Saturday, May 4, 2024
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मानसिक प्रदूषणः सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग?

बहुत तरह के प्रदूषण की चर्चाएं होती हैं जैसे ध्वनि जल थल वायु आदि किंतु सबसे खतरनाक प्रदूषण का कोई चर्चा का विषय नहीं बनाता यह मानसिक प्रदूषण है।
हर मानव ही मानसिक प्रदूषण से पीड़ित है और समाज में तेजी से इसे फैलाने का योगदान भी निभा रहा है किंतु अनजाने में इसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है और इसीलिए यह चर्चा का विषय भी नहीं बन पाता है।
मानसिक प्रदूषण प्राचीन काल से मौजूद है ।मानसिक प्रदूषण पूरी मानव जाति के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह अन्य प्रदूषण का जनक है और इसके दुष्प्रभाव से मुक्ति के लिए मनुष्य को बहुत संयम से काम लेना पड़ेगा, मानसिक प्रदूषण का जन्म होता है इस वाक्य से-
सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग ?
क्या कहेंगे लोग इस चक्कर में इंसान इतना मानसिक प्रदूषित हो रहा है और समाज में फैला रहा है।
यह विनाशकारी भावनाएं मनुष्य में मानसिक प्रदूषण का जन्म देती हैं। मानसिक प्रदूषण मानव मन और व्यक्तित्व को हानि पहुंचाने वाली प्रक्रिया को बाधित करता है मन प्रदूषित तो तन,पर्यावरण ,समाज सब धीरे-धीरे प्रदूषित हो जाता है यह विभिन्न तत्वों से उत्पन्न होता है जैसे उदाहरण -अत्याचार, क्रोध, काम, लोभ, ईर्ष्या आदि ।मानसिक प्रदूषण जन्म लेता है कटु भावनाओं से घृणा से यह जातिवाद, धर्मवाद, ऊंच-नीच हीन भावना, पछतावा, आत्मगिलान, तुलना आदि।
आज समाज में यश, धन और संपत्ति इकट्ठे करने की ऐसी होड़ मची है कि व्यक्ति अपने परिवार के सदस्यों, सगे संबंधी एवं मित्रों को भूलकर अति संग्रह की वृद्धि से ग्रसित हो गया है ।
आज के समय में मानव जाति सबसे दुखी है किंतु दूसरों को दुखी देखकर उसको सुकून मिलता है।
नकारात्मक प्रवृत्तियां ही मानसिक प्रदूषण है ऐसा कहना गलत नहीं होगा।
नकारात्मक प्रवृत्तियां का जन्म होता है निम्न से –
स्वार्थ प्रेरित कर कर्म
इंसान स्वार्थी होता जा रहा है।
आजकल सबको अपने-अपने की चिंता है और दूसरे के बारे में जरा नहीं सोचने का समय नहीं है ।
यह अपना प्रत्येक कर्म फल की इच्छा से करता है ,कोई परोपकार की भावना नहीं और सहायता करने की आदत तो खत्म ही हो चुकी है।
निस्वार्थ भाव विलुप्त हो गया है, आपने देखा होगा सड़क पर दुर्घटनावश कोई गिरा हो तो उसकी मदद करने के लिए जल्दी कोई हाथ नहीं बढ़ाता।
अकर्मण्यता
कई बार व्यक्ति आलस्यवश, व्याधिवश, भ्रांतिवश व संशयवश व्यक्ति कर्मों में प्रवृत्त नहीं हो पाता तब समय निकल जाने पर कार्य अपूर्ण रह जाता है । इस कारण उसका मन अशुद्ध विचारों से मलिन होकर दूषित हो जाता है जैसे ईर्ष्या द्वेष आदि ।
विषय तृष्णा
सांसारिक विषयों में मानव की अत्यधिक प्रवृत्ति भी मन में प्रदूषण पैदा करती है जैसे विभिन्न इंद्रियों के आहारों में प्रवृत्ति बनी रहना।
जीभ के लिए अच्छे खाने का लालच, कान के लिए मधुर आवाज, चर्म के लिए नरम स्वच्छ स्पष्ट, नाक के लिए सुगंध, आंखों के लिए सुंदर दृश्य की लालसा भी मानव को भटकाती है।
इंद्रियों की भूख इंसान को लालच, ईर्ष्या, हिंसा, क्रोध, लोभ, मोह, द्वेष तुलना, काम वासना, संग्रहशीलता आदि प्रवृत्तियों की ओर दौड़ाती हैं। जिससे मन मैला होता जाता है और मानसिक प्रदूषण बढ़ता जाता है।
असंयमित जीवन
आधुनिक मनुष्य संयमित जीवनशैली अपना रहा है। देर रात तक जगना, सुबह देर से उठना ।हद से ज्यादा खाना या फिर डाइटिंग । संतुलन खोता जा रहा है। दिन को आलस्य, कामुकता की अधिकता, धन की असीमित लालसा ,खुद ही की हवा, व्यापार की व्यवस्था, सफल होने की महत्वकांक्षा, नशे की लत, परिवार को कम समय एवं महत्व प्रदान करना।
स्वाभिमान व महत्वाकांक्षा
सकारात्मक रूप से यह प्रवृत्ति प्रगति के लिए आवश्यक है पर अगर यह हद से ज्यादा अधिक हो जाए तो नकारात्मकता की तरफ बढ़ती है और मानसिक प्रदूषण फैलाने में महत्वपूर्ण योगदान देती है। बहुत ज्यादा महत्वकांक्षी व्यक्ति अंधे के समान हो जाता है अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए किसी भी हाल में विवश होता है। पर्यावरण, मनुष्य जाति को क्षति पहुंचाने में जरा देर नहीं करता और मानसिक प्रदूषण को फैलाता रहता है।
असामाजिकता व मानसिक संकीर्णता
मनुष्य धीरे-धीरे असामाजिक की ओर बढ़ रहा है अपने आसपास के पड़ोसियों से मिलना जुलना बहुत कम होता जा रहा है वह वर्चुअल वर्ल्ड में प्रवेश करता जा रहा है जिससे मानसिक संकीर्णता हो रही है।
मानसिक प्रदूषण के परिणाम
व्यक्तिगत स्वास्थ्य मानसिक प्रदूषण व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालता है मनुष्य मानसिक रोगों से या मनोशारीरिक रोगों से पीड़ित हो जाता है उदाहरण उच्च रक्तचाप, गठिया, दमा, मधुमेह, कमर दर्द, गर्दन दर्द, माइग्रेन, घबराहट, अनिंद्रा, सिर में भारीपन, उलझन बेचैनी आदि।
सामाजिक स्वास्थ्य
मानसिक प्रदूषण और सामाजिक स्वास्थ्य का बहुत गहरा संबंध है मनुष्य का मन दूषित तो समाज कैसे स्वस्थ रह सकता है ?
