Friday, September 20, 2024
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‘‘एड्सः रोग के प्रकोप संग सामाजिक तिरस्कार का दंश’’

इसे आधुनिक जीवन के खुलेपन का अवदान कहें या रोग द्वारा विज्ञान को पहली बार परास्त करने की दास्तान कि दुनिया भर के डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बाद भी एक बीमारी ऐसी है जिसकी अभी तक कोई औषधि विकसित नहीं हो पाई है। इस रोग का नाम है ‘एड्स’। एक ऐसी भयंकर और प्राणघातक बीमारी कि जिसका नाम सुनते हीं हम सब दहशत, उद्वेग, डर, घृणा और घबराहट से भर उठते हैं। दरअसल एच.आई.वी नामक इस बीमारी का वायरस एक बार शरीर में प्रवेश करने के बाद शरीर के प्रतिरक्षक पिंड व्यवस्था को तोड़ना शुरू करता है। जैसे-जैसे प्रतिरोधक क्षमता जीर्ण होती जाती है, वैसे-वैसे शरीर में अनेक प्रकार के संक्रमण उत्पन्न होते जाते हैं। ‘एड्स’ एच.आई.वी संक्रमण की अंतिम अवस्था है जिसमें रोगी की प्रतिरक्षक पिंड व्यवस्था पूर्णरूपेण ध्वस्त हो जाती है और वह बेहद हीं छोटी, साधारण-सी बीमारी से भी नहीं लड़ पाता, अत्यंत दुर्बल होकर सदैव घोर रूप से थका हुआ महसूस करता है। इस अवस्था में पहुँचने के बाद एच.आई.वी रोगी व्यक्ति तीन-चार वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहता। वायरस जनित अन्य बीमारियों और इस बीमारी में एक विशेष फर्क है कि जहाँ अन्य बीमारियाँ कुछ दिनों या कुछेक हफ्तों में अपने लक्षण प्रकट कर देती है वहीँ एड्स का वायरस बिना किसी प्रत्यक्ष लक्षण के महीनों / वर्षों तक शरीर के अन्दर चुपचाप टी-सेल में छुपा पड़ा रहता है, रोग से अनजान रोगी ऊपर से न केवल पूर्णतया स्वस्थ दिखता है, बल्कि वह स्वस्थ महसूस भी करता है। इसके विषाणु आठ से नौ वर्ष में विकसित होते हैं, जबकि इस अवधि के दौरान संक्रमित व्यक्ति बीमारी के वायरस को न जाने कितने लोगों में हस्तांतरित कर उन्हें भी संक्रमित कर चुका होता है। इसके वायरस के द्रुत गति से फैलने और रोग के महामारी का स्वरुप धरने के पीछे भी यही कारण है। इलाज शुरू होने से पहले हीं देर हो चुकी होती है जबकि वक्त रहते इलाज शुरू कर देने से रोग की उग्रता को काफी हद तक काबू में रखा जा सकता है, एक रिसर्च के मुताबिक भारत में 2.1 मिलियन लोग एच.आई.वी से प्रभावित हैं (2015) तथा दक्षिण अफीका और नाईजीरिया के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा एड्स प्रभावित देश है।
यह मानवीय स्वभाव है कि आम तौर पर किसी भी बीमार व्यक्ति को सहानुभूति से देखा जाता है पर इस बीमारी के साथ यह दुर्भाग्य जुड़ा हुआ है कि इसके मरीज को न केवल सामाजिक रूप से तिरस्कार व बहिष्कार का सामना करना पड़ता है बल्कि इनके अपने सगे-सम्बन्धी भी इन्हें घृणा से देखते हैं, और इनसे छुटकारा पाने की फिराक में रहते हैं। या यूँ कहें कि हमारे यहाँ किसी भी अन्य बीमारी के मरीज को इतनी घृणा से नहीं देखा जाता जितना एड्स के मरीज को। इसकी वजह यह है कि एड्स के ट्रांसमिशन का मुख्य जरिया या कारक वेश्याएं, अनेक लोगों से यौन सम्बन्ध रखने वाली औरतें, समलैंगिक पुरुष, आदि होते हैं। अतः यह स्वतः ही मान लिया जाता है कि एड्स के विषाणु से पीड़ित व्यक्ति ऐसे किसी कारक के संपर्क में अवश्य आया होगा। हम भारतीय चारित्रिक स्वच्छता को सर्वोपरि मानते हैं और अवैध या अनैतिक यौनव्यवहार को हमारे समाज में हमेशा से कलंकित, तिरस्कृत और बहिष्कृत किया जाता रहा है यहाँ तक कि इस पर बात करना भी बेशर्मी मानी जाती है। जबकि देखा जाए तो सेक्स को अश्लील एवं वर्जनीय विषय मानकर ढांककर परे रखने से उपजी अज्ञानता या अल्पज्ञता एड्स जैसी बीमारियों को बढ़ाने का हीं काम करती हैं। कई बार जानकारी और जागरूकता के अभाव तथा व्यवस्थाओं की लापरवाही से सही यौन आचरण के लोग भी एड्स के वायरस की चपेट में आ जाते हैं जैसे- एड्स रोगियों की पत्नियाँ और उनसे उत्पन्न निर्दोष बच्चे, संक्रमित सुई, संक्रमित रक्त, दंतचिकित्सा के उपकरणों, नाई के उपकरणों, कान नाक छेदन के उपकरणों आदि से संक्रमित होने वाले लोग। किन्तु ‘एड्स’ शब्द सुनने के बाद हम सही या गलत कुछ भी सुनना समझना नहीं चाहते और रोगी व्यक्ति से सहज मानवीय सहानुभूति रखना तो दूर रही उन्हें उनके मूल अधिकारों तक से वंचित कर देते हैं। किन्तु एक रोगी व्यक्ति जो पहले हीं काफी तकलीफ में है के साथ निर्दयता का ऐसा आचरण अमानवीय तो है हीं, साथ हीं सार्वभौमिक मानवाधिकार इसकी इजाजत भी नहीं देता।
