Thursday, April 18, 2024
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मन उलसित भयो आज

kanchan pathakमंद मंद पवन बहे पुष्पन सुगंध लेत
मन उलसित भयो आज आओ री, आओ री
बसंत चपल है, वसंत चंचल है, बसंत सुन्दर है, बसंत मादक है, बसंत कामनाओं की लड़ी है, बसंत तपस्वियों के संयम की घड़ी है, बसंत )तुओं में न्यारा है, बसंत अग-जग का प्यारा है।
इस ऋतु में सरसों फूलकर पूरी धरती को पीले रंग से रंग देती है। हमारे यहाँ वसंत का विशिष्ट रंग पीला होता है। पीला रंग आध्यात्म का भी प्रतीक है। कई पश्चिमी देशों में बसंत का विशिष्ट रंग हरा होता है। हरा का मतलब सर्वत्र हरियाली, प्रकृति का रंग, पर हमारे यहाँ इस मनोहारी ऋतु को आध्यात्म के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। हम भारतीय इसे सरस्वती की अभ्यर्थना से प्रारंभ करके होली के महा-उत्सव पर समाप्त करते हैं।
शीत या शिशिर की ठिठुरन भले ही हाड़ कंपाती हो किन्तु इन बर्फीली ऋतुओं के बिना भी तो प्रकृति का आँगन सूना-सूना होता है और फिर इसके बाद गाते गुनगुनाते रस के पुखराजी छींटे उड़ाते बसंत के आगमन से मौसम के आँगन का सुख दूना-दूना होता है। वसंत की रंगत ही ऐसी मनोहारी है कि कठोर से कठोर तपस्वी का ह्रदय भी पुरवैया की झकोर से बेबस हो आत्मनियंत्रण खो कर बेकाबू हो जाए। ऋषि विश्वामित्र के तपोभंग का वृतांत इसका सबसे प्रबल प्रमाण है।
बसंत हमारी संस्कृति में सिर्फ एक ऋतु का नाम नहीं है बल्कि सदियों से जनमानस की चेतना में बसा आनंद का, विजय का, राग रंग का प्रतीक है। युगों युगों से वसंत भारतवर्ष की लोक कथाओं, शास्त्रीय संगीत, ग्रंथो और लोकगीतों में निरुचित, निरुपित और तरंगित रहा है। प्राचीनतम लोक कथाओं में शीत और बसंत नाम के दो राजकुमारों का वर्णन मिलता है। जब रानी अत्यंत हीं सुन्दर और मनमोहक दोनों राजकुमारों का ताजा खून पीने की अपनी आखिरी इच्छा महाराजाधिराज के समक्ष व्यक्त करती है तब नई रानी के प्रेम में अँधा हुआ राजा दोनों राजकुमारों को कत्ल कर उनका रक्त पात्र में भरकर रानी के सम्मुख प्रस्तुत करने की अनुमति दे देता है किन्तु निष्ठुर कसाई का कठोर मन इस कार्य को करने की अनुमति नहीं दे पाता। प्रकृति के उल्लास का यह उत्सव है ही इतना मधुर और मादक कि निष्ठुर से निष्ठुर और उदासीन से उदासीन मन को भी अत्यन्त सरलता से परिवर्तित कर के रख देता है।
पीला पीताम्बर पहने साक्षात श्रीकृष्ण बसंत के इस मौसम में समूचे भारतवर्ष के कण कण पर प्राण प्रतिष्ठित से नजर आते हैं, बसंत में वह स्वयं हर मन में, हर ह्रदय-तंतु पर रास के उल्लास का एहसास निरंतर रचाते हैं। तो आइए हम भी अपनी-अपनी आत्माओं की चेतना का षोडशश्रृंगार करके वसंत के उत्सव में लीन हो जाएँ।