Sunday, May 5, 2024
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“सही निर्णय”

रमा की उस गांव के स्कूल में नई नई पोस्टिंग हुई थी। गांव के बच्चे नई मास्टरनी के आने की खुशी में बड़े खुश थे। रमा की एक तरफ प्राचार्य महोदय द्वारा नियुक्ति करवाई जा रही थी, दूसरी तरफ बच्चे दरवाजे की ओट से नई मैडम को देख देख कर एक दूसरे से कुछ कह रहे थे। ये सब रमा स्टाफ से बात करते करते देख रही थी और मन ही मन उन बच्चों की मासूमियत उसे उनकी तरफ खीचें जा रही थी। प्राइवेट स्कूल में जहां उसने ऐसे बच्चों के साथ समय गुजारा था जहां के बच्चे अत्यंत अनुशासित थे ऐसा जैसे ऊपर से नीचे तक नियम और कानून की किताब हों वहीं गांव के स्कूल के बच्चे नियमों को तोड़ने वाली किताब की एक श्रृंखला हों। रमा को समझ में आ रहा था कि इस परिवेश को उस परिवेश में ढालने में उसे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। दूसरे दिन रमा का इंतजार बच्चे ऐसे कर रहे थे जैसे मानो उन्हें कोई नई शिक्षिका नहीं नया साथी मिलने वाला हो। रमा के लिए ये अनुभूति दो तरह के भाव उत्पन्न कर रही थी, एक ये  की प्राइवेट स्कूल में बहुत मेहनत कर लिया अब सरकारी स्कूल में खाना पूर्ति करना है दूसरी ये की इन बच्चों की आंखों में दिखती आशाओं पर खरा उतरना।
कक्षा में रमा का ये पहला दिन था, सभी बच्चे खड़े हुए कुछ यूनिफॉर्म में कुछ बिना यूनिफॉर्म के और कुछ तो दोनों का सम्मिश्रण थे, ना कोई गुडमॉर्निंग ना कोई अभिवादन, रमा ने एक एक बच्चे को गौर से देखा ऐसा लग रहा था जैसे इनके मासूम चेहरे रमा के ऊपर हंस रहे हो और कह रहें हो “मैडम जी हमको सुधारो तो जाने” रमा अपने इस ख्याल को तोड़ते हुए अपने विषय की तरफ बढ़ती है, बच्चों से कुछ साधारण अंग्रेज़ी व्याकरण की पूछ ताछ के बाद उसे समझ में आगया था कि चुनौती बहुत बड़ी है, बच्चों की नींव इतनी कमजोर है कि इसपर आगे की इमारत को बनाना उनके ऊपर अतरिक्त बोझ डालने के बराबर होगा शिक्षण के दौरान उसने एक बात की अनुभूति की जिसको वो रात भर सोचती रही की आखिर ऐसी कौन सी तकनीक लागू की जाए जिससे ये बच्चे मुख्य धारा से जुड़ने लगें।
बच्चों में शिक्षा के प्रति रुचि कैसे लाया जाय इसके लिए रमा उन्हें रोज कक्षा प्रारंभ करने से पहले प्रेरित करती उन्हें बताती की” गरीबी या कम संसाधन कभी भी आपको सफल होने से नहीं रोक सकते, आपका हौसला, आपका आत्मविश्वास, आपकी स्वजगरुक्ता आपको सफल बनाने का सर्वोत्तम माध्यम है। अपनी जिज्ञासाओं को कभी मरने मत दो और अगर इनका जन्म अभी नहीं हुआ तो इन्हे जन्म देने के लिए अपनी बुद्धि को ज्ञान रूपी भोजन दो। “इसी प्रकार की ढेर सारी बातें रमा रोज अपने छात्रों से करती, उसे ये बात परेशान करती थी कि ये बच्चे शहर के बच्चों से कितने पीछे हैं। ऐसा नहीं था कि सभी बच्चे ऐसे ही थे कुछ बच्चे तो इतने प्रतिभाशाली थे की रमा सोचने पर विवश थी कि इतने कम संसाधनों में भी ये बच्चे इतना कुछ कैसे जानते हैं। लेकिन उनके अंदर भी संस्कार की कमी दिखी लेकिन वो साक्षर थे, निसंदेह उन छात्रों के अभिभावक जागरूक रहें होंगे लेकिन क्या जागरूक अभिभावकों के बच्चे ही कुशाग्र होने चाहिएं क्या एक शिक्षक की ये जिम्मेदारी नहीं की वो छात्र जिनके अभिभावक जागरूक नहीं उन्हें भी तेज बनाए।
