Tuesday, April 16, 2024
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कहानीः हिन्दी

हिन्दी की प्रोफेसर हिमानी तेजवानी जी के घर आज सुन्दर सी बच्ची ने जन्म लिया। हिमानी अपनी बच्ची का चेहरा देख बेहद खुश थीं। उन्होंने अपनी बच्ची का नाम हिन्दी रख दिया। एक दिन दुर्भाग्य से ट्रेन दुर्घटना में हिमानी और उनके पति केशव की मौत हो जाती है। धन के लालच में हिमानी की भाभी हिन्दी को गोद ले लेती है। हिन्दी का बचपन अपनी मामी की डांट और फटकार में बीत रहा है। वह अपना दुख कविता, कहानी, गजल, गीत और लेख को लिखकर हमेशा कम रहती है। एक दिन उसकी मामी चिल्लाकर कहतीं हैं कि यह सब हिन्दी में ना लिख कर अंग्रेजी में लिखा कर, तुझे इतने मंहगे स्कूल में पढ़ा रहे फिर भी तू अंग्रेजी में बात करना नहीं सीख पायी। देखो! पड़ोस में सब के बच्चे अंग्रेजी बोलते हैं। हिन्दी ने दबी आवाज में कहा,‘हिन्दी में हमने स्कूल टाॅप किया है मामी जी।’ मामी ने उसका मुँह दबाते हुये कहा, ‘जब तक अंग्रेजी बोलना नही आता तब तक तेरी पढ़ाई – लिखायी सब बेकार है समझी। अब इस साल भी तू अंग्रेजी में बात करना नही सीखी तो अगली साल तेरी पढ़ाई छुड़वा देगें समझी। समाज में मेरी नाक कटा रखी है बिल्कुल और हाँ तेरे ये किस्से-कहानी की नोटबुक भी जला देगें। यह कहते हुये वह वहां से चली गयीं। हिन्दी को उसके मामा जी ने एन्ड्रायड फोन लाकर दिया था। उसने मामी के डर से अपना ज्यादा से ज्यादा साहित्य सोसल साइट्स पर अपलोड कर दिया। उसकी लिखी साहित्यिक रचनायें साइट्स पर बहुत सराही गयीं। बहुत से वेव पोर्टल, समाचारपत्र- पत्रिकाओं में हिन्दी की रचनायें प्रकाशित हुई। एक दिन भारतीय वायु सेना के एक अधिकारी जीवन वासुदेव जी ने जब उसकी रचनायें पढ़ी तो वह उससे इतना प्रभावित हुआ कि अपनी छुट्टियों में घर आकर दिल्ली से लखनऊ ट्रैन का टिकट लिया और हिन्दी से मिलने निकल पड़ा। इधर जब हिन्दी की मामी को पता चला कि हिन्दी की फोटो सोसल मीडिया पर घूम रही है तो उन्होंने उसे बहुत पीटा और कहा,‘लड़की नहीं बदनामी गोद ली है कमबख्त मरती भी नहीं अब कौन करेगा तुझसे शादी खानदान की नाक कटा दी।’ वह इतनी पिटी थी कि उसके मुँह से आवाज नही निकल रही थी। मामी की रोज-रोज की मार-पीट से वह तंग आ चुकी थीं। उसने सोचा कि इस दुनिया में उसका कोई नहीं है किसके लिये जिये ‘भगवान ने हम अनाथों को जीते-जी वैसे ही मार रखा है। बस यह सोचते हुये वह आधी रात घर से निकल पड़ी। ईधर जिस ट्रैन से जीवन उससे मिलने आ रहा था बस उसी ट्रैन की पटरी पर कूद के उसने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। जीवन गाड़ी से उतरा वहाँ चारो तरफ भारी भीड़ थी लोग तरह-तरह की बातें कप रहे थे कि होगा प्यार -व्यार का चक्कर। करा होगा कुकर्म मरेगी तो वैसे ही। मतलब मरने के बाद भी यह समाज हिन्दी बेटी को ही दोष दे रहा था। जीवन हिन्दी के घर पहुंचा तो देखा कि हिन्दी की तश्नीर पर माला चढ़ी है। पूरी बात जानकर वह रो पड़ा। उसने हिन्दी की मामी से कहा, ‘वह हिन्दी से शादी करना चाहता था।’ मामी यह सुनकर दंग रह गयीं और बोली, ‘प्यार- व्यार कुछ नहीं होता आज के समय में सब फालतू बातें हैं।’ जीवन ने कहा,‘मामी जी मुझे हिन्दी की लिखी जितनी भी नोटबुक है प्लीज सभी दे दीजिये। मामी कहतीं हैं वह रखा है उसका कबाड़ जाकर ले लो और अब कभी मत आना। जीवन चुपचाप वहां से चला जाता है। एक साल के लम्बें संघर्ष के बाद अमेरिका में हॉलीबुड में एक फिल्म सुपर हिट होती है जिसका नाम होता है हिन्दी द्य पूरे हिन्दुस्तान समेत विश्व के कई देशों में वह फिल्म करोड़ों का कारोबार कर लेती है। पूरी दुनिया में हिन्दी की हस्तलिखित कहानी हिन्दी जो हिन्दी भाषा और अनाथ के बचपन पर आधारित एक बहुत बड़ी हिट फिल्म साबित होती है। यह सब देख हिन्दी की मामी को मीडिया घेर लेती है और वह पछतावे के आँसुओं को बहाते हुये यही कहतीं हैं कि मैंने अपनी मात्रभाषा का सम्मान नही किया और ना ही अपनी बेटी हिन्दी का और ना ही सच्चे प्रेम पर मुझे तो सजा होनी चाहिये कहकर फूट-फूट कर रो पड़ती हैं। तभी, मीडिया की भीड़ से जीवन निकलता है और कहता है, आपने एक बेहद काबिल इंसान को हम सब से छीन लिया। मुझे यह साबित करने में एक साल लग गया। मामी उसके सामने हाथ जोड़कर बैठ जाती हैं तभी वह वहां से जाने लगता है तो वह कहतीं हैं रूक जा बेटा, ‘मुझे प्रायश्चित करने का मौका दे दो हिन्दी की सारी लिखीं नोटबुक मुझे वापस दे दो मैं हिन्दी का एक -एक शब्द पढ़ना चाहती हूँ।’ जीवन ने मामी को गले से लगा लिया और कहा,‘माँ रोते हुये अच्छी नहीं लगती आज से हम सब मिलकर अपनी मात्रभाषा के प्रचार-प्रसार और उत्थान के लिये एक हिन्दी साहित्यिक शब्द प्रकाशनी संस्था की स्थापना करेगें और युवा लेखकों को हिन्दी ष्हिन्दीष् सेवी सम्मान देकर सम्मानित किया करेंगे जिससे फिर किसी हिन्दी को घुट कर अपनी जान ना देनी पड़े।

-आकांक्षा सक्सेना
ब्लाॅगर ‘समाज और हम’