Sunday, April 28, 2024
Breaking News
Home » लेख/विचार » बच्चों की शिक्षा के प्रति लापरवाही अब अभिभावकों को पड़ सकती है भारी

बच्चों की शिक्षा के प्रति लापरवाही अब अभिभावकों को पड़ सकती है भारी

बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने के लिए शिक्षकों के साथ अब अभिभावकों को भी अपना पूर्ण योगदान देने की आवश्यता है
“स्कूल अब शुरू हुए, शुरू हुई फिर पढ़ाई
दो साल बाद नन्ही बिटिया, स्कूल देख पाई
अब बच्चों के संग सब, स्कूल पढ़ने जायेंगे
नई गुरूजी की नई सीख, खूब सीखकर आयेंगे”
अप्रैल माह आते ही स्कूलों की घंटी एक बार फिर से बजने के लिए तैयार है । एक लम्बे समय के बाद पूर्व प्राथमिक विद्यालयों के बच्चों की किलकारी स्कूल के कमरों से सुनाई देने को तैयार है । देश में लॉकडाउन के दौर ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है तो वह है शिक्षा; और शिक्षा में पूर्व-प्राथमिक एवं प्राथमिक शिक्षा की दशा बिगाड कर रख दिया है । सरकारी विद्यालयों में जहाँ बच्चा 5 से 6 वर्ष की उम्र में स्कूल जाकर अपनी शिक्षा ग्रहण करने को तैयार हो जाता है वही निजी विद्यालयों में 4 वर्ष से प्री-प्राइमेरी कक्षाओं में दाखिला के साथ पढाई की शुरुआत हो जाती है । अभी तक पूरे 2 वर्षों का समय गुजर गया है कुछ बच्चे जो शुरूआती कक्षा में दाखिले के लायक थे उन्होंने तो स्कूल का मुख तक नहीं देख पाया है; और यदि किसी तरह इन उम्र के बच्चों का दाखिला विद्यालय में हो भी गया तो कोरोना महामारी के दर से बंद स्कूलों के दर्शन नहीं हो पाए है । इनके लिए स्कूल की पढ़ाई और वहाँ का मजा एवं सीख परियों की कहानी जैसा है । नए सत्र के प्रारंभ होते ही बच्चों की शुरूआती शिक्षा के लिए शिक्षक के पास एक नई चुनौती होगी, क्योकि 2 वर्षों के लर्निंग गेप को समझते हुए, आगामी कार्ययोजना तय करके सत्र के लिए तैयारी करनी होगी ।स्कूल का बच्चों के साथ एक अभिन्न नाता होता है, बच्चा अपने घर के बाद यदि कुछ सीखता है तो वह है स्कूल से । स्कूल में बच्चों को पढाई के साथ-साथ सर्वांगीण विकास की शिक्षा दी जाती है । स्कूल में रहकर बच्चे अपने संज्ञानात्मक ज्ञान, भावनात्मक ज्ञान, सामाजिक ज्ञान, शारीरिक विकास, बौद्धिक विकास, तार्किक ज्ञान के साथ-साथ जीवनोपयोगी कौशलों को नही सीखते है । सत्र के प्रारंभ से ही बच्चों के मूलभूत कौशलो की और ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है । 2 वर्षों में बच्चों के कक्षा का विकास तो हुआ है परन्तु उनके शैक्षिक कौशलों का विकास उनके मुख्य धारा से पीछे नजर आता है । इस लर्निंग गेप के लिए हर स्कूल अपने स्तर पर तैयारी कर रहे है, उनकी इस तैयारी में बच्चों को कितना मानसिक रूप से तैयार होने की आवश्यकता है ये तो स्कूलों पर निर्भर करता है, वही अभिभावकों पर भी कुछ ज्यादा जिम्मेदारी बढ़ने की सम्भावनाये है क्योकि वगैर अभिभावकों के सहयोग एवं समर्थन से सकारात्मक परिणामों की संकल्पना एक स्वप्न साबित होगी ।
स्कूली बच्चों के लर्निंग गेप को पाटने के लिए अप्रैल से स्कूलों का संचालन होने को तैयार है वही कुछ स्कूलों ने तो अगली कक्षाओं की पढ़ाई प्रारंभ भी कर दी है । शुरूआती कक्षाओं एवं प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों को सामान्य धारा में लाने के लिए पहले पन्ने से पढ़ाई शुरू करने की जरुरत हो सकती है । सबसे पहले यह पता लगाना होगा कि अभी बच्चे का लर्निंग स्तर क्या है और उसे किस स्तर में होना चाहिए था । यह पता लगने के बाद उसके कमजोर पहलु को सुद्रण करने के उचित प्रयास किये जाने चाहिए । अब बात आती है सामूहिक सीखने- सिखाने की प्रक्रिया के बारे में, ऐसे समय में एक-एक बच्चों की प्रगति रिपोर्ट पर तल्लीनता के कार्य करने की आवश्यकता है; नहीं तो एक बार पढ़ाई में पिछड़ा बच्चा आगे की पढाई में भी पिछड़ते ही जाएगा और उसका सीखना प्रभावित होगा । अधिकतर