रमा ने सबसे पहले बच्चों को प्रार्थना सभा में सूचित किया कि सभी बच्चे यूनिफॉर्म में आएं और उन्हें ये समझाया की जिसके माध्यम से हम अपना भविष्य उज्जवल बनाएंगे उन पुस्तकों को भी एक सम्मान देना चाहिए सस्ता ही सही लेकिन इन्हें भी एक घर देना चाहिए जिसे बस्ता कहते हैं।रमा के कहने का कोई असर नहीं दिखा बच्चे उसी तरह आए जैसे रोजाना आते थे, फिर रमा ने शख्त रवैया अपनाया और उन बच्चों को प्रार्थना सभा से बाहर किया जिनके पास यूनिफॉर्म नहीं थे उनसे कारण पूछा और सबसे समय पूछा कि कितने दिनों में उनका यूनिफॉर्म बन जाएगा, किसी ने एक सप्ताह किसी ने दो तो किसी ने तीन,,,समय बीतता गया धीरे धीरे बच्चे यूनिफॉर्म में आने लगे हाथों में बस्ता देख रमा को ऐसा लगा जैसे सफलता की पहली सीढ़ी उसने पार की हो ,,,छात्राओं को दुपट्टे को सही तरीके से लगाना सिखाया जिससे वो अनुशासित लगें।उसने महसूस किया कि बच्चों को अगर आप हृदय की गहराई से प्रेम करते हैं अगर आपका लगाव उनसे है तो बच्चे भी आपकी बातों को सुनते हैं ।रमा उन बच्चों को वैसे ही सजा रही थी जैसे कोई कुशल कारीगर बेतरतीब कलपुर्जों को सही ढंग से जोड़ता हो,कुछ शिक्षकों का ये कहना कि कोई मतलब नहीं है इन्हे सुधारने का जो आप कर रही हैं वो हम सब करके छोड़ चुके हैं,ये कभी सुधरने वाले नहीं हैं ये शब्द रमा के मनोबल को तोड़ देते लेकिन जैसे ही उसकी नजर उन बच्चों पर पड़ती जो अपने आपको कुछ नियमों में बांध कर भी खुश हैं तो आंखों में फिर वही चमक आ जाती की नहीं बच्चे अब चाहते हैं बदलना। सप्ताह के अंतिम दिन को  बाल सभा के रूप में मनाने की सूचना सभी बच्चों को दी गई ।रमा ने सोमवार को सभी को विषय से सूचित किया। कुछ शिक्षक तो इसलिए खुश हुए की चलो एक दिन की छुट्टी मिली क्योंकि पूरा बोझ तो रमा को उठाना था। विद्यालय के दो कर्मठ शिक्षकों ने रमा का साथ दिया और सोची समझी योजना के तहत कार्य किया गया ,बच्चों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, रमा ने बच्चों को कई सदनों में बांट दिया था बच्चे अपने अपने सदनों का नेतृत्व किसी नेता की तरह ही करते दिखे एक उत्साह दिखा उनके अंदर, बच्चों की छिपी प्रतिभा का विकास धीरे धीरे होता दिखा, वाद विवाद, नाटक, प्रश्नोत्तरी, मूक अभिनव में बच्चों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।
इसी बीच रमा ने बच्चों के एक ऐसे समूह को भी देखा जिनका स्कूल आने का मात्र उद्देश्य हाजिरी लगाना था, अनुशासन उनसे कोंसो दूर था, आए दिन उनकी शिकायत रमा के पास आती थी। एक दिन रमा की नजर दिवार के उस कोने पर पड़ी जो लाल रंग से कुछ दूर तक रंगा हुआ था वो जगह थी उन्हीं बच्चों की जो क्लास के दादा कहे जाते थे। गुटखा  खा के उस जगह को रंग दिया गया था। रमा ने स्कूल के शिक्षकों से निवेदन किया की वो बच्चों के सामने गुटखा ना खाएं क्योंकि एक शिक्षक छात्र का आदर्श होता है वो जैसा करेगा उसका अनुसरण छात्र भी करेगा। फिर उसने बच्चों को गुटखा खाने की वजह से होने वाले रोगों से अवगत कराया।रमा का उद्देश्य छात्रों को दंडित करना बिल्कुल नहीं था। अब उसे उनमें से सिर्फ एक लड़के को खोजना था जो उस समूह का मुखिया था। बच्चों ने बताया कि संजय उस समूह का मुखिया है वो जैसा कहता है समूह वैसा ही चलता है। रमा बहुत ध्यान से उसकी हर एक गतिविधि को देखती जैसे उसे फिर से कोई चुनौती मिली हो ।