बागपत। जनपद के बड़ौत स्थित जैन स्थानक में आयोजित प्रवचन सभा में राजऋषि मुनि राजेंद्र मुनि जी महाराज ने कहा कि पर्यूषण पर्व आत्म कल्याण का पर्व है।
पर्यूषण पर्व के दूसरे दिन मुनि श्री ने भगवान अरिष्टनेमी के काल में कृष्ण वासुदेव व उनकी माता देवकी के बारे में विस्तार से बताया। श्रीकृष्ण के छह सहोदर भ्राता, जो सुलसा देवी के पुत्र थे और जो दीक्षा अंगीकार कर साधु बन गए थे, भिक्षा लेने के लिए देवकी के महल में पहुंचे। यह वर्णन बहुत हृदयस्पर्शी एवं मार्मिक था। मुनि श्री की प्रस्तुति बहुत प्रभावक थी ।
राजऋषि राजेंद्र मुनि जी महाराज ने कहा कि ये पर्यूषण पर्व सांसारिक बंधनों से दूर रहकर अपने आत्म कल्याण करने का पर्व है। उन्होंने संयम और तप का विशेष महत्व बताया। उनके अनुसार, साधु, संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करता है।दोनों में भेद करते हुए बताया कि गृहस्थ में तप बहुत अधिक हो जाता है पर संयम की कमी बनी रहती है। जबकि साधुता में संयम की विशेषता बनी रहती है। वहां तप को संयम से कम महत्व दिया जाता है। उन्होंने बताया कि सहज तपस्या संयम है, कठोर संयम तपस्या है। सभा मे जयंत मुनि जी महाराज ने भी मंगल प्रवचन दिये। अठाई के दूसरे दिन दिल्ली, पंजाब, हरियाणा आदि अनेक स्थानों से जैन श्रद्धालु पहुँचकर धर्म लाभ ले रहे हैं।
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