। प्रशासन व्यवस्था पर भरोसा करके ही लोग यहाँ पर आते हैं। आस्था के इस आयोजन की व्यवस्था चौपट दिखाई दे रही है और ऊपर से ढोंगी पंडित ऊटपटांग बयानबाजी कर रहे हैं। भगदड़ में हुआ हादसा वाकई दुखदायी है।
कुंभ मेला आस्था का पर्व माना जाता है बहुत दूर-दूर से लोग आते हैं। बहुत सारे ऐसे साधु संत भी आते हैं जो रोजमर्रा के जीवन में नहीं दिखाई देते। ऐसे लोग भक्ति साधना के लिए जमा होते हैं लेकिन इस बार का कुंभ लगता है कि ममता कुलकर्णी और मोनालिसा की आंखों में खो गया है। लंपट धूर्त अघोरी कुंभ मेले की आड़ में दुष्कर्म कर रहे हैं। डुबकी जरूर लगाइए लेकिन ज्ञान की, आत्मशुद्धि की, आस्था और ध्यान की ना कि अंधविश्वास और पाखंड की।
-प्रियंका वरमा माहेश्वरी, गुजरात