पुरानी पेंशन बहाली की जंग हिमांचल से लेकर कर्नाटक तक फैली हुई है लेकिन कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं है। लोग नई पेंशन योजना के बजाय पुरानी पेंशन योजना को ही लागू करने की मांग कर रहे हैं। पुरानी पेंशन योजना के मसले पर सरकार की चुप्पी की क्या वजह हो सकती है? परिवार का एक मुख्य व्यक्ति जिसकी आय से पूरा घर परिवार का खर्च चलता है और बुढ़ापे में आय का स्त्रोत बंद हो जाने पर उसके गुजर-बसर की समस्या उत्पन्न होने पर वो क्या करे? दूसरे बुढ़ापे में काम ना कर पाने की लाचारी के चलते आर्थिक विषमता का भी सामना करना पड़ता है। बुजुर्गों को पेंशन देना सरकार का फर्ज है ताकि बुढ़ापे में बुजुर्ग अपने खर्च वहन कर सके और वो आर्थिक रूप से मजबूत बनी रहे।
केंद्र सरकार का यह कहना कि पेंशन देने से राजस्व पर भार पड़ता है तो यह बिल्कुल बेमानी बात है, इससे ज्यादा खर्च तो चुनाव प्रचार में हो जाता है जिसका कोई हिसाब किताब नहीं होता है। दूसरे सांसदों और विधायकों को जो पेंशन मिलती है उसमें कटौती क्यों नहीं की जाती? विधायकों और सांसदों को दी जाने वाली सुविधाओं में भी कटौती क्यों नहीं की जाती?जनता नई पेंशन योजना का विरोध कर रही है और पुरानी पेंशन योजना लागू करने पर जोर दे रही है। नई पेंशन योजना में सरकार ने कुछ सांसदों और विधायकों को बाहर रखा है और पुरानी पेंशन योजना में कुछ कर्मचारियों को विकल्प दिए दे रखें हैं। यह दोहरापन सरकार को शक के दायरे में खड़ा कर रहा है। अपने राजनीतिक अभियान को शुरू करते समय रिवाड़ी रैली में 2013 में प्रधानमंत्री ने ‘वन रैंक वन पेंशन’ का वादा किया था। आज अपने वादे से मुकरने की क्या वजह हो सकती या फिर यह भी कोरी बयान बाजी ही थी? बुजुर्गों की आर्थिक मजबूती को ध्यान में रखते हुए सरकार को पुरानी पेंशन योजना को मंजूरी देनी चाहिए और विकल्प निकाले जाने चाहिए ताकि योजना लागू होने में कोई बाधा उत्पन्न ना हो।
कांग्रेस सांसद सुरेश उर्फ बालू धनोरकर ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को चिट्ठी लिखकर मांग की है और कहा है कि कुल मिलाकर लोकसभा और राज्यसभा के 4,796 पूर्व सांसद पेंशन ले रहे हैं. इनकी पेंशन पर हर साल 70 करोड़ रुपये खर्च होते हैं. इनके अलावा 300 पूर्व सांसद ऐसे हैं, जिनका निधन हो चुका है और उनके परिवार वालों को पेंशन मिल रही है।
धनोरकर ने चिट्ठी में कुछ उन पूर्व सांसदों के नाम भी गिनाए हैं, जो आर्थिक रूप से मजबूत हैं और उसके बावजूद पेंशन ले रहे हैं. इनमें राहुल बजाज, संजय डालमिया, मायावती, सीताराम येचुरी, मणि शंकर अय्यर, बॉलीवुड एक्ट्रेस रेखा और साउथ फिल्मों के सुपरस्टार चिरंजीवी शामिल हैं। गौरतलब है कि 5 दिन में 97 मिनट संसद चली और पक्ष विपक्ष की पालिटिक्स में देश का 50 करोड़ रूपया स्वाहा हो गया। संसद में एक मिनट में करीब ढाई लाख का खर्च होता है। क्या ये खर्च गौर करने लायक नहीं है?
प्रियंका वरमा माहेश्वरी
गुजरात