नई दिल्ली, जन सामना ब्यूरो। केन्दीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि भारत मरूस्थलीकरण से मुकाबला करने में उदाहरण प्रस्तुत करके नेतृत्व प्रदान करेगा। श्री जावड़ेकर ने विश्व मरूस्थलीकरण के विरूद्ध लड़ाई और सूखा दिवस के अवसर पर आज नई दिल्ली में एक समारोह को सम्बोधित करते हुए कहा कि भारत एक देश के रूप में किसी वैश्विक दबाव में कोई लक्ष्य तय नहीं करता बल्कि भारत के लक्ष्य वास्तविक सतत विकास के लिए होते हैं। श्री जावड़ेकर ने घोषणा की कि भारत, विभिन्न पक्षों के सम्मेलन के 14वें अधिवेशन (सीओपी-14) का आयोजन 29 अगस्त से 14 सितम्बर, 2019 तक करेगा।
पर्यावरण मंत्री ने कहा कि जमीन के क्षरण से देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 30 प्रतिशत प्रभावित हो रहा है। भारत की अपेक्षाएं ऊंची है और भारत समझौते के प्रति संकल्पबद्ध है। श्री जावड़ेकर ने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई), मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, मृदा स्वास्थ्य प्रबन्धन योजना,प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीकेएसवाई), प्रति बूंद अधिक फसल जैसी भारत सरकार की विभिन्न योजनाएं मिट्टी के क्षरण में कमी ला रही हैं। इस अवसर पर पर्यावरण मंत्री ने सीओपी-14 का लोगो जारी किया।
इस अवसर पर नीति आयोग के सीईओ श्री अमिताभ कांत ने कहा कि विश्व मरूस्थलीकरण के विरूद्ध लड़ाई और सूखा दिवस विश्व समुदाय को यह याद दिलाने का अनूठा अवसर है कि मरूस्थलीकरण की समस्या से निपटा जा सकता है, समाधान संभव हैं और सभी स्तरों पर सामुदायिक भागीदारी और सहयोग मजबूत करना ही इसका उपाय है। पर्यावरण वन तथा जलवायु पर्यावरण सचिव श्री सी के मिश्रा ने कहा कि विश्व मरूस्थलीकरण के विरूद्ध लड़ाई और सूखा दिवस(डब्ल्यूडीसीडी) सतत भूमि प्रबन्धन के बारे में भारत द्वारा की गई प्रगति पर विचार करने का अवसर प्रदान करेगा।
केन्द्रीय मंत्री ने वन भूमि पुनर्स्थापन (एफएलआर) और भारत में बोन चुनौती पर क्षमता बढ़ाने के बारे में एक अग्रणी परियोजना लॉंच की। यह परियोजना 3.5 वर्षों की पायलट चरण की होगी, जिसे हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, नागालैंड तथा कर्नाटक में लागू किया जाएगा। परियोजना का उद्देश्य भारतीय राज्यों के लिए श्रेष्ठ व्यवहारों तथा निगरानी प्रोटोकॉल को विकसित करना और अपनाना तथा एफएलआर और बोन चुनौती पर इन पांच राज्यों के अन्दर क्षमता सृजन करना होगा। परियोजना के आगे के चरणों में पूरे देश में इसका विस्तार किया जाएगा।
बोन चुनौती एक वैश्विक प्रयास है। इसके तहत दुनिया के 150 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर 2020 तक और 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर 2030 तक वनस्पतियां उगाई जायेंगी। पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, 2015 में भारत ने स्वैच्छिक रूप से बोन चुनौती पर स्वीकृति दी थी। भारत ने कहा था कि 13 मिलियन हेक्टेयर गैर-वनीकृत एवं बंजर भूमि पर 2020 तक और अतिरिक्त 8 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर 2030 तक वनस्पतियां उगाई जायेंगी।
संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत 3 रियो समझौते हैं – जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क समझौता (यूएनएफसीसीसी), जैव विविधता पर समझौता (सीबीडी) और मरुस्थलीकरण के विरूद्ध लड़ाई के लिए संयुक्त राष्ट्र समझौता (यूएनसीसीडी)।
मरुस्थलीकरण के विरूद्ध लड़ाई के लिए संयुक्त राष्ट्र समझौता एक मात्र अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो पर्यावरण एवं विकास के मुद्दों पर कानूनी बाध्यता प्रदान करता है। संयुक्त राष्ट्र ने 17 जून को ‘विश्व मरुस्थलीकरण के विरूद्ध लड़ाई और सूखा दिवस’ घोषित किया है।
भारत 29 अगस्त से 14 सितंबर, 2019 के दौरान इंडिया एक्सपो मार्ट, ग्रेटर नोएडा में सीओपी-14 के 14वें सत्र का आयोजन कर रहा है। सीओपी का प्रमुख कार्य उन रिपोर्टों की समीक्षा करना है जो सदस्य देश अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के संदर्भ में बैठक के दौरान रखते हैं। भारत को चीन से 2 वर्षों के लिए सीओपी की अध्यक्षता करने का अवसर प्राप्त होगा।
दो सप्ताह तक चलने वाले इस सम्मेलन में 197 देशों के 5000 से ज्यादा प्रतिनिधि भाग लेंगे। इस सम्मेलन में राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, स्थानीय निकाय, विज्ञान और अनुसंधान क्षेत्र, निजी क्षेत्र, अंतर्राष्ट्रीय व स्वयंसेवी संगठन और मीडिया के प्रतिनिधि भाग लेंगे।
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