प्रार्थना सभा में सूचित किया गया कि हर बच्चे की गतविधि को ध्यान में रखते हुए उसकी प्रतियोगिता में उपयोगिता को देखते हुए महीने के अंतिम शनिवार को बालसभा में उसे सम्मानित किया जाएगा। बाल सभा के सभी सदस्यों को  भी सूचित किया गया ।महीने का अंतिम शनिवार उस दिन था जिस दिन रमा को एक निर्णय लेना था सदस्यों ने स्कूल के सभी छात्रों के नाम प्रस्तावित किए जिन्होंने प्रतियोगिता में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था लेकिन रमा तो कुछ और सोच कर बैठी थी। सभी पुरस्कारों में एक पुरस्कार था” सर्वाधिक अनुशासित छात्र ” का जिसका नाम रमा को देना था ।रमा ने नाम लिख कर सबके सामने रखा जिसे देख कर सभी हतप्रध रह गए ,शिक्षकों ने कहा कि मैडम ये किस बालक का नाम दे रही हैं इसे तो उद्दंड छात्र से सम्मानित करना चाहिए। लेकिन रमा अडिग रही उसने जो सोचा था उसकी पहली कड़ी को वो इस तरह बिखरने नहीं दे सकती थी उसने कहा कि एक मौका मुझे दीजिए मुझे यकीन है कि इसका असर दंड देकर सुधारने से ज्यादा होगा। बाल सभा का आयोजन हुआ पुरस्कार वितरण का समय आया सभी पुरस्कार आशानुरूप ही गए लेकिन जैसे ही सर्वाधिक अनुशासित छात्र का नाम लिया गया सभा में उपस्थित छात्रों के साथ साथ वो लड़का भी स्तब्ध था जिसका नाम लिया गया और वो नाम था ,,संजय,,, रमा उसकी तरफ देख रही थी जैसे वो उसके चेहरे के भावों को पढ़ना चाहती हो लेकिन उसके चेहरे पर एक नहीं कई भावों का संगम था शायद उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे लेकिन प्राचार्य से ये पुरस्कार लेने के बाद जैसे संजय ने अपने हाथों में एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी स्वीकार की हो शायद ये प्रयोग था रमा का एक छात्र के ऊपर। अगले दिन रविवार था लेकिन पूरे दिन उसके जहन में एक सवाल गूंजता रहा क्या मेरा निर्णय सही था क्या जो मैंने सोचा है परिणाम उसके अनुरूप मिलेगा, अगले दिन जैसे ही रमा विद्यालय पहुंची उसकी नजर सिर्फ एक बालक को खोज रही थी, दूर उसने देखा कि एक लड़का प्रार्थना सभा में छात्रों की लाइन को सीधी करवा रहा है वो लड़का और कोई नहीं संजय था, रमा की आंखों में एक चमक के साथ आंसू भी थे ये खुशी के आंसू थे जो उसके योजना की कामयाबी पर उसका आलिंगन कर रहे थे। संजय का बदला रूप देख कर सभी बहुत खुश थे और रमा को बधाई भी दे रहे थे कि मैडम आपका मिशन कामयाब हुआ। रमा को उससे भी ज्यादा खुशी तब हुई जब कुछ साल बाद वो लड़का स्कूल में रमा से मिलने आया और उसने बताया की उसका चयन देश के सबसे अनुशासित विभाग आर्मी में हो गया है। अपने छात्र की इस सफलता ने रमा को अत्यधिक खुशी प्रदान की और अन्य शिक्षकों को यह एहसास दिलाया की दंड एक मात्र तरीका नहीं है किसी को सुधारने का, भय कभी भी किसी छात्र को सही रास्ते पर नहीं ला सकता बल्कि उसपर आपका अटूट विश्वास उसके गलत क़दमों को हमेशा रोकेगा जैसा विश्वास रमा ने सबके सामने संजय को पुरष्कृत करके किया। रमा द्वारा लिया गया सही निर्णय संजय जैसे बालकों का मार्गदर्शन ही नहीं करता बल्कि उन्हें दूसरों के लिए मिसाल भी बना देता है।
प्रियंका सिंह चौहान सीधी मध्यप्रदेश