पहली बार कविता का पाठन करना है।
नीर का मन आज बहुत घबराया है।।
अपनी लिखी हुई कविता के शब्द जैसे दिख नही रहे।
सारे के सारे शब्द जैसे पन्ने से फुर हो गए।।
उसपे बड़े बड़े कवियों ने बड़ा अच्छा मंच सजाया है।
देख देख कर मंच की सज्जा नीर का मन घबराया है।।
ऐसा लग रहा था आज बस दम निकल जायेगा।
इतने बड़े नामो के बीच मे सब खो जाएगा।।
जैसे तैसे कविता का उच्चारण शुरू किया।
होठ लड़खड़ा गए और पैर भी अंदर तक कांप गए।।
लगता था आज अपनी ही कविता मैं कह नही पाऊंगा।
पता नही आज अपनी जान कैसे बचाऊँगा।।
पढ़ते पढ़ते आँखो से आँशु बहने लगे ।
शीर्षक माँ ने आज फिर मुझे बचाया है।।
बचपन से आज तक माँ ही काम आयी है।
कविता पाठन में भी मेरी लाज माँ ने बचाई है ।।
विविधा
एक बेटी की व्यथा
उड़ती फिरती चिड़िया थी ।
मैं अपने पापा की गुड़िया थी ।।
माँ की आँखो का तारा थी ।
मुझमे माँ की झलक प्यारी थी ।।
जो भी मन चाहा करती थी ।
मैं पंख लगा कर उड़ती थी ।।
अपने भाई की बड़ी प्यारी थी ।
मैं उसकी बड़ी दुलारी थी ।।
अब मेरा विवाह हो गया है ।
पिंजरे के पंछी सा जीवन हो गया है।।
अब सबकी नजर बचाती हूँ ।
मैं बन्द कमरों मे गुनगुनाती हूँ ।।
मन करता फिर बच्ची बन जाओ ।
अपने पापा की गोदी चढ़ जाओ ।।
कविता – जवाब देना होगा ।
एक अजीब सी ख्वाईश थी कभी।
बुलंदियों का आसमान छूने की ।।
आज भी आसमान छूने की ख्वाईश है ।
पर अब आसमान छूने की वजह है नई ।।
अब आसमान छूने की ख्वाईश हैं।
क्योंकि सवाल बहुत पूछने है तुझसे।।
मेरे गमो के सवालों का जवाब देना है तुझको ।
तुझे लोगो ने खुदा बना के सर पर चढ़ा के रखा है ।।
इस जमीन पर अगर जवाब ना मिले मुझको ।
धुआँ बन कर ही सही पर आऊंगा तेरे पास जरूर ।।
अंतरात्मा कर ले आत्महत्या
पत्थरो की भीड़ है इंसान है कहाँ ।
बईमानों की भीड़ में ईमान है कहाँ ।।
मुर्दो की बस्ती जिंदा इंसान है कहाँ ।
झूठो की बस्ती मक्कार सब यहाँ ।।
एकला चलो अब संभव कहाँ।
भीड़ से हटकर तेरा वजूद अब कहाँ ।।
आराम से जीना है तो जमीर बेच दो ।
भीड़ से जुड़ना है तो अपना आत्मसम्मान बेच दो ।।
दलदल है जीवन इससे बच ना पाएगा ।
जिंदा रहना है तो बस अब दुसरो के सामने घुटने टेक दो ।।
आओ अपने आप को भीड़ से जोड़ दे।
आत्मा जिंदा हो ना होएदिखावटी शरीर को भीड़ से जोड़ दे ।।
दगा दोस्ती में न तुम यार करना।
दगा दोस्ती में न तुम यार करना।
कभी पीठ पीछे न तुम वार करना।।
करेंगे न हद पार हम दोस्ती की।
कि तुम भी कभी ये न हद पार करना।।
अगर हम करें जिद कभी जीतने की।
तो हँस कर ही तुम हार स्वीकार करना।।
कभी दूर से चल के आए कोई तो।
सदा हँस के ही उसका सत्कार करना।।
मिला है तुम्हें चार ही दिन का जीवन।
इसे यूँ ही बस तुम न बेकार करना।।
वतन पर कभी आँच आए अगर तो।
कलम की जरा तेज रफ्तार करना।।
हमेशा ही ‘संजय’ ने बाँटी मुहब्बत।
उसे भी अगर हो सके प्यार करना।।
तू मंजिल मेरी है तू रस्ता मेरा है,
तू मंजिल मेरी है तू रस्ता मेरा है,
मुसाफिर हूँ मुझको चलना सदा है,
सफर तय किया , इनायत है रब की
मुसिबत से महरूम उसने रखा है,
नजरों में मेरी है गुलिस्तां भी बंजर
हकीकत का जबसे पर्दा उठा है,
गमों की नवाजिश करें भी तो कब तक
की ये रोज का सिलसिला बन गया है,
तड़पता है दिल बेबसी पे मिरा पर
यही इक अदा मेरी सबसे जुदा है,
नेता जी अब तुम्ही बताओ, अच्छे दिन कब आएंगे !
