बछरावां, रायबरेलीः जन सामना ब्यूरो। विधानसभा चुनाव से पहले सूबे के निजाम योगी आदित्यनाथ सहित भारतीय जनता पार्टी सभी नेताओं का मुद्दा सिर्फ प्रदेश की अफसरशाही व नौकरशाही की रग-रग में बह रहे भ्र्ष्टाचार रूपी खून का खात्मा व जंगलराज से आमजनमानस को मुक्ति दिलाना था। वह अपनी कोशिश में कामयाब भी हुए और प्रदेश में अपनी सरकार तो बना ली। लेकिन जनता की कसौटी पर खरे नही उतर पा रहे हैं। क्योंकि उन्होंने सिर्फ दुल्हन बदली है डोली व कहार नही। अगर वास्तव मे भ्रष्टचार को समाप्त करना है तो दुल्हन के साथ -साथ डोली व कहार भी बदलने होंगे। विदित हो कि मनमोहन सरकार ने अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार को खत्म करने का अस्त्र सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 आमजनमानस को उपलब्ध कराया था। जिसका इस्तेमाल कर कई लोगो ने भृष्टाचार की पोल खोलते हुए कई भष्ट्राचार चारियो को बेनकाब किया था। वर्तमान समय में अफसर व नौकर शाही ने जनता के इस अधिकार को भी बौना बना दिया है। बिशुनपुर निवासी समाजसेवी जयसिंह ने कस्बे की जनता की समस्याओं को दृष्टिगत करते हुए व नगरपंचयत कार्यालय में ब्याप्त भ्रस्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ते हुए 11-10-2017 को 04 बिंदुओं में एवम 25-10-2017 को 03 बिंदुओं में विकासकार्यो से सम्बंधित सूचनाएं मांगी गई थी। लेकिन समयावधि बीत जाने के बावजूद भी कार्यालय द्वारा वांछित सूचनाएं उपलब्ध नही कराई गई। तत्कालीन अधिशासी अधिकारी पवनकिशोर मौर्या द्वारा आश्वाशन दिया गया कि समयावधि में सूचनाएं उपलब्ध करा दी जाएंगी। लेकिन कुछ समयोपरांत उनका तबादला हो गया। नवांगतुक अधिशासी अधिकारी अजीत कुमार बागी जो कि आने के बाद आज तक कार्यालय में उनके दर्शन नही हुए। फोन द्वारा सम्पर्क करने पर उनके द्वारा भी वही घिसा-पीटा आश्वासन दिया गया कि जल्द ही सूचनाएं उपलब्ध करा दी जाएंगी। नगरपंचयत कार्यालय में 30 वर्षों से अंगद की तरह पैर जमाये लिपिक अशोककुमार वर्मा प्रार्थी के साथ दुर्व्यवहार एवम मूछों पर ताव देते हुए कहता है कि ऐसे ही नही यहाँ पर 30 वर्षों से जमा हूँ। अध्यक्ष व सभासद सब हमारी जेब मे रहते है।जिसको जो उखाड़ना है उखाड़ ले। और तुम सिर्फ पत्रकारिता करो। हमारे चक्कर में मत पड़ो नही तो………. सबसे अहम सवाल यह है कि आखिर में कार्यालय द्वारा प्रार्थी को सूचनाएं उपलब्ध क्यों नही कराई जा रही है। कही भ्रस्टाचार के चूल्हे में रोटियां तो नही सेकी गई।या फिर फिर वर्षों से जमे बाबू के भर्ष्टाचार में लिप्त होने की पोल खुलने का डर है।सूचनाएं उपलब्ध न कराना इस ओर इंगित करता है कि कार्यालय द्वारा भ्रष्टाचार के चूल्हे में रोटियां सेंककर दही-मक्खन के साथ खाई गई है। अगर जल्द ही सूचनाएं उपलब्ध नही कराई गई तो प्रार्थी राजयसूचना आयुक्त की शरण मे जाने को विवश होगा।