Tuesday, November 26, 2024
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‘ड्रग्स-फ्री इंडिया’ तथा ‘ड्रग्स-फ्री वल्र्ड’ का निर्माण कड़े

अन्तर्राष्ट्रीय कानून, योग तथा संतुलित शिक्षा के द्वारा सम्भव है
लखनऊ, प्रदीप कुमार सिंह। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 7 दिसंबर 1987 को की गयी घोषणा का उसके अधिकांश सदस्य देशों ने मिलकर समर्थन किया कि विश्व भर में 26 जून को प्रतिवर्ष नशीली दवाओं के दुरूपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जायेगा। यूएनओ द्वारा यह नारा दिया गया है कि जस्टिस फाॅर हैल्थ – हैल्थ फाॅर जस्टिस। साथ ही बच्चों और युवाओं को अभिभावकों द्वारा सही मार्गदर्शन देने के लिए उनकी बात को ध्यान से सुनना उन्हें स्वस्थ और सुरक्षित विकसित होने में मदद करता है। नशीली दवाओं के दुरूपयोग और अवैध तस्करी को अंतर्राष्ट्रीय समस्या के रूप में आंका गया है। इसलिए अब विश्व के सभी देशों को मिलकर इस अंतर्राष्ट्रीय समस्या को जड़ से मिटा देने का समाधान खोजना है। ‘ड्रग्स-फ्री वल्र्ड’ अभियान को प्रभावशाली बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ नियंत्रण कार्यालय (यूएनडीसीपी) की शुरूआत यूएन द्वारा 1991 में नशाखोरी एवं मादक पदार्थों की तस्करी से निपटने के वैश्विक प्रयासों के अंतर्गत शुरू किया गया था। यह संयुक्त राष्ट्र सचिवालय के मादक द्रव्य प्रभाग, अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ नियंत्रण बोर्ड के सचिवालय तथा संयुक्त राष्ट्र नशाखोरी नियंत्रण कोष की गतिविधियों के मध्य समन्वय तथा एकीकरण स्थापित करता है। यह मादक पदार्थ नियंत्रण एवं अपराध रोकथाम हेतु संयुक्त राष्ट्र कार्यालय तथा अंतर्राष्ट्रीय अपराध रोकथाम केंद्र (सीआईसीपी) का एक अभिन्न अंग भी है।  ड्रग तस्करी के खिलाफ सात देशों में कानून इस प्रकार हैं – (1) अमेरिका में ड्रग तस्करी के आरोप में पहली बार पकड़े जाने पर 40 साल की कठोर सजा है। (2) संयुक्त अरब अमीरात के देशों में तो ड्रग तस्करी के आरोपी की या तो हाथ काट दिया जाता है या फिर मौत के घाट उतार देने का प्रावधान है। (3) सिंगापुर में 1973 में ड्रग तस्करी के खिलाफ कड़ा कानून पारित हुआ जिसके तहत 30 किलोग्राम या उससे अधिक कोई भी नशीला पदार्थ जैसे भांग, गांजा व कोकीन रखने या पकड़े जाने पर मौत की सजा दी जाती है। (4) मलेशिया में भी ड्रग तस्करी के खिलाफ कड़ा कानून बनाया गया है। यहां 50 किलो से ज्यादा मादक पदार्थ रखने वाले को फांसी के फंदे पर लटका दिया जाता है। (5) वर्ष 2017 के एक समाचार के अनुसार फिलीपींस में एक ही दिन में 32 ड्रग तस्कर मार दिए गए। जब से देशभर में अभियान शुरू हुए तब से कानून प्रवर्तन अधिकारियों के साथ मुठभेड़ों में मादक पदार्थों की कथित तौर पर तस्करी करने वाले 3,200 से ज्यादा तस्कर मारे जा चुके हैं।  इसी प्रकार (6) वर्ष 2017 के एक समाचार के अनुसार इंडोनेशिया में ड्रग्स की समस्या से निपटने के लिए पुलिस को ड्रग डीलर्स को सीधे गोली मार सकती है। प्रेसिडेंट जोको विडोडो ने देश में तेजी से बढ़ रही इस समस्या से निपटने के लिए कानून प्रवर्तन अधिकारियों को ड्रग तस्करों को गोली मारने के निर्देश दिए हैं। इस फैसले की तुलना फिलीपीन्स के प्रेसिडेंट रोड्रिगो दुर्तेते के ड्रगवार से हो रही है। (7) वहीं भारत में ड्रग तस्करी के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट 1985 के तहत अलग-अलग सजा के प्रावधान हैं। इसमें धारा 15 के तहत एक साल, धारा 24 के तहत 10 की सजा व एक लाख से दो लाख रूपए तक का जुर्माना और धारा 31ए के तहत मृत्युदंड तक का प्रावधान है। यूएन की ड्रग रिपोर्ट के अनुसार हर साल विश्व भर में करीब 322 बिलियन डालर का अवैध व्यापार होता है। जिन पौधें से यह पदार्थ ड्रग बनाये जाते है उनकी अवैध खेती गंभीर चिंता का विषय है। सामान्यतः लोग ऐसी खेती के दुष्प्रभाव से अवगत नहीं होते। पदार्थ की अवैध खेती रोकने के लिए पंचायती राज संस्थाओं एवं स्थानीय निकासों की भागेदारी आवश्यक रूप से अपेक्षित है। इस दिशा में नशा मुक्ति केन्द्र तथा नशा उन्मुलन के लिए विधिक सेवायें कार्यरत हैं। इन्हें अधिक से अधिक सर्वसुलभ बनाना चाहिए।   