Saturday, April 20, 2024
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लघुकथा – रक्षाबंधन पर भाई-बहन दोनों विवश

नीरज त्यागी

राहुल आज बहुत खुश था आखिर उसे रक्षाबंधन के त्यौहार का हमेशा से इंतजार रहता है। क्योंकि आज उसकी बहन साक्षी घर आने वाली है, दोनों भाई बहन बचपन से साथ पले-बढ़े। लेकिन परिस्थिति कुछ ऐसी बनी कि राहुल आज एक करोड़पति और बहुत पैसे वाला व्यक्ति है, किंतु साक्षी जो शादी के बाद काफी दुखी रही और किसी कारणवश पति इतने पैसे नहीं कमाता कि उनका लालन-पालन अच्छी तरह कर सके। साक्षी गरीब होने के बावजूद भी एक स्वाभिमानी लड़की है और वह कभी भी नहीं चाहती कि उसका भाई उसकी कोई ज्यादा पैसों से मदद करें हमेशा की तरह साक्षी रक्षाबंधन वाले दिन राहुल के घर पहुंचती है और बड़ी खुशियों से राखी बांधने की तैयारी करती है। राहुल भी बहुत खुश है राहुल जानता है कि उसकी बहन उससे कभी कुछ भी फालतू पैसे नहीं लेगी तो इसीलिए उसे इस त्यौहार की हमेशा प्रतीक्षा रहती है। राखी बांधने के बाद राहुल ने एक लिफाफे में एक अच्छी रकम अपनी बहन साक्षी को दी। दोनों भाई और बहनों की आँखो में आँशु थे, बहन की आँखो में इसलिए आँशु थे कि उसका भाई उसकी गरीबी को बिना कहे समझ गया और भाई की आँखो में इसलिए आँशु थे कि पूरी तरह सक्षम होने के बावजूद भी वह अपनी बहन साक्षी की पूरी तरीके से मदद नहीं कर पा रहा था। बस इसी तरह हर साल का यह त्यौहार ऐसे ही चलता रहता है और दोनों भाई बहन की आँखों में नमी ऐसे ही विवशता से बनी रहती है।