मानसिक प्रदूषण का प्रभाव व्यक्ति के साथ-साथ समाज को भी हानि पहुंचा रहा है और मानसिक संकीर्णता, संग्रहशीलता, अकर्मण्यता, लालच, ईर्ष्या, द्वेष, काम, क्रोध आदि प्रवृत्तियों को अत्यधिक उकसाती जिससे समाज का संतुलन बिगड़ता जाता है और समाज दूषित होता है।
पर्यावरण प्रदूषण
मानसिक प्रदूषण बहुत बड़ा जनक है पर्यावरण प्रदूषण का। मनुष्य का दूषित मन पर्यावरण को अनेक प्रकार से क्षति पहुंचा रहा है और दूषित कर रहा।
मानसिक प्रदूषण की रोकथाम
1. जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं जैसे की आत्मविश्वास, आत्मबल, निस्वार्थ सेवा, क्षमा, दया, दान, संयम, करुणा, सहिष्णुता आदि का पालन करें।
2. संतोष ,अहिंसा , अस्तेय, ब्रह्मचार्य, अपरिग्रह, स्वाध्याय इत्यादि का जीवन में पालन करें।
3. अनुशासित जीवन शैली अपनाएं।
4. सुखी संपन्न लोगों के प्रति मैत्री का भाव रखें।
5. दुखी लोगों के प्रति करुणा का भाव रखें।
6. पुण्य लोगों के प्रति श्रद्धा भाव अपनाएं
7. अपुण्य लोगों के प्रति उपेक्षा का भाव रखकर मन के सारे मैली भावनाएं एवं विचारों से दूर रहें।
हमारे नकारात्मक विचार ही अनेक रोगों का कारण बनते हैं और हमारे शरीर को रोगों का घर बना देते हैं।
प्रज्ञाअपरोधौही सर्वरोगाणाम॒ कारणम् महर्षि चरक
मानसिक विकारों एवं सांसारिक दुखों के निवारण हेतु मानव कल्याण के लिए भगवत गीता का प्रयोग सिद्धांत महत्वपूर्ण है। उसमें मानव कल्याण के लिए तीन योग बताए गए हैं ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग और इन तीनों के सिवाय मानसिक प्रदूषण के निवारण का मार्ग नहीं।
कोई भी भावनाएं गलत नहीं होती भावनाओं के कारण विनाश तभी होता है जब अभिव्यक्ति अनुपयुक्त तरीके से होती है।
स्वयं के बारे में जागरूक होना चाहिए लेकिन आपको आत्म केन्द्रित नहीं होना चाहिए।
नकारात्मक भावनाओं को दबाने से बात बिगड़ती है वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि पहले उन भावनाओं को स्वीकार करें फिर धीरे-धीरे उन पर काबू पाएं ।
भावनाओं का एक एटलेस या नक्शा बनाने अलग-अलग डिग्री हैं जिससे क्रोध, झुंझलाहट, हताशा, छिछोरापन, तर्क वितर्क कड़वाहट, बदले की भावना और रोष के रूप में प्रकट हो सकता है।
इन अनेक कुंठाओं से बाहर खड़े होने के लिए हमें स्वयं को भावनाओं से अलग करना पड़ेगा और चीजों को वैसे ही देखने की आवश्यकता है जैसी वें हैं ।
लेकिन करुणा पूर्ण दृष्टि से प्यार से प्रतिक्रिया उन प्रतिक्रियाओं से कहीं बेहतर है जिसका आपने सूची तरीके से जवाब दिया है।
आपातकालीन उपायों की मांग करने वाली परिस्थितियों में दार्शनिक बातें काम नहीं कर सकती हैं लेकिन बड़े पैमाने पर अधिकांश मुद्दे जो अनुपात से बाहर उड़ाए जाते हैं उन्हें नियमित नियत समय में की गई उचित कार्रवाई को निपटाने के लिए समय देने की आवश्यकता होती है।
मानसिक प्रदूषण दूर करने के लिए मानसिक स्वच्छता बहुत आवश्यक है यह सब चीजें एक दिन में नहीं प्राप्त कर सकते इसको प्रयास में लाना पड़ेगा।
अभ्यास, अनुशासन, आत्मबल, आत्मविश्वास और धन संकल्प की आवश्यकता है।
मन को प्रेम, करुणा, सद्भावना और निस्वार्थ सेवा से परिपूर्ण करें और मानसिक प्रदूषण को करें बाय बाय।

डॉ0 अमरीन फातिमा