लखनऊ मुल्क के वजीर-ए-खजाना जिस समय संसद में 2018-19 का बजट भाषण पढ़ रहे थे ठीक उसी समय राजस्थान और पश्चिम बंगाल में उपचुनाव की 5 सीटों के नतीजों की गिनती हो रही थी। इधर वित्त मंत्री ने गांव, गरीब, किसान पर सरकारी खजाना लुटाकर अपना भाषण खत्म किया, उधर पाँचों सीटों के नतीजों का एलान हुआ। पूरी पांचों सीटें भाजपा बुरी तरह से हार गई। कांग्रेस के प्रवक्ता ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि आज राजस्थान कल पूरा हिंदुस्तान। कुछ ऐसा ही आमार बंगाल में भी सुनने को मिला। यहां यह बताना जरूरी है कि इन उपचुनावों में भाजपा के ‘पोस्टर ब्वाय/स्टार प्रचारक’ नरेंद्र मोदी प्रचार करने नहीं गये थे। अलबत्ता फीता काटने उसी दौरान राजस्थान जरूर गये थे। इससे पहले मध्य प्रदेश, पंजाब के उपचुनाव भी भाजपा हार चुकी है और तमाम कसरतों, इज्जतहतक जुम्लों और 6 करोड़ से अधिक गुजरातियों से ‘ये चुनाव भाजपा नहीं गुजरात हारेगा’ बोलकर उनके पांवों पर अपनी पगड़ी रख बमुश्किल गुजरात चुनाव में फतह हासिल हुई। इन हादसों से वोटरों का ध्यान हटाने के लिए महात्मा गांधी की हत्या के मुकदमे को दोबारा शुरू करने, लोकसभा, विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने के साथ तमाम मेले-ठेलों, कुंभ आयोजन, इन्वेस्टर समिट, आयुष्मान भारत, एडवांटेज असम, मुफ्त के सैकड़ों वायदे और वन्देमातरम के साथ 2019 का ‘संग-राम’ जारी है और इस संग्राम का सारा दारोमदार आधी-अधूरी निकाय चुनाव की विजयभूमि उत्तर प्रदेश है, जहां ‘रामलला’ तम्बू के नीचे पुलिस के पहरे में आज भी वनवास भोगने को अभिशप्त हैं। वहीं भाजपा विजय यज्ञ के सेनापति दीपोत्सव, गौशाला, गंगा-गोमा आरती करते-कराते, मन्दिर-मन्दिर घंटी बजाते वायदों का प्रसाद बांटते हुए जनधन से बांके बिहारी संग होली खेलने की जिद ठाने अपनी आस्था के साथ-साथ हिंदुत्व की अलख जगाते हुए ‘यूपी परिक्रमा’ कर रहे हैं।
यही नहीं ताजा बजट में चुनाव आयोग को ढाई अरब से अधिक की धनराशि आवंटित की गई है। कहने को तो यह कहा जा रहा है कि मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा के मार्च में, कर्नाटक के अप्रैल में और छतीसगढ़, राजस्थान व मध्य प्रदेश के चुनाव इसी साल के आखिर में होने हैं, इसके अलावा बजट में दर्शाया गया है कि निर्वाचन आयोग को नई इमारत के लिए जमीन की खरीदी और इण्डिया इंटरनेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ डेमोक्रेसी एण्ड इलेक्शन मैनेजमेंट कैम्पस के निर्माण के लिये 41 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी की गई है। बावजूद इसके सियासी गलियारों में चर्चा गरम है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने की सरकार की मंशा के चलते चुनाव आयोग के बजट में इतनी बड़ी बढ़ोतरी की गई है। इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा व विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की वकालत और बजट सत्र में संसद के दोनों सदनों को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की दोनों चुनाव एक साथ कराने की मांग को रक्खा जा रहा है। हालांकि इसके लिए संविधान और कई कानूनों में बदलाव करने होंगे।
