⇒सियासी पटकथा की कहानी 3 महीने पहले दिल्ली में लिख दी गई थी..
नई दिल्लीः राजीव रंजन नाग। महाराष्ट्र में जिसे करीब-करीब असंभव समझा जाता था उस विपक्षी गठबंधन को एक मंच पर लाने वाले मराठा क्षत्रप शरद पवार को बड़ा झटका लगा है। उनके ही भतीजे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता अजीत पवार ने उनकी पार्टी को न सिर्फ दो फाड़ कर दिया है बल्कि एकनाथ शिंदे सरकार में भी अपने विधायकों के साथ शामिल हो गए हैं। अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार की पार्टी तोड़ दी और 29 विधायकों के साथ एकनाथ शिंदे सरकार में शामिल हो गए।
हालांकि महाराष्ट्र में रविवार दोपहर को जो सियासी हंगामा हुआ उसकी पटकथा तो अप्रैल में ही लिख दी गई थी। यह पटकथा तब लिखी गई जब सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा भी नहीं थी कि शरद पवार अपनी पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले हैं। महाराष्ट्र की राजनीति को करीब से समझने वालों का मानना है कि अप्रैल के पहले हफ्ते में जब अजित पवार ने दिल्ली का एक दौरा किया उसके बाद महाराष्ट्र की सियासत में सरगर्मी आनी शुरू हुई। कहा यह तक जाने लगा कि एनसीपी के नेता अजित पवार भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के सुर में सुर मिलाने लगे थे। फिलहाल महाराष्ट्र में अचानक बदली सियासत को लेकर न सिर्फ राज्य बल्कि पूरे देश में आगे के कयास लगाए जाने लगे हैं।
महाराष्ट्र की राजनीति में सबसे ज्यादा चर्चा उसी वक्त हुई जब शरद पवार के भतीजे और एनसीपी के बड़े नेता अजित पवार ने दिल्ली का दौरा किया। चर्चा हुई कि उन्होंने गुपचुप तरीके से देश के गृह मंत्री अमित शाह से करीब सवा घंटे तक मुलाकात की। हालांकि अजित पवार तो शुरुआत से ही इस मुलाकात को खारिज करते आए हैं। लेकिन महाराष्ट्र की सियासी गलियारों में कहा यही जाता रहा कि अजित पवार और अमित शाह के बीच हुई इस मुलाकात के बीच महाराष्ट्र के भविष्य की सियासत की पूरी कहानी तकरीबन सवा घंटे की मुलाकात के दौरान लिख दी गई। हाल में अमित शाह की मुम्बई यात्रा के दौरान अजीत पवार और उनकी पार्टी के कुछ बड़े नेताओं की मुलाकात हुई थी। हालांकि इस मुलाकात को भी अजित पवार ने सिरे से खारिज कर दिया था। इस सियासी हलचल को लेकर शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा कि उन्होंने इस बात को लेकर पहले ही कहा था कि अजित पवार शिंदे सरकार में शामिल होने वाले हैं।
महाराष्ट्र की सियासत को करीब से समझने वालों का कहना है कि अजित पवार के दिल में मुख्यमंत्री ना बन पाने की टीस शुरुआत से ही रही है। महाराष्ट्र के राजनीतिक को करीब से जानने वालों के अनुसार दिल्ली दौरे के बाद अजीत पवार महाराष्ट्र में आकर जिस तरीके से भारतीय जनता पार्टी पर न सिर्फ हमले कम किए बल्कि उनकी भाषा शैली भी शिंदे सरकार के प्रति नरम दिखाई देने लगी। अजित पवार ने धर्मनिरपेक्षता और प्रगतिशील के बावजूद भी जब एनसीपी ने शिवसेना और कांग्रेस से गठबंधन किया वह तब से इस बात को लेकर सवाल उठाते आए हैं। महाराष्ट्र के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अप्रैल में दिल्ली से आने के बाद इस पूरे मामले पर अजित पवार ने भारतीय जनता पार्टी और शिंदे सरकार का खुलकर साथ ही दिया कि और कहा कि राज्य के विकास के लिए अगर सब लोग साथ जुड़ रहे हैं तो किसी भी तरह की विचारधारा आड़े नहीं आनी चाहिए। बल्कि राज्य और देश के विकास के लिए सब लोगों को एकजुट होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ होने की बात कही।
