बागपत। जैन दिगम्बराचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने बड़ौत नगर के ऋषभ सभागार मे आयोजित धर्मसभा में मंगल प्रवचन करते हुए कहा कि एक शत्रु भी जीवन की अशान्ति के लिए बहुत है। अपनी क्षमता- समता देखकर ही कार्य करना चाहिए। सोच-समझकर ही श्रेष्ठ- कार्य प्रारम्भ करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि बिना बिचारे कार्य करने वाला सफलता को प्राप्त नहीं कर पाता है। योग्यता के अभाव में पद भी क्षीण लिए जाते हैं। योग्य व्यक्ति ही पद की गरीमा रख पाता है।
जीवन में स्वयं का अवलोकन आवश्यक है। व्यक्ति को संतुष्ट नहीं होना चाहिए। संतुष्टि विकास पर विराम लगा देती है। जीवन में निरन्तर श्रम करते रहना चाहिए। सही दिशा में किया गया प्रेम कभी व्यर्थ नहीं जाता है। जिसका लक्ष्य के प्रति अदक्ष होता है, वही सफलता प्राप्त करता है।उन्होंने कहा कि नवीन वस्तु में सभी को राग होता है और राग ही परिग्रह-संग्रह के प्रति प्रेरित करता है। राग ही कष्ट का कारण है, इसलिए ‘राग हटाओ, कष्ट मिटाओ।’ व्यक्ति को राग-में-राग होता है, राग के वश ही व्यक्ति द्वेष करता है। राग रस के वश मानव वीतरागता के समरस का पान नहीं कर पाता है। राग- द्वेष छोड़ो, समता-रस का पान करो।जितना- जितना राग होगा, उतना उतना बंध होगा और जितना-जितना वैराग्य होगा उतना उतना निर्बन्ध होगा। भावों से ही बंध होता है, भावों से ही निर्बन्ध होता है।सभा का संचालन डॉक्टर श्रेयांस जैन ने किया। दीप प्रज्वलन दिगंबर जैन समाज समिति के अध्यक्ष प्रवीण जैन मंत्री अतुल जैन, अशोक जैन, सुदेश जैन द्वारा किया गया। पाद प्रक्षालन का सौभाग्य दिगंबर जैन डिग्री कॉलेज कमेटी और जैन मिलन पुष्प द्वारा किया गया। जिसमे धन कुमार जैन अध्यक्ष, धनेंद्र जैन मंत्री, रमेश जैन, राकेश जैन, विमल जैन, संजय जैन, अरविंद जैन, राजकुमार जैन, वीरेंदर जैन, अजय जैन, अनुज जैन, सुधीर जैन, विनय जैन, संजय जैन, गौरव जैन नीरज जैन उपस्थित थे।