एक स्वतंत्र गणराज्य बनने और भारत में कानून का राज स्थापित करने के लिए संविधान को 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे एक लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया था।
26 जनवरी 1950 को हमें भारत का संविधान और डॉ. राजेंद्र प्रसाद के रूप में भारत के प्रथम राष्ट्रपति मिले थे। प्रथम गणतंत्र दिवस मनाते हुए प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इरविन स्टेडयिम में भारतीय तिरंगा फहराया था। तब से ही भारत का राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। गणतंत्र दिवस समारोह के जश्न की शुरुआत परेड से होती है। वहीं “बीटिंग द रिट्रीट” समारोह को गणतंत्र दिवस के जश्न के समापन के रूप में मनाया जाता है। “बीटिंग द रिट्रीट” को राष्ट्रीय गर्व के रूप में आयोजित किया जाता है।
‘बीटिंग द रिट्रीट’ के इतिहास की ओर गौर करने पर ज्ञात होता है कि यह शताब्दियों पुरानी सैन्य परंपरा का प्रतीक है, जब सेनाएँ युद्ध समाप्त करके लौटती थीं और युद्धभूमि से वापस आने के बाद अपने अस्त्र-शस्त्र उतार कर रखती थीं एवं सूर्यास्त के समय अपने शिविर में लौट आती थीं। इस वक्त झंडे नीचे उतार दिए जाते थे। यह समारोह उस बीते समय का स्मरण करा देता है।
“बीटिंग द रिट्रीट” ब्रिटेन की बहुत पुरानी परंपरा है। इसका असली नाम ‘वॉच सेटिंग’ है और यह सूर्यास्त के समय मनाया जाता है। ‘बीटिंग द रिट्रीट” सेना की बैरक वापसी का प्रतीक है। दुनियाभर में “बीटिंग द रिट्रीट” की परंपरा रही है। लड़ाई के दौरान सेनाएँ सूर्यास्त होने पर हथियार रखकर अपने कैंप में जाती थीं, तब एक संगीतमय समारोह होता था, इसे “बीटिंग द रिट्रीट”कहा जाता है। भारत में “बीटिंग द रिट्रीट” समारोह की शुरुआत सन 1950 से हुई, जब भारतीय सेना के मेजर रॉबर्ट्स ने सामूहिक बैंड के प्रदर्शन का एक अनोखा समारोह स्वदेशी रूप से आरंभ किया।
1950 में भारत के गणतंत्र बनने के बाद ‘बीटिंग द रिट्रीट’ कार्यक्रम को अब तक दो बार रद्द किया गया था। 27 जनवरी 2001 को भारत के आठवें राष्ट्रपति रामस्वामी वेंकटरमण का लंबी बीमारी के बाद देहांत हो जाने के कारण बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम रद्द कर दिया गया था। इससे पहले 26 जनवरी 2001 को गुजरात में आए भूकंप की वज़ह से बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया था।
इस समारोह को हर साल गणतंत्र दिवस के तीन दिन बाद 29 जनवरी की शाम को देश की राजधानी दिल्ली के विजय चौक पर आयोजित किया जाता है।
रायसीना रोड पर राष्ट्रपति भवन के सामने इसका प्रदर्शन किया जाता है।
26 जनवरी के गणतंत्र दिवस समारोह की तरह यह कार्यक्रम भी अतिसुंदर एवं देखने योग्य होता है। इसके लिए राजधानी दिल्ली में राष्ट्रपति भवन, विजय चौक, नॉर्थ ब्लॉक एवं साउथ ब्लॉक बेहद खूबसूरत रौशनी के संग सजाया जाता है।
इस समारोह के मुख्यअतिथि भारत के राष्ट्रपति होते हैं। राष्ट्रपति अपने अंग रक्षकों के साथ समारोह स्थल पर पहुँचते हैं।इस समारोह में भारतीय सेना अपनी शक्ति एवं संस्कृति का प्रदर्शन करती हैं।
इस कार्यक्रम में थल सेना, वायु सेना और नौसेना के बैंड पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं।
विजय चौक पर राष्ट्रपति के आते ही उन्हें नेशनल सैल्यूट दिया जाता है। इसी दौरान तिरंगा फहराया जाता है और राष्ट्रगान होता है। इसमें तीनों सेनाओं के बैंड देश के राष्ट्रपति के सामने बैंड बजाते हैं। इस दौरान ड्रमर भी एकल प्रदर्शन करते हैं। इसके अलावा ड्रमर्स की ओर से एबाइडिड विद मी जो कि महात्मा गांधी की प्रिय धुनों में से एक कही जाती है और वो धुन भी बजाई जाती है और ट्युबुलर घंटियों की ओर से चाइम्स बजाई जाती है, जो काफी दूरी पर रखी होती हैं और इससे अति मनोहर व मनमोहक दृश्य बनता है।
बैंड वादन के बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है। इस दौरान बैंड मास्टर राष्ट्रपति के पास जाते हैं और बैंड वापस ले जाने की अनुमति माँगते हैं। इसका तात्पर्य यह होता है कि 26 जनवरी का समारोह पूरा हो गया है और बैंड मार्च वापस जाते समय लोकप्रिय धुन “सारे जहां से अच्छा” बजाते हैं।
गणतंत्र दिवस के लिए राजधानी दिल्ली में आई हुई विभिन्न सैन्य टुकड़ियाँ इस समारोह के समापन के बाद ही अपनी-अपनी यूनिट और बैरक में लौटती हैं। इस कारण से यह समारोह सैनिकों के लिए बैरक में लौटने से पहले का जश्न भी होता है। इसके साथ ही गणतंत्र दिवस कार्यक्रम का समापन होता है।
शावर भकत”भवानी” कोलकाता पश्चिम बंगाल