नशे की लत का मैं भी किशोर तथा युवा अवस्था में भुक्त भोगी रहा था। मेरे स्वर्गीय पिता जो कि एक अच्छे चिकित्सक थे फिर भी वह दिन-रात सिगरेट तथा शराब के नशे में पूरी तरह डूबे रहते थे। पिताजी से ही इस बुरी आदत का मैं भी शिकार बन गया था। अब मैं प्रबल इच्छा शक्ति के बूते नशे की आदत से पूरी तरह मुक्त हूं। जबसे मैंने जीवन का एक बड़ा मकसद बनाया तब से मैं तथा मेरा परिवार भी नशा मुक्त जीवन जी रहा है। मैं 63 वर्षीय व्यक्ति हूं। विगत 38 वर्षों से लेखन को मैंने अपना मकसद प्राप्त करने का हथियार बनाया है।  सार्थक जीवन जीने के लिए जीवन में कोई न कोई मकसद होना जरूरी है। ईश्वर ने यह मानव शरीर किसी विशेष उद्देश्य से दिया है। अनमोल मानव जीवन को व्यर्थ नशे में बरबाद नहीं करना चाहिए। मानव जन्म हमें लोक कल्याण के द्वारा एकमात्र अपनी आत्मा के विकास के लिए मिला है। इसलिए जीवन के प्रत्येक पल को पूरे उत्साह के साथ जीना चाहिए। उत्साह सबसे बड़ी जीवन शक्ति तथा निराशा सबसे बड़ी कमजोरी है। जीवन के प्रत्येक क्षण खुश रहने का स्वभाव विकसित करें। प्रत्येक मनुष्य को जीवन का मकसद ऐसा चुनना चाहिए जिसमें हम अपने शरीर, मन, मस्तिष्क तथा आत्मा की पूरी शक्ति लगा सके।  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी हाल में ‘ड्रग्स-फ्री इंडिया’ अभियान चलाने की बात कही है। उन्होंने चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे देश के युवा गुटका, चरस, गांजा, अफीम, स्मैक, शराब और भांग आदि के नशे में पड़ कर बर्बाद हो रहे हैं। इस कारण से वे आर्थिक, सामाजिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से विकलांगता की ओर अग्रसर हो रहे हैं। वे अपने व परिवार को समाज में नीचा दिखा रहे हैं। अनुभवी काउंसलरों तथा योग शिक्षकों द्वारा रोगी को मानसिक, आध्यात्मिक, शारीरिक रूप से प्रार्थना व नियमित योग द्वारा रोगी का खोया हुआ आत्म विश्वास फिर से जागृत कर उसे नशे के जाल से निकाला और समाज में स्थापित किया जा सकता है।  प्रधानमंत्री ने कहा कि ड्रग्स थ्री डी बुराइयों को लाने वाला है और ये बुराइयां जीवन में डार्कनेस (अंधेरा), डिस्ट्रक्शन (बर्बादी) तथा डिवास्टेशन (तबाही) हैं। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है जिनके जीवन में कोई ध्येय नहीं है, लक्ष्य नहीं है, जीवन में एक खालीपन है, वहां ड्रग्स का प्रवेश सरल होता है। ड्रग्स से अगर बचना है और अपने बच्चे को बचाना है, तो उसे ध्येयवादी बनाइए। जीवन में कुछ अलग करने के इरादे वाला बनाइए, बड़े सपने देखने वाला बनाएं। फिर बाकी बेकार तथा नकारात्मक चीजों की तरफ उनका मन ही नहीं लगेगा। किसी विद्वान ने कहा है कि अन्धकार को कोई अस्तित्व नहीं होता है। प्रकाश का अभाव ही अन्धकार है। कमरे मंे फैले अन्धेरे को लाठी से भगाने से वह दूर नहीं होगा इसके लिए एक दीपक जलाने की आवश्यकता है।  योग और अध्यात्म दोनों ही मनुष्य के तन और मन दोनों को सुन्दर एवं उपयोगी बनाते हैं। योग का मायने हैं जोड़ना। योग मनुष्य की आत्मा को परमात्मा की आत्मा से जोड़ता है। इसलिए हमारा मानना है कि प्रत्येक बच्चे को बचपन से ही योग एवं अध्यात्म की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए। सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए ‘योग’ वर्तमान समय की सारे विश्व की अनिवार्य आवश्यकता है और यह हमारी महान साँस्कृतिक विरासत भी है। जब इंसान मन तथा इंद्रियों के नियंत्रण में आने लगता है तो नशे की आदत सर पर चढ़ जाती है। इस मानसिक तथा आत्म नियंत्रण को पाने में योग मदद करता है।  