Friday, May 3, 2024
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भारत के लिये चिन्ता का विषय

तालिबान लड़ाकों से प्रभावित कंधार में अपने वाणिज्यिक दूतावास को भारत ने जिस तरह अस्थायी तौर पर बंद करने का व वहां कार्यरत कर्मचारियों को निकालने का फैसला किया है उससे चिन्ता बढ़ना स्वाभाविक है और यह आशंका है कि अफगानिस्तान में तालिबान लड़ाके अपनी बढ़त कायम करते जा रहे हैं। अगर यह सच है तो यह भारत के लिये चिन्ता का विषय है। वहीं यह भी जानकारी मिल रही है कि तालिबान लड़ाकों को आगे बढ़ने से रोकने के लिये अफगान सेना अपने स्तर से हरसंभव उपाय कर तो रही है, लेकिन वह अपने उद्देश्य में कामयाब होती नहीं दिख रही है। परिणाम यह है कि एक के बाद एक शहर को तालिबान लड़ाके अपने कब्जे में लेते चले जा रहे हैं। ऐसे में कयास लगाया जा रहा है कि यदि तालिबान लड़ाके इसी तरह आगे बढ़ते रहे तो आने वाले दिनों में अफगानिस्तान के अन्य कई बड़े शहरों के लिये खतरा बन सकते हैं और सम्भवतः वहां की राजधानी काबुल के लिए भी खतरा बन सकते हैं।
अब ऐसे में अगर तालिबान लड़ाकों के मन्सूबे अगर सफल हुये तो सवाल यह उठता है कि इसका जिम्मेदार कौन? शायद जवाब यही होगा, अमेरिका। क्योंकि अमेरिका ने सब कुछ जानते हुए अपनी सेनाओं को वहां से वापस बुलाने का फैसला लिया।
सवाल यह भी उठता है कि अमेरिकी प्रशासन व तालिबान के बीच कौन सा समझौता हुआ जो अमेरिकी सेनाएं वहां से शांति एवं स्थिरता सुनिश्चित किए बिना चलती बनी? कहीं ऐसा तो नहीं कि अमेरिका ने जानबूझकर ही तालिबान लड़ाकों को अफगानिस्तान पर कब्जा करने का सुनहरा मौका दिया है?
सवाल यह भी उठता है कि क्या अमेरिका ने अपने स्वार्थ को पूरा करने के फेर में अफगानिस्तान में तालिबान के समक्ष आत्मसमर्पण किया है?
अगर ऐसा नहीं तो , उससे उसकी साख पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। यदि ऐसा नहीं है तो अमेरिका की सेनाएं वहां दो दशक तक क्यों डटी रहीं, इतना ही नहीं उसने वहां अरबों डाॅलर की भारी भरकम धनराशि क्यों खर्च की? वहीं इस निर्णय ने अमेरिका की शाख पर बट्टा लगाने का काम किया है अमेरिका की आतंकवाद विरोधी नीति को कटघरे में ला दिया है।
सवाल और भी है लेकिन अमेरिका ने अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़कर कई ऐसे सवालों को सामने लाकर खड़ा किया है जिनके जवाब खोजना जरूरी हैं।
वहीं भारत की चिंता का विषय केवल यह नहीं कि अफगानिस्तान में उसके हितों के लिए खतरा बढ़ रहा है, बल्कि यह भी है कि भारत के खिलाफ तालिबान का इस्तेमाल पाकिस्तान कर सकता है और चीन भी पाकिस्तान को उकसाने का काम कर सकता है। अतएव यह भारत के लिये चिन्ता का विषय है।