हाथरसः जन सामना संवाददाता। ग्राम संगीला स्थित मां दुर्गा मंदिर पर चल रही श्री रामकथा में व्यासपीठ से प्रवचन करते हुये आचार्या शकुन्तला शर्मा ने कहा कि अवध में जहां प्रातःकाल से ही वेद ध्वनि सुनाई देती थी, वहां श्री राम वनवास के समाचार से हा-हाकार मचा हुआ है। कोई राजा दशरथ को दोष दे रहा है, तो कोई रानी कैकई को। सारे अवधवासी एक ही बात पर अड़े हुये हैं कि हम श्रीराम को वन नहीं जाने देंगे। मां कौशल्या ने जब सुना कि श्री राम वन को जा रहे हैं, तो कहा-बेटा अगर दोनों की आज्ञा है तो प्रसन्न मन से जाओ। वन तुमको सैकड़ों अयोध्याओं से भी सुखकारी हो। जानकीजी ने जब सुना तो वह भी वन जाने को तैयार हो गयीं। इधर राम ने जब लक्ष्मण के साथ जाने की बात सुनी तो उन्हें अपनी मां से आज्ञा लेने के लिये भेज दिया। लखन द्वारा राम के साथ वन जाने की आज्ञा मांगी तो मां ने कहा-लखन तेरी असली मां तो श्री जानकीजी हैं और पिता श्री राम हैं। जहां श्री राम-जानकी हैं वहीं तेरी अयोध्या है। अतः तुझे मेरे दूध की सौगंध है कि प्रभू सेवा करते समय तेरे मन में स्वप्न में भी द्वेष, ईष्र्या आदि का विचार नहीं आना चाहिये। लखनजी को सुनते ही पसीना आ गया और बोले कि मां तू क्या बोलती है? प्रभू मेरे कारण ही वन को जा रहे हैं। तब मां ने समझाया कि बेटा तुझे नहीं मालूम कि तू शेषनाग का अवतार है। धरती तेरे ही शीश पर है। धरती पर पाप का बोझ इतना भारी हो गया है कि तू धरती के भार को सहन नहीं कर पा रहा है। अतः प्रभू श्री राम तेरे सिर के भार को हल्का करने को ही वन में जा रहे हैं।
अंत में आचार्या शकुन्तला शर्मा ने कहा कि लखनजी ने प्रभू श्री राम की सेवा के लिये चैदह वर्ष की सेवा का संकल्प ले लिया। पुत्र के शब्द और संकल्प को सुनकर मां का हृदय भर आया, नेत्र छलछला आये। मां बोली-बेटा! आज तूने मेरा पुत्रवती होने का स्वरूप सिद्ध कर दिया। भक्तजन श्रीराम श्रवण कर पुण्य के भागी बन रहे हैं।