दरअसल महाराष्ट्र की सियासत में जो रविवार को हुआ वाह चंद घंटे की कवायद नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि शरद पवार ने जब कांग्रेस अडानी मामले में कांग्रेस की ओर से उठाई जाने वाली जेपीसी मांग को खारिज कर दिया था। तभी सियासी गलियारों में सियासत ने अलग तरह के संकेत दिए जाने लगे थे। इसके बाद अजित पवार ने तो भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के सुर में सुर मिलाने शुरू कर दिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ करनी शुरू कर दी। इस पूरे घटनाक्रम को अप्रैल से जोड़कर देखें तो पता चल जाएगा कि कड़ियां किस तरीके से जुड़ती चली गई और फिर तमाम सामूहिक सार्वजनिक और गुप्त बैठकों के बाद दो जुलाई को एक बार फिर से महाराष्ट्र में सियासी उथल पुथल मच गई।
महाराष्ट्र में सियासी हंगामे की पटकथा तो अप्रैल में ही लिख दी गई थी। यह पटकथा तब लिखी गई जब सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा भी नहीं थी कि शरद पवार अपनी पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले हैं। महाराष्ट्र की राजनीति को करीब से समझने वालों का मानना है कि अप्रैल के पहले हफ्ते में जब अजित पवार ने दिल्ली का एक दौरा किया उसके बाद महाराष्ट्र की सियासत में सरगर्मी आनी शुरू हुई। कहा यह तक जाने लगा कि एनसीपी के नेता अजित पवार भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के सुर में सुर मिलाने लगे थे।
महाराष्ट्र की राजनीति में सबसे ज्यादा चर्चा उसी वक्त हुई जब शरद पवार के भतीजे और एनसीपी के बड़े नेता अजित पवार ने दिल्ली का दौरा किया। चर्चा हुई कि उन्होंने गुपचुप तरीके से देश के गृह मंत्री अमित शाह से करीब सवा घंटे तक मुलाकात की। हालांकि अजित पवार तो शुरुआत से ही इस मुलाकात को खारिज करते आए हैं। लेकिन महाराष्ट्र की सियासी गलियारों में कहा यही जाता रहा कि अजित पवार और अमित शाह के बीच हुई इस मुलाकात के बीच महाराष्ट्र के भविष्य की सियासत की पूरी कहानी तकरीबन सवा घंटे की मुलाकात के दौरान लिख दी गई।महाराष्ट्र की सियासत को करीब से समझने वालों का कहना है कि अजित पवार के दिल में मुख्यमंत्री ना बन पाने की टीस शुरुआत से ही रही है। राजनीतिक विश्लेषक जतिन लालेराव पवार कहते हैं कि अप्रैल में मुंबई के घाटकोपर इलाके में जब पार्टी को मजबूत करने के लिए एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार अपने प्रमुख नेताओं के साथ बैठक कर रहे थे तो उनके भतीजे अजीत पवार वहां से कई मील दूर बैठकर पुणे के राजनीतिक इलाके में आगामी सियासी तस्वीर बदलने को लेकर अपने कुछ चुनिंदा विधायकों से बातचीत कर रहे थे। पवार कहते हैं कि अजित पवार की पुणे में हुई इस बैठक को लेकर शरद पवार ने उनसे सवाल-जवाब भी किया था। हालांकि बाद में कई दौर की बातचीत के बाद मामला किसी खुलेआम मतभेद के तौर पर सामने नहीं आने दिया गया।
ताजा उलटफेर में राकांपा के अजित पवार एकनाथ शिंदे के मंत्रिमंडल में शामिल हो गए। अजित पवार ने दावा किया है कि उनके पास चालीस विधायकों का समर्थन है। इसके साथ ही उन्होंने आज पांचवीं बार राज्य के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है। 2019 के बाद से उन्होंने तीसरी बार उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है। उनके साथ ही उनके कुनबे के नौ बागी विधायकों को मंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई है। इनमें छगन भुगबल भी शामिल हैं।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में अजित पवार ने कहा कि पार्टी का नाम और चिन्ह हमारे साथ रहेगा। इस तरह अजित पवार ने एनसीपी पर दावा ठोक दिया है। शपथ ग्रहण के बाद अजित पवार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बड़ा दावा करते हुए कहा कि पार्टी और चुनाव चिन्ह उनके साथ हैं और वह एनसीपी के चुनाव चिन्ह पर ही अगले चुनाव लड़ेंगे। इस तरह अजित पवार ने एनसीपी पर दावा ठोक दिया है। वहीं शरद पवार ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि कुछ लोग पार्टी पर दावा कर रहे हैं लेकिन यह जनता तय करेगी कि पार्टी किसकी है। इन दोनों बयानों से साफ है कि पार्टी को लेकर लड़ाई हो सकती है। ऐसे में फिर से दल बदल विरोधी कानून के प्रावधानों की चर्चा होगी।
