Monday, November 25, 2024
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सरकार पुरानी पेंशन बहाल करें नही तो अपनी पुरानी पेंशन का त्याग करे : राजेश कटियार

कानपुर देहात। पुरानी पेंशन का मुद्दा एक चुनावी हथकंडा बन गया है और इसकी बहाली में राजनीतिक दल सत्ता की चाबी देख रहे हैं तो वहीं सत्ता पक्ष यह जानते-समझते हुए भी कि पुरानी पेंशन सरकारी कर्मचारियों की बुढ़ापे की लाठी है के बावजूद उल्टे सीधे तर्क वितर्क कर रहे हैं वे पुरानी पेंशन देना आर्थिक रूप से जोखिमपूर्ण नीति बता रहे हैं जबकि स्वयं पुरानी पेंशन का लाभ उठा रहे हैं। कुछ अर्थशास्त्री पुरानी पेंशन को देश के लिए विनाशकारी बता रहे हैं तो कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकारी कर्मचारियों को हर हाल में पुरानी पेंशन दी जानी चाहिए। वह उनका अधिकार है पुरानी पेंशन के कोई भी दुष्परिणाम नहीं हैं। इस संदर्भ में समाजशास्त्री राजेश कटियार का कहना है कि जब पेंशन सरकारी कर्मचारियों से छीन ली तो फिर छीनने वाले नेता शपथ भर लेने भर से ताउम्र किस अधिकार से पुरानी पेंशन ले रहे हैं। पेंशन हर सरकारी कर्मी के बुढ़ापे की लाठी थी जिसे अंग्रेज लोग ही लागू कर गए थे। संविधान में भी इसका प्रावधान था लेकिन 2003 में इस व्यवस्था को देश को विकसित करने वाली सरकार का तगमा देकर अटल सरकार ने बड़ी ही चालाकी के साथ बंद कर दिया। लोकतंत्र का मतलब हर व्यक्ति देश का हिस्सा है सभी पर समान नियम लागू होते हैं लेकिन सरकारी कर्मियों के हकों को छीनना तो लगता है कि इस देश में नेतातंत्र है, जहां कभी भी लोगों के मौलिक अधिकारों को छीन लिया जाता है।
एनपीएस के तहत रिटायर कर्मी दो वक्त की रोटी के मोहताज हैं लेकिन सरकार को एनपीएस कर्मियों की व्यथा नहीं सुनाई देती। स्वयं पुरानी पेंशन का लाभ ले रहें हैं और दूसरों को नई के फायदे गिना रहे हैं। हम यह कदापि नहीं कहते कि नेताओं को रिटायरमेंट के बाद लाखों की पेंशन क्यों मिलती है बल्कि हम तो यह पूछते है कि जिस पेंशन का हक संविधान में नेताओं के लिए लिखित नहीं हैं उसे किस प्रकार से लेते हैं। किस संविधान के तहत कर्मचारियों से पुरानी पेंशन का हक छीन लिया जोकि संविधान में लिखित था। सरकार के नुमाइंदे सिर्फ इतना बताएं कि अगर पुरानी पेंशन खराब है तो नेता लोग पुरानी पेंशन क्यों ले रहे हैं। आम जनमानस के साथ दोहरी नीति क्यों अपना रहे हैं या तो वे स्वयं पुरानी पेंशन का त्याग कर नई पेंशन लें और या तो सभी के लिए एक समान व्यवस्था लागू करें। वैसे अगर देखा जाए तो जनता नेताओं को 5 साल के लिए चुनती है। वह इन्हें पेंशन के लिए नहीं बल्कि जनता की सेवा करने, विकास कार्यों एवं व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के लिए चुनती है अगर दोबारा जनता इन्हें नहीं चुनती तो नियमतरू पेंशन नहीं मिलनी चाहिए। सभी जन प्रतिनिधियों पर ग्राम प्रधान की तरह जब तक काम तब तक दाम का नियम लागू होना चाहिए। कार्यकाल समाप्त होने के बाद उन्हें किसी भी प्रकार की कोई भी पेंशन नहीं दी जानी चाहिए।
पुरानी पेंशन क्यों है नई पेंशन से बेहतर ?
पुरानी पेंशन व्यवस्था –
पुरानी पेंशन व्यवस्था में सरकारी कर्मचारी के रिटायरमेंट के बाद उसकी अंतिम बेसिक सैलरी और डीए की कुल रकम या फिर रिटायरमेंट से पहले आखिरी 10 महीने की औसत सैलरी की 50 फीसदी रकम पेंशन के तौर पर मिलती थी हालांकि इसके लिए कर्मचारी को कम से कम 10 साल की सर्विस करनी जरूरी थी।
पुरानी पेंशन व्यवस्था में कर्मचारी को पेंशन में अपनी सैलरी से कोई योगदान नहीं देना होता था। सरकारी नौकरी होना ही पेंशन की गारंटी था। कर्मचारी स्वैच्छिक रिटायरमेंट लेता है तो भी उसे पूरी पेंशन का भुगतान किया जाता है। इतना ही नहीं महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी होने पर पेंशन में भी इसकी बढ़ोतरी होती है और वेतन आयोग के सुधार भी पेंशन पर लागू होते हैं। जनरल प्रोविडेंट फंड की सुविधा भी मिलती है और इस पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स भी नहीं लगता है।
नई पेंशन स्कीम –
नई पेंशन स्कीम के तहत कर्मचारी को हर महीने अपनी बेसिक सैलरी का 10 फीसदी पेंशन फंड में योगदान देना होता है। वहीं सरकार द्वारा 14 फीसदी का योगदान दिया जाता है। सरकार द्वारा इससे तैयार फंड को बाजार में विभिन्न माध्यमों में निवेश किया जाता है। रिटायरमेंट के बाद निवेश की गई रकम का कुछ हिस्सा पेंशन के रूप में कर्मचारी को मिलता रहता है। स्वैच्छिक रिटायरमेंट लेने पर 20 फीसदी राशि नकद और 80 फीसदी पेंशन के रूप में मिलती है। वेतन आयोग या महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी का इस पर कोई असर नहीं होता है।