Tuesday, November 26, 2024
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विश्वकर्मा स्वाभिमान सम्मेलन में लोक कवि बावला को पद्मश्री देने की उठी मांग

चन्दौली, दीपनारायण यादव। आल इंडिया यूनाइटेड विश्वकर्मा शिल्पकार महासभा के तत्वावधान में भोजपुरी भाषा साहित्य के आधुनिक तुलसीदास एंव कवि स्वर्गीय राम जियावनदास बावला जी के जन्म तिथि के अवसर पर एक लान में आयोजित स्मरणाजंली स्वाभिमान अधिकार सम्मेलन को संबोधित करते हुए, राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक कुमार विश्वकर्मा ने कहा कि साहित्य संस्कृति शिक्षा, कला, शिल्प सहित विभिन्न क्षेत्रों में अपने पुरुषार्थ के बल पर देश व दुनियां में विशिष्ट एवं उल्लेखनीय योगदान करने वाले विश्वकर्मा समाज के महापुरुष घोर उपेक्षा और भेदभाव के शिकार है। जिसके चलते उनका आदर्श कृतित्व और विरासत जनसाधारण के बीच से विस्मृत एवं समाप्त हो रहा है, इसलिए महासभा ने अपने महापुरुषों के स्मृतियों को जीवंत रखने का फैसला किया है। इसी क्रम में भोजपुरी भाषा काव्य को नई दिशा देने वाले चकिया के भीखमपुर गांव में 1 जून 1922 को साधारण लोहार परिवार में जन्म लेने वाले उपेक्षित और गुमनाम साहित्यकार लोक कवि रामजियावन दास बावला जी के 97वीं जयंती पर उनके आदर्श कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर चर्चा करते हुए कहा कि वह विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास जी के पाद पीठिका को आत्मसात किया, और उनसे प्रेरित होकर राम चरित्र मानस के विषय मे देशी भोजपुरी भाषा में उद्भावनाएं रची,तथा कवित सवैया परंपरा को भोजपुरी आयाम दिया। इस प्रकार वह लोक शास्त्र और साहित्य शास्त्र के बीच सेतु का काम किये,उन्होंने बताया की भैंस चराते समय वन मार्ग में उन्हें बनवासी राम का साक्षात्कार हुआ,जिससे अनायास उनके मुख से बोल फूट पड़े,बबुआ बोलता ना,के हो देहलेस तोहके बनवास। उनकी पहली रचना 1957/58 में आकाशवाणी से प्रसारित हुई, जो काफी लोकप्रिय हुई और सराही गई।अपनी इस रचना से बावला जी अमर हो गए। उन्होंने कहा कि बावला जी निस्पृह फक्कड़ कवि थे, उनका यह दुर्लभ गुण उनकी कवि चेतना से जुड़कर अपने आप में रचनाकारों के लिए भी स्पृहणीय है। उन्होंने कहा कि बावला जी विश्वकर्मा समाज के गौरव और स्वाभिमान के प्रतीक है।उनकी विरासत और स्मृतियां हमारी शान और पहचान है, जिसे जीवंत रखने के लिए हम संकल्प बद्ध हैं ।सम्मेलन में अन्य वक्ताओं ने सामाजिक एकजुटता पर बल देते हुए कहा नवगठित सरकार से शोषित वंचित और उपेक्षित समाज के लोगों को बहुत सारी उम्मीदें हैं। सरकार ने हर वर्ग के लिए विकास, समता, ममता और विश्वास का वायदा किया है। सरकार अपने वायदे पर खरा नहीं उतरती तो विश्कर्मा समाज के लोग अपने अधिकारों तथा लंबित मांगों को लेकर आंदोलन की राह पर चलने को मजबूर होंगे। इस अवसर पर बावला जी के गीतों का संग्रह गीतलोक पुस्तक का लोकार्पण हुआ, तथा समकालीन भोजपुरी साहित्य के कई रचनाकारों ने अपनी रचनाओं को प्रस्तुत करते हुए सामाजिक विसंगतियों 6 असमानता भेदभाव और भ्रष्टाचार पर करारा प्रहार किया। इस मौके पर मूर्धन्य रचनाकारों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया ।सम्मेलन में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर भारत सरकार से बावला जी को मरणोपरांत पदमश्री सम्मान देने की मांग की गई, तथा चकिया भीखमपुर मार्ग का नामकरण बावला जी के नाम पर करने सहित स्मृति प्रवेश द्वार एवं पुस्तकालय का निर्माण कराने की मांग नगर पंचायत चकिया तथा शासन से की गई। कार्यक्रम के आरंभ में भगवान विश्वकर्मा एवं बावला जी के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलित किया गया।स्वागत गीत पंचम विश्वकर्मा और उनके साथियों ने प्रस्तुत किया। भोजपुरी काव्य रचनाकारों में प्रमुख रूप से हरबंस सिंह बवाल, राजेश विश्वकर्मा राजू, बंधु पाल बंधु, राजेंद्र प्रसाद सिंह मौर्य भ्रमर, अलियार प्रधान, ओम प्रकाश शर्मा, राजेंद्र प्रसाद गुप्त बावरा, मौजूद थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विजय बहादुर विश्वकर्मा (सेवानिवृत्त कैप्टन) एवं संचालन श्रीकांत विश्वकर्मा ने किया। विशिष्ट अतिथि श्रीमती रेखा शर्मा अध्यक्ष नगर पालिका परिषद रामनगर एवं डॉ राजेश कुमार शर्मा थे।