नेता जी अब तुम्ही बताओ,
अच्छे दिन कब आएंगे !
ठेला, गुमटी रोज हटाते,
हम सबकी फुटपाथों से !
आप कहे तो गला घोट दूँ,
अपने बच्चों की, हाथों से !
बिना कमाई के बच्चे सब,
जीते जी मर जाएंगे !
नेता जी अब तुम्ही बताओ,
अच्छे दिन कब आएंगे !
कहते हो तुम बेच पकौड़ा,
फिर करवाते निगम का दौड़ा !
तोड़ फोड़ सामान छीनते,
भर ले जाते मार हथौड़ा !
हमी तलें घर बैठ पकौड़ा,
और हमीं क्या खाएंगे ?
नेता जी अब तुम्हीं बताओ,
अच्छे दिन कब आएंगे !
जब जी चाहा उड़ जाते हो,
हम गरीब पर ध्यान नहीं !
विजय माल्या, नीरव मोदी,
के जैसा तो प्लान नहीं !!
“ प्रेम की चिड़िया ”
बहुत छोटी सी कोई बात भी
झकझोर देती है
तो चिड़िया प्रेम की पल भर में
जीना छोड़ देती है
न जबरन बांधना इसको,
संभलकर थामना इसको
जरा सी चोट लग जाए
तो ये दम तोड़ देती है l
***
विश्व चित्रगुप्त प्रकटोत्सव की तैयारियां आरम्भ
औरैया, जन सामना ब्यूरो। विश्व चित्रगुप्त प्रकटोत्सव की तैयारियां आरम्भ हो गयीं हैं। भगवान चित्रगुप्त जी जो संसार के समस्त प्राणियों के चित्त में गुप्त रहकर उनका लेखा-जोखा रखते हैं। उनका अवतरण पर्व देश-विदेश में प्रतिवर्ष पूरे हर्षोल्लास के साथ चैत पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष यह 31 मार्च को मनाया जायेगा। इस अवसर पर कहीं प्रभु की मनोरम झांकी निकलती है तो कहीं रथयात्रा, कहीं पूजा तो कहीं भण्डारा होता है। इस दिन लोग अपने घरों में दीप प्रज्वलित कर पूरे परिवार के साथ प्रभु चित्रगुप्त जी और कलम दवात का पूजा कर स्वागत कर खुशियां मनाते हैं। इस वर्ष इस महापर्व को भव्य बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय कायस्थ वाहिनी के प्रमुख पंकज भैया कायस्थ ने वाहिनी के समस्त पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को जुट जाने का आवाह्न किया है।
Read More »ठिठुरी धरती
ठिठुरी धरती ठिठुरा सा गगन
तरु वल्लरी भी स्तब्ध गहन
थर-थर काँपे गिरि वन नदिया
किसी विधि नहीं हो ये ठंढ वहन
भूली बुलबुल कुजन किल्लोल
किसने दी ऋतू में बरफ घोल।
कलि क्लांत सुकोमल खिल न सकी
दुपहर तक रवि से मिल न सकी
बिरहा की सर्द शिथिलता में
रुक-रुक बरबस लेती सिसकी
मौसम पर सिहरन को जड़ कर
अदृश्य हुई रवि रश्मि लोल ।
किसने दी ऋतू में बरफ घोल ।।
दलकाता एक एक तन्तु को
यह शीत लहर हर जन्तु को
कम्बल में भी घुस घुस जाता
भरमा कर किन्तु परन्तु को
लम्बी पारी निशिपति खेले
दिनमान धरे पग नाप तौल ।
किसने दी ऋतू में बरफ घोल ।
प्रभु अग्निदेव तुम धन्य धन्य
तुम सा नहीं प्रियकर कोई अन्य
हर ओर शिशिर की मनमानी
दसों दिशा प्रकम्पित शीत जन्य
एक तुम हीं अपनी कुनकुन से
देते पुलकन के द्वार खोल ।
किसने दी ऋतू में बरफ घोल ।।