चौंकाने वाली बात ये है कि अजित पवार के साथ प्रफुल्ल पटेल भी हैं जिन्हें हाल ही में सुप्रिया सुले के साथ छब्च् का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था. इसके अलावा छगन भुजबल, दिलीप वाल्से पाटिल, हसन मुशरिफ, रामराजे निंबालकर, धनंजय मुंडे, अदिति तटकरे, संजय बंसोडे, धर्मराव बाबा अत्राम और अनिल भाईदास पाटिल जैसे नेता भी शरद पवार का साथ छोड़ दिया है।
एनसीपी नेता शरद पवार ने पार्टी में टूट के बाद रविवार को मीडिया से बात करते हुए बीजेपी पर हमला बोला। साथ ही उन्होंने कहा कि मैं फिर से पार्टी खड़ा कर के दिखाऊंगा। उन्होंने अजित पवार के दावे पर कहा कि कुछ दिनों के बाद इस दावे की सच्चाई सामने आएगी।
हाल ही में शरद पवार ने इस्तीफे की पेशकश कर सभी को चौंका दिया था। जिसके बाद चले घटनाक्रम में शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को प्रमोशन देकर कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। इससे अजित पवार खुश नहीं थे।
1970 के दशक में भारतीय राजनीति में आया राम गया राम की राजनीति खूब प्रचलित थी। जिसके बाद साल 1985 में 52वें संविधान संशोधन के तहत दल-बदल विरोधी कानून पारित किया गया। संविधान की दसवीं अनुसूची में दल-बदल विरोधी कानून शामिल है और संशोधन के जरिए इसे संविधान में जोड़ा गया। दल-बदल विरोधी कानून के तहत किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जा सकता है, अगर कोई निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है या चुनाव के बाद कोई अन्य राजनीतिक पार्टी में शामिल हो जाता है या वह किसी जरूरी वोटिंग से नदारद रहता है।
महाराष्ट्र में एनसीपी के 54 विधायक हैं। 9 मंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। अजित पवार 40 विधायकों के समर्थन की बात कर रहे हैं तो ये साफ है कि अगर दल-दल विरोधी कानून के प्रावधान लागू हुए तो उनके समर्थक विधायकों की सदस्यता बच जाएगी। अब यही देखने वाली बात है कि अजित पवार के साथ कितने विधायक आते हैं।
इससे पहले बीते साल ही शिवसेना में भी ऐसी ही टूट हुई थी, जब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में करीब चालीस विधायकों ने शिवसेना से बगावत कर दी थी। शिंदे ने अपने गुट को असली शिवसेना बताया था और पार्टी की चुनाव चिन्ह और पार्टी के नाम पर दावा कर दिया था। चुनाव आयोग ने भी शिंदे के पक्ष में फैसला दिया। यह मामला सुप्रीम कोर्ट गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कई अहम टिप्पणियां की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी राजनीतिक दल के बहुमत खो देने पर अपनी पार्टी के सदस्यों को कब्जे में करने के लिए दल-बदल विरोधी कानून को हथियार नहीं बनाया जा सकता। शिंदे के वकील हरीश सालवे ने दलील दी थी कि पार्टी के भीतर का विवाद दल-बदल विरोधी कानून के दायरे में नहीं आता है। दल-बदल विरोधी कानून केवल उन लोगों पर लागू होता है, जिन्होंने राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ी हो लेकिन अगर बागी विधायक भी पार्टी में हैं तो उन पर दल-बदल कानून कैसे लागू होगा। अब एनसीपी में भी ऐसी ही स्थिति दिखाई दे रही है। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि महाराष्ट्र की राजनीतिक घटनाक्रम किस करवट बैठता है।
अगर किसी पार्टी के दो-तिहाई सदस्य किसी अन्य पार्टी में शामिल हो जाते हैं तो उन विधायकों को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। विधानसभा का स्पीकर के पास अधिकार है कि वह दल-बदल की स्थिति में विधायकों को अयोग्य ठहराने पर अंतिम फैसला करे।