अटकलें तो यह भी लगाई जा रही हैं कि अयोध्या मामले की सुनवाई 8 फरवरी से शुरू हो रही है, जो 30 दिनों में पूरी करने की कोशिश की जायेगी और मई के अंत तक फैसला सुरक्षित कर लिया जाएगा जिसे मुख्य न्यायाधीश के अक्टूबर में रिटायर होने से पहले सुनाया जाएगा। इस अटकल को बल विश्व हिन्दू परिषद के चंदा जुटाओ अभियान चलाए जाने की शुरुआत करने के फैसले से भी मिलता है। यहां बताते चलें कि विहिंप ने 8.25 करोड़ रुपयों का चंदा पहले भी जुटाया था जिनसे रामशिलाएं तराशी गईं हैं। बीच-बीच में साधू-संतों से लेकर नौकरशाह, भाजपाई मन्दिर वहीं बनायेंगे का नारा बुलंद करते रहते हैं। इससे भी अहम नाखुश सहयोगी दलों के बदले हुए सुर भी हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना पहले से ही नाराज है और उसने बजट की भी खुल कर आलोचना की है। बजट पर आंध्र प्रदेश की तेलुगूदेशम का असंतोष, बिहार में जीतन मांझी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, नितीश व पंजाब के शिरोमणि अकाली दल का एकला चलो की सोंच, उत्तर प्रदेश में राजभर की भारत समाज, अपना दल के साथ पार्टी के ही कई सांसद व विधायक अपनी उपेक्षा से बेहद नाराज हैं।
ये सारी वजहें लोकसभा के चुनाव नवम्बर-2018 में कराए जाने की अटकलों को बल देते नजर आ रहे हैं। बेहद पोशीदा खबर है कि भाजपा अपने हिंदुत्व एजेंडे को धार देते हुए अपने सहयोगी दलों की नाराजगी दूर करते हुए समय से पहले मोदी की बरकरार लोकप्रियता को लोकसभा चुनाव कराकर भुना लें। इससे भी आगे दक्षिण में डीएमके के आलावा अभिनेता से नेता बने रजनीकांत और कमल हासन की तेजी बढ़ने से पहले और एडीएमके में तोड़-फोड़ करा फायदा उठाते हुए जल्द चुनाव करा लिए जाएं। पूर्वोत्तर में गुजरात जीत के करतब सी प्लेन के आलावा अन्य प्रलोभनों के साथ ‘अष्ट कमल दल’ अभियान जारी ही है। पश्चिम बंगाल के साथ केरल, पांडुचेरी में संघ की सक्रियता जगजाहिर है, दूसरी ओर भाजपा शासित राज्यों में तमाम योजनाओं की घोषणाओं के साथ ये करेंगे, वो करेंगे और रामराज्य लाएंगे जैसे सपनों के बीच गाय, गंगा, गरीब, तिरंगा, तीन तलाक के हल्ले में ‘संग-राम’ भी चुनावी तम्बू तानते नजर आ रहे हैं, लेकिन इस फैसले पर संघ और सहयोगी संगठनों की मुहर लगनी अभी बाकी है। अगर सब कुछ भाजपा के दो नंबर के ‘शाह’ के मनमुताबिक रहा तो साल के आखिर में देश को लोकसभा चुनावों का सामना करना पड़ सकता है।
इस खबर की पुख्तगी पर विपक्ष की तैयारियां भी मुहर लगाती दिख रही हैं। कांग्रेस अपने संगठन को मजबूत करने के लिए मण्डलवार सम्मेलन के साथ विपक्ष को एक तम्बू के नीचे लाने की कसरत करने में पूरे जोश से जुटी है। सपा तो हलक फाड़कर पहले ही चीख-चीख कर अपने कार्यकर्ताओं से कह रही है कि लोकसभा चुनाव कभी भी हो सकते हैं, तैयार रहें। बसपा भी पूरे दम-खम से बगैर हो-हल्ले के अपने वोट बैंक को एकजुट करने में लगी है। रालोद सहित अन्य दल भी सडकों पर अलख जगाते हुए जल्द चुनाव की तैयारी में लगे हैं। बहरहाल 2019 का ‘संग-राम’ अगर संग यानी पत्थर निकाल कर हो, तो कभी भी हो ‘राम’ भला करेंगे! -राम प्रकाश वर्मा