राजीव रंजन नाग; नई दिल्ली। दिल्ली के आईएएस अधिकारियों पर अब दिल्ली की केजरीवाल सरकार का नियंत्रण होगा। अपने तहत काम करने वाले अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर लंबे समय से केंद्र सरकार के साथ कानूनी लड़ाई लड़ रही दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट से गुरुवार को बड़ी राहत मिली। ताजा फैसले में संविधान पीठ ने दिल्ली सरकार को अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग समेत सभी अधिकार दे दिए हैं। अपने तहत काम करने वाले अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग पर लंबे समय से केंद्र सरकार के साथ कानूनी लड़ाई लड़ रही दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट से गुरुवार को बड़ी राहत मिली। संविधान पीठ ने एकमत से यह माना है कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार को ही अधिकारियों पर नियंत्रण मिलना चाहिए।
पांच जजों की संविधान पीठ ने इस सवाल का आज निपटारा किया कि राजधानी में नौकरशाहों के ट्रांसफर और पोस्टिंग पर किसका प्रशासनिक नियंत्रण है।
शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी कि दिल्ली में केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले उपराज्यपाल सेवाओं पर चुनी हुई सरकार के फैसले से बंधे हैं। उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल भी मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे हैं। जबकि उपराज्यपाल के पास शक्तियां हैं, उनका मतलब पूरी दिल्ली सरकार पर प्रशासनिक नियंत्रण नहीं है। ‘अन्यथा दिल्ली में एक अलग निर्वाचित निकाय होने का उद्देश्य निरर्थक हो जाएगा।’संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसले में कहा कि दिल्ली विधानसभा को लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करने के लिए कानून बनाने की शक्तियां दी गई हैं। पीठ ने कहा, शासन के एक लोकतांत्रिक रूप में, प्रशासन की वास्तविक शक्ति सरकार के निर्वाचित हाथ पर होनी चाहिए, केंद्र सरकार की शक्ति उन मामलों में है जिनमें केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। संविधान पीठ ने एकमत से यह माना है कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार को ही अधिकारियों पर नियंत्रण मिलना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली की स्थिति दूसरे केंद्र शासित क्षेत्रों से अलग है। संविधान के अनुच्छेद 239 ए ए के तहत यहां एक विधानसभा है, जिसे अधिकतर मसलों पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया है। दिल्ली की विधानसभा सिर्फ पुलिस, कानून व्यवस्था और भूमि से जुड़े विषय पर कानून नहीं बना सकती। उसी तरह दिल्ली सरकार को भी इन तीन विषयों को छोड़ कर बाकी मामलों में कार्यकारी शक्ति हासिल है। सेवाओं का मामला भी दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है।
सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला 2018 में आए संविधान पीठ के फैसले के दोहराव जैसा ही है। तब भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पुलिस, कानून व्यवस्था और भूमि से जुड़े विषयों को छोड़कर बाकी सब में उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह और सहायता से काम करना चाहिए। तब अपने ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार बॉस है और भूमि, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था से जुड़े मुद्दों को छोड़कर उपराज्यपाल के पास संविधान के तहत कोई स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि अधिकारी सरकार की बात नहीं सुनेंगे तो दिल्ली की चुनी हुई सरकार को अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं किया जाएगा, तो इससे कामकाज चलाना मुश्किल हो जाएगा।