बच्चों में देखा भी गया है कि यदि उन्हें शुरूआती कक्षाओं में पढ़ना, समझना एवं समझकर बोलना आ जाता है तो वह किसी भी पढ़ाई को सहजता से पूर्ण करने लगता है, वहीं दूसरी ओर किसी बच्चे को पढ़ने, समझने एवं समझकर बोलने में दिक्कत होती है तो वह अपने पाठ्यक्रम से पिछड़ते जाता है, और अपने पाठ्यक्रम के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते है और वह पढ़ाई में पीछे रह जाता है । अपने साथ के बच्चों को खुद से ज्यादा और स्वयं को कमतर आंकने लगता है, इससे उसे स्वयं पढ़ाई में अरुचि पैदा होने लगती है । बच्चों में अपनी पढ़ाई के प्रति अरुचि उसके शैक्षिक जीवन को प्रभावित करती है । इन बातों पर शिक्षकों को भलीभांति ध्यान देना होगा साथ ही अभिभावकों से सतत संपर्क बनाकर रखना होगा जिससे बच्चो की पढाई में ठीक से तालमेल बिठाया जा सके ।
अप्रैल माह के प्रारंभ से ही गर्मी ने अपने तेवर दिखाना शुरू कर दिया है । गर्मी दिन में सीधे आग उगल रही है ऐसे में छोटे बच्चों का स्कूल जाना एवं गर्मी में पढ़ाई करना किसी किसी चुनौती से कम नहीं होगी । इस समय दूरस्त एवं ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ बुनियादी सुविधाओं का आभाव है वहाँ पर चिलचिलाती गर्मी में कक्षा में चटाई पर बैठे बच्चे अपनी पढाई पर ध्यान कैसे कर पाएंगे यह तो वक्त ही बताएगा, परन्तु अप्रैल में स्कूल का संचालन कर शिक्षा के गेप को पाटने का सर्वप्रथम उद्देश है ।
निजी स्कूलों में पढ़ाने वाले बच्चों के अभिभावकों को बच्चों की शिक्षा के साथ-साथ नए सत्र की तैयारीयों में और स्कूलों के खर्चे का भी डर सता रहा है । निजी स्कूलों की मोटी फीस, बच्चों की महगी ड्रेस, महगी पुस्तक एवं कापियों के मूल्य ने अलग बैचेन कर रखा है । सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता पर लगे प्रश्न चिन्ह के कारण अभिभावकों का निजी स्कूलों की और पलायन पढ़ता ही जा रहा है । शिक्षा की एक मजबूत रीड कहे जाने वाले सरकारी स्कूल आज अपने अस्तिव की लडाई से जूझते हुए नजर आ रहे है । बहुत से सरकारी स्कूलों में बच्चों के कम नामांकन के चलते स्कूल बंद हो चले है या कुछ स्कूलों में ये हाल है कि जितने बच्चे है उतने या उससे अधिक शिक्षक है । सरकारी स्कूलों को अपना स्तर को उच्च करने पर विशेष ध्यान देना चाहिए जिससे सरकारी शिक्षा पर किये गए खर्चे का सही परिणाम दिख सके । सरकारी शिक्षको को केवल और केवल बच्चों को पढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित करना होगा । पढ़ाई के आलावा अन्य कार्य को पढ़ाई के पहले या पढ़ाई के बाद करने का कड़ाई से पालन करने की आवश्यकता होगी । बच्चों को पढ़ाना शिक्षक का पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए इसके लिए शिक्षा तंत्र में उचित मॉनिटरिंग सिस्टम बनाकर शिक्षकों की मदद के लिए कदम उठाना होगा ।
बच्चों की पढ़ाई की शुरुआत करने के लिए कक्षा अनुसार न पढ़ाकर उनके लर्निंग स्तर के अनुसार समूह बनाकर उनके सीख के अनुसार पढ़ाने पर पूरा जोर देना जरुरी है । एक लम्बे गेप के बाद बच्चों का लर्निंग स्तर में उतार-चड़ाव अवश्य ही आया होगा, इसको समझने पर एक योजनाबद्ध तरीके से कार्य करने की आवश्यकता है । बच्चों की शिक्षा के गेप को पाटने में अब अभिभावकों को पूरा ध्यान देंने की आवश्यता है, बच्चों की शिक्षा के प्रति लापरवाही अब अभिभावकों को पड़ सकती है भारी, बच्चों की पढ़ाई को शिक्षा से जोड़ने के लिए शिक्षकों के साथ अब अभिभावकों को भी अपना पूर्ण योगदान देने की आवश्यता है, तभी पढ़ेगा इंडिया और बढेगा इंडिया ।
पढ़ाना-लिखाना, नया ज्ञान का श्रृजन कराना
शिक्षा है बहुमूल्य खजाना,शिक्षा है गजब तराना
धनी गरीब हो या मजदूर, सब होंगे शिक्षा में चूर
नहीं रहे कोई मजबूर, कोई न होगा विद्या से दूर,


लेखक: श्याम कुमार कोलारे, छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश