कानपुरः अर्पण कश्यप। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इच्छा मृत्यु पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने इच्छा म्रत्यु को मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने सभी को सम्मान से मरने का अधिकार दिया है। ये खबर सुन जहॉ लोग सकते में है वही कानपुर की रहने वाली अनामिका मिश्रा मस्कुलर डिसट्रॉफी से पीड़ित मां-बेटी खुश हुयी उनके चेहरे खुशी से खिल उठे। उन्होने रोते हुये कहा कि – घुट-घुटकर मरने से अच्छा है एक बार ही मर ले जिसके लिये प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को खून से प्रार्थना पत्र भी लिख चुकी है।
मामला – कानपुर शहर के शंकराचार्य नगर की रहने वाली शशि मिश्र के पति की 15 साल पहले मौत हो चुकी है। शशि मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नाम की बीमारी से पीड़ित हैं।
इस वजह से चलने-फिरने में असमर्थ हैं और बीते 27 साल से बेड पर हैं। 6 साल पहले इकलौती बेटी अनामिका (33) भी इसी बीमारी की चपेट में आकर लाचार हो गई। शशि के मुताबिक, बेटी के इलाज में घर में रखी जमापूंजी खत्म हो गई। रिश्तेदारों ने मदद तो की लेकिन बाद में उन्होनें भी किनारा कर लिया।
– अब स्थिति यह है कि बिस्तर से उठना भी मुश्किल हो गया है। मां-बेटी मोहल्ले के लोगों के रहमो-करम पर जीने को मजबूर हैं।
अनामिका ने बी कॉम किया हुआ है। उन्होंने बताया-मेरे पिता एक बिजनेसमैन थे। मां की 1985 में अचानक तबियत खराब हुई थी। तब हमें पता चला था कि इनको मस्कुलर डिस्ट्रॉफी है। जब तक पिता जी थे, उन्होंने मां का इलाज कराया। उनकी मौत के बाद घर की जमा पूंजी, जमीन बेचकर हम इलाज कराते रहे।
अनामिका के जज्बे को सलाम
– अनामिका ने बताया कि मैंने स्कूल में पढाया और कोचिंग पढ़कर मां का इलाज कराया और घर के खर्चे चलाये। लेकिन अब इस बीमारी ने मुझे भी अपनी चपेट में ले लिया। 2005 से मैं भी बिस्तर पर हूं।उठने बैठना तो दुर हिलने मे असमर्थ हु मुझे देखने और मदद का आश्वाशन देने तो बहुत लोग आते है पर मदद के नाम पर हाथ खाली
वही आज फैसला सुनकर तो ऑखो से ऑसू रूकने का नाम ही नही ले रहे समझ नही आ रहा कि रोयू य हंसू सरकार ने ये मदद की है य मदद न कर पाने के एवज मे इच्छा म्रत्यु करने को कह रही है खैर सरकार से एक विनती जरूर करूंगी की मेरी इच्छा म्रत्यु की प्रक्रिया का बंदोबश्त करा दे जिससे हमे इस जिल्लत की जिन्दगी से छुटकारा मिले बडा दुख होता है कि जहॉ एक और सरकार उपदेश देती है बेटी बचाओ बेटी पढाओ वही एक बेटी पिछले कई सालो से बिस्तर पर है और सरकार के नुमांईदो को जरा भी शर्म नही
– उन्होंने कहा, मैं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को बहुत पॉजिटिव मानती हूं। जब कोई इच्छा मृत्यु के लिए रिक्वेस्ट करता है तो इसके पीछे बहुत से रीजन होते हैं। हम लोग फिजिकली, मेंटली, इमोश्नली सरवाइव नहीं कर पा रहे हैं।
– आप हर पल मर रहे होते है आपको यह भी नहीं पता होता कि इसका एंड कब होगा। वो तकलीफ एक दिन की तकलीफ से बहुत ज्यादा होती है। जब आप इच्छा मृत्यु के लिए जा रहे हो तो उसमें 10 से 15 दिन का जो भी समय लगेगा उन दिनों को आप एन्जॉय कर सकते है। मेरी मां 27 साल से बेड पर है। यह मेरे लिए बहुत अच्छी खबर है। मैं देखूंगी कि कहां पर मर्शी किलिंग के लिए आवेदन करना है, इस प्रोसेस को समझूंगी।
– इन्डियन एसोशियेशन मस्कुलर डिसट्रॉफी के यूपी प्रेसिडेंट डॉ. ए. के. अग्रवाल ने कहा- मस्कुलर डिसट्रॉफी बीमारी से इंडिया में 0.3 प्रतिशत लोग ग्रसित हैं। जिसका इलाज देश के बाहर यूरोपीय कंट्री में भी नहीं है। इसमें पूरी बॉडी हिल भी नहीं सकती है। वह अपना हाथ तक नहीं हिला-डुला सकता। किसी उम्र में इसका अटैक आ सकता है। इस बीमारी में कोई भी नॉर्मल नहीं रह जाता। यह बीमारी सर्वाइकल से स्टार्ट होती है।
– इसमें इंसान फिजकली रूप से कमजोर होता है, लेकिन मानसिक रूप से स्ट्रॉंग। यदि किसी ने इस बीमारी को खुद पर हावी होने दिया तो इसका असर मानसिकता पर पड़ सकता है।