एच.आई.वी / एड्स पीड़ितों के हितार्थ भारत में कुछ कानून लागू किए गए हैं जिसके बाद यह उम्मीद की जानी चाहिए कि उनकी जिन्दगी अब पहले के मुकाबले आसान हो जाएगी स भारत सरकार ने एड्स पर काबू पाने और एड्स पीड़ितों के साथ दुर्व्यवहार को रोकने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार की भांति राष्ट्रीय अभियोग निर्मित किया है जो भारत में राष्ट्रीय एड्स नीति को लागू करती है। एड्स पीड़ितों को नौकरी से निकालने, स्कूल से निकालने, अस्पताल में ईलाज से इनकार करने, अचल संपत्ति को किराए पर लेने देने या वहाँ निवास करने, सार्वजानिक या निजी कार्यालय, बीमा एवम सार्वजनिक सुविधाओं समेत तमाम भेदभावों पर इस नीति के तहत कार्य किया जा सकेगा। एच.आई.वी / एड्स (रोकथाम और नियन्त्रण) विधेयक 21 मार्च 2017 को राज्यसभा में पास होने तथा 11 अप्रैल 2017 को लोकसभा में पारित होने के बाद एड्स रोगियों के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव अब दण्डनीय अपराध होगा।
यह विधेयक एच.आई.वी/ एड्स पीड़ितों को निम्नलिखित सहूलियतें प्रदान करता है
1-मुफ्त इलाज – एड्स विधेयक के अनुसार प्रत्येक एच.आई.वी संक्रमित / एड्स रोगी को अब केंद्र / राज्य सरकार के संरक्षण में रोग की निःशुल्क जाँच, उपचार और परामर्श पाने का अधिकार है, उनके उपचार हेतु सभी सरकारी अस्पतालों में एन्टी रेट्रोवायरल थेरेपी की मुफ्त व्यवस्था की गई है।
2-गोपनीयता का अधिकार – जब तक आवश्यक न हो एड्स रोगियों की पहचान गुप्त रखना उनका मानवाधिकार है स किसी एच.आई.वी पॉजिटिव को उसकी स्थिति का खुलासा करने की आवश्यकता तभी पड़ेगी जब न्यायलय का आदेश हो।
एच.आई.वी संक्रमित व्यक्तियों की गोपनीयता का उल्लंघन करने पर दो साल के कैद की सजा तथा एक लाख तक का जुर्माना हो सकता है।
3-रोजगार का अधिकार – हमारे समाज में एच.आई.वी / एड्स पीड़ित की बीमारी की बात खुलते ही संस्थानों द्वारा उसे सीधे या कोई बहाना करके नौकरी से निकाल दिया जाता है। किन्तु अब एच.आई.वी स्तर के कारण किसी को बर्खास्त करना तबतक गैरकानूनी है जबतक वह कार्य के लिए चिकित्सकीय रूप से अनुपयुक्त न हो या अन्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त जोखिम न हो।
भारत में एच.आई.वी संक्रमण से मर गए राज्य कर्मचारियों के उत्तराधिकारियों को अनुकम्पा पर रोजगार दिया जाता है ताकि उसके आजीविका अर्जन के अधिकार की संविधान के अनुछेद 21 के अन्तर्गत सुरक्षा हो सके।
4-सम्पदा में अधिकार – 18 साल से कम उम्र के सभी एच.आई.वी पॉजिटिव को अपने परिवार में रहने तथा साझा सुविधाओं का प्रयोग करने का अधिकार है।
5- भेदभाव मुक्त व्यवहार- एच.आई.वी पीड़ित अब सभी सार्वजनिक जगहों जैसे होटल, रेस्तरा, दुकानों, मनोरंजन स्थल आदि पर बिना किसी भेदभाव के जाने के हकदार हैं।
7- निजता का अधिकार- एच.आई.वी पॉजिटिव वैधानिक रूप से निजता के मान्य क्षेत्र में आता है।
ये तो हुई एड्स रोगियों के प्रति मानवीय उदारता और उनके हक की बात पर इस खतरनाक रोग पर काबू पाना भी सरकार की प्राथमिक योजनाओं में अग्रणी होना चाहिए। नैको के आंकड़ों के मुताबिक एड्स के एक मरीज के प्राथमिक उपचार से सेकेण्ड लाइन ट्रीटमेंट तक 6500 से 28500 का खर्च आता है, और भारत में 2.1 मिलियन लोग एच.आई.वी से प्रभावित हैं (2015 के आंकड़े) इस हिसाब से अगर जल्द काबू न पाया गया तो भारत जैसे गरीब देश के लिए भविष्य में यह महामारी बर्बादी का हीं पर्याय सिद्ध होगी। फिलहाल तो एच.आई.वी /एड्स जो मानव इतिहास की सबसे भयंकर महामारियों में से एक है के लिए हम सभी को जागरूकता बढ़ाने, पूर्वाग्रह घटाने तथा देश से इस रोग के उन्मूलन के लिए दृढ निश्चय बनाने की बेहद जरुरत है।
– कंचन पाठक, मुम्बई।
लेखिका, स्तंभकार
(स्नातकोत्तर) कानून तथा प्राणीविज्ञान