इससे पहले 2019 में सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों की बेंच ने मामले पर बंटा हुआ फैसला दिया था। एक जज जस्टिस ए के सीकरी ने यह कहा था कि ज्वाइंट सेक्रेट्री और उससे ऊपर रैंक के अधिकारियों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण होना चाहिए। जबकि दूसरे जज जस्टिस अशोक भूषण ने कहा था कि दिल्ली के अधिकारियों पर केंद्र सरकार का ही पूरा नियंत्रण होना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने इस बात से असहमति डताई कि दिल्ली सरकार के पास सेवाओं पर कोई शक्ति नहीं है। न्यायाधीशों ने कहा कि केवल सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि को इसके अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने आदेश पढ़ते हुए कहा, ‘अगर अधिकारी मंत्रियों को रिपोर्ट करना बंद कर देते हैं या उनके निर्देशों का पालन नहीं करते हैं, तो सामूहिक जिम्मेदारी का सिद्धांत प्रभावित होता है।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा ‘अगर एक लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को अपने अधिकारियों को नियंत्रित करने और उन्हें जवाबदेह ठहराने की अनुमति नहीं है, तो विधायिका और जनता के प्रति इसकी जिम्मेदारी कम हो जाती है। यदि कोई अधिकारी सरकार को जवाब नहीं दे रहा है, तो सामूहिक जिम्मेदारी कम हो जाती है।’
सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले को दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने जनतंत्र की जीत बताया है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा श्दिल्ली के लोगों के साथ न्याय करने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट का तहे दिल से शुक्रिया। इस निर्णय से दिल्ली के विकास की गति कई गुना बढ़ेगी। जनतंत्र की जीत हुई। आप ने 2013 में सत्ता में आने के बाद से अलग-अलग उपराज्यपालों के साथ सालों तक मनमुटाव के बाद अपनी जीत का जश्न मनाया। ‘यह दिल्ली के लिए एक ऐतिहासिक जीत है।’ केजरीवाल ने कहा हम आठ साल से लड़ रहे हैं। उन्होंने (केंद्र) अपने नियुक्तियों का उपयोग करके जानबूझकर हमारे सभी काम रोक दिए। मेरे दोनों हाथ बंधे हुए थे और मुझे नदी में धकेल दिया गया था, लेकिन मैं तैरता रहा।
इससे पहले 14 जनवरी को इस मसले पर एलजी विनय सक्सेना के दावों पर अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि उपराज्यपाल दावों से सहमत नहीं हैं। दिल्ली की नौकरशाही विवाद मामले में एलजी संविधान और कानून के खिलाफ काम कर रहे हैं। इसके जवाब में राजनिवास के अधिकारी ने कहा था कि एलजी विनय सक्सेना अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए संविधान के प्रति जिम्मेदार हैं। उनके सभी कार्य और निर्णय समय-समय पर संविधान, संसद द्वारा निर्मित कानूनों और न्यायालयों द्वारा जारी निर्णयों के अनुरूप रहे हैं।
दिल्ली सरकार में मंत्री सौरभ भरद्वाज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले को सदियों तक याद किया जाएगा। उन्होंने देश को डीवाई चंद्रचूड़ के रूप में एक नायक मिला है, जिसने दिल्ली की जनता का हक फिर से दिलाने वाला काम किया है। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने घोषणा की कि ‘जल्द ही भ्रष्ट अधिकारियों को हटाने और ईमानदार, मेहनती अधिकारियों को लाने के लिए तबादले किए जाएंगे। ‘हमारा काम अब 10 गुना गति से फिर से शुरू होगा।’ केजरीवाल ने वादा किया कि उनकी ‘दुबली, पतली, उत्तरदायी, भावुक और जवाबदेह सरकार है। दिल्ली सचिवालय में कैबिनेट की बैठक के बाद आयोजित संवाददाता सम्मेलन में सीएम केजरीवाल ने गुरुवार कहा कि जिन अधिकारियों ने जनता के कार्यों को बाधित किया वे आने वाले दिनों में नतीजे भुगतेंगे। शीर्ष अदालत के फैसले के कुछ घँटों बाद ही दिल्ली सरकार ने सेवा सचिव आशीष मोरे को उनके पद से हटा दिया।
अरविंद केजरीवाल ने अक्सर शिकायत की है कि वह केंद्र के कहने के बिना एक ‘चपरासी’ नियुक्त नहीं कर सकते। उन्होंने आरोप लगाया कि नौकरशाहों ने उनकी सरकार के आदेशों का पालन नहीं किया क्योंकि उनका कैडर-नियंत्रक प्राधिकरण केंद्रीय गृह मंत्रालय था। दिल्ली सरकार ने 2018 में अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उधर, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सरदार आरपी सिंह ने ट्वीट कर कहा कि ‘केंद्र शासित प्रदेशों की शक्ति पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का न केवल दिल्ली, बल्कि भविष्य में जम्मू-कश्मीर मेंभी दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।’