Thursday, May 2, 2024
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बकलोली भरा रहा चुनावी माहौल

लोकसभा का चुनाव चाक चौबंद शान्ति व्यवस्था के बीच हिंसा और विवादित बयानों के वातावरण के चलते अशान्ति पूर्वक सम्पन्न हो गया। कुछ भी हो लेकिन यह चुनाव हमारे देश के नेताओं की बदजुबानी के लिए भी याद किया जाएगा। इस बार के चुनावी माहौल में नेताओं ने अपनी सभाओं में जैसी विवादित बयानबाजी की है शायद वैसी कभी पिछले चुनावों में नहीं देखने को मिली थी और न भविष्य में देखने को मिलेगी। जन सभाओं में जनता के देश के बड़बोले व बकलोल नेताओं के मुंह से ऐसे विवादित बयान निकल रहे थे जिनकों सुनकर देश का लोकतन्त्र विश्व पटल पर शर्मिन्दा हुआ है। यह बयानवाजी कोई अनजाने में नहीं गई थी विचार करें तो यही नतीजा निकलेगा कि ये विवादित बयान सोच-समझकर दिए जा रहे थे। मतदाताओं को अपनी ओर रिझानें में नेताओं ने अपने बयानों में शब्दों की गरिमा को हासिये पर रखा और विवादित बयानबाजी में पुरूष नेता ही नहीं अपितु महिला नेता भी आगे दिखती नजर आई। बयानवाजी के उत्साह में लगभग सभी दलों के नेताओं को इस बात की जरा भी चिंता नहीं थी कि ऐसे विवादित बयानों से समर्थकों या देश की जनता के बीच उनकी छवि कैसी रहेगी। किसी ने किसी किसी पर पत्नी को छोड़कर महिला सम्मान का मुद्दा गर्म किया तो किसी ने किसी को नीच बोला। इस चुनाव में हद तो तब देखने को मिली जब निर्वाचन आयोग भी नेताओं के बड़बोलेपन के आगे बौना दिखा। तमाम निर्देशों के बावजूद धार्मिक बयानवाजी को खूब सहारा लिया गया। किसी ने अली का सहारा लिया तो किसी ने बजरंगबली का। नेताओं के बड़बोले पन ने देश के पीएम पद की मर्याता तक को ताक पर रख दिया और पीएम को एक दुल्हन की संज्ञा दे डाली और यह तक कह दिया कि पीएम उस दुल्हन की तरह हैं जो रोटी कम बेलती व बनाती है बल्कि चूड़ियां ज्यादा खनकाती है। ऐसे बयानों से देश के पीएम पद की गरिमा को तार तार कर दिया गया। वहीं इस चुनाव में पूर्व पीएम जो इस दुनियाँ में नहीं उनकी कार्यशैली पर भी सवालिया निसान लगाये गये और भ्रष्टाचारी की संज्ञा दे दी, जो शर्मनाक ही कह सकते हैं। रामायण के पात्रों के अलावा महाभारत के योद्धाओं की चर्चा कर भी खूब सुर्खियाँ बटोरी गईं। इसके साथ हिटलर व जल्लाद शब्द भी भाषणवाजी से वंचित नहीं रह सके।
इस दौरान ऐसा माहौल भी देखने को मिला कि पत्रकार नेताओं की भूमिका में दिखे, अभिनेता पत्रकार इन्टरव्यू लेते दिखे और नेता अभिनेता की तरह नाटकवाजी करते रहे। इस बीच गौर करने वाला विषय यह रहा कि चुनावी बयार से विकास, कालाधन, भ्रष्टाचार, शिक्षा, चिकित्सा, बेरोजगारी, नोटबन्दी, स्मार्टसिटी, कैसलेस प्रणाली सहित अन्य मूलभूत मुद्दे गायब रहे और इन मुद्दों को सत्ता पक्ष के नताओं ने ही नहीं बल्कि विपक्षी नेताओं ने भी अपने अपने भाषणों से दूर रखे। कहने का अर्थ है देश व समाज के मूलभूत मुद्दे इस बार के चुनाव से दूर रहे और नेताओं ने अपनी बकलोली बयानवाजी में ही देश की जनता को उलझाये रखा।