विश्व के सबसे बड़े विद्यालय लखनऊ के सिटी मोन्टेसरी स्कूल के अपने 38 वर्षों के शैक्षिक तथा लेखन अनुभव के आधार पर मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि शिक्षा द्वारा ही सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। आज विश्व भर के आधुनिक विद्यालयों के द्वारा बच्चों को एकांकी शिक्षा अर्थात केवल विषयों की भौतिक शिक्षा ही दी जा रही है, जबकि मनुष्य की तीन वास्तविकतायें होती हैं। पहला- मनुष्य एक भौतिक प्राणी है, दूसरा- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा तीसरा मनुष्य- एक आध्यात्मिक प्राणी है। इस प्रकार मनुष्य के जीवन में भौतिकता, सामाजिकता तथा आध्यात्मिकता का संतुलित विकास जरूरी है।  हमारा मानना है कि मनुष्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास के लिए उसे सर्वश्रेष्ठ भौतिक शिक्षा के साथ ही उसे सामाजिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा भी देनी चाहिए। इस प्रकार सर्वशक्तिमान परमेश्वर को अर्पित मनुष्य की ओर से की जाने वाली समस्त सम्भव सेवाओं में से सर्वाधिक महान सेवा है- (अ) बच्चों की शिक्षा, (ब) उनके चरित्र का निर्माण तथा (स) उनके हृदय में परमात्मा के प्रति अटूट प्रेम उत्पन्न करना। हमारा अनुभव तथा दृढ़ विश्वास है कि संतुलित शिक्षा प्राप्त बालक जीवन में कभी भी नशे के प्रति किसी भी कीमत पर आकर्षित नहीं हो सकता। इस प्रकार विश्व की एक स्वस्थ तथा संतुलित नई पीढ़ी का निर्माण होगा।     बच्चों पर जो अभिभावक हर वक्त पढ़ाई का बोझ लादे रहते हैं। निरन्तर तनाव में बच्चों को कई बार नशीले पदार्थों के सेवन की ओर ले जाती हैं। अगर वे खेलों, कला, संगीत, लेखन, नृत्य, बागवानी, प्रकृति प्रेम आदि में भी रूचि लेते हैं, तो उनका काफी खाली समय इन सकारात्मक गतिविधियों में लग जाता है। खेलों, कला, संगीत, लेखन, नृत्य, इनोवेशन आदि में वे दूसरों से बेहतर प्रदर्शन करना चाहते हैं। ऐसे में नशे की तरफ बढ़ने की आशंका काफी कम हो जाती है। नशे से बचे रहने की कोई गारंटी नहीं है, क्यांेंकि बाहरी दुनिया का प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है, लेकिन अगर व्यक्ति खेलों, लोक कलाओं, बागवानी, लेखन, संगीत, इनोवेशन आदि में संलग्न है तो नशे के प्रभाव को जड़ से समाप्त किया जा सकता है। वे बेहतर करना चाहते हैं, क्योंकि कामयाबी का नशा किसी भी दूसरी चीज के नशे से कहीं बड़ा होता है। विश्व प्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ के प्रबन्धक-संस्थापक डा. जगदीश गाँधी के मार्गदर्शन में  पिछले 19 वर्षों से लगातार विश्व के मुख्य न्यायाधीशों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करता आ रहा है। इस अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में अभी तक विश्व के 133 देशों के 1222 मुख्य न्यायाधीश, न्यायाधीश एवं राष्ट्राध्यक्ष आदि प्रतिभाग कर चुके हैं तथापि विश्व की न्यायिक बिरादरी ने सी.एम.एस. की विश्व एकता, विश्व शान्ति व विश्व के ढाई अरब बच्चों के सुरक्षित भविष्य हेतु वैश्विक लोेकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) के गठन को भारी समर्थन दिया है।  विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक भारत को एक कदम और बढ़ाकर विश्व को अन्तर्राष्ट्रीय ड्रग्स तस्करों के चंगुल से, अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद से, पांच वीटो पाॅवर की कैद से तथा परमाणु शस्त्रों की होड़ से मुक्त कराकर वैश्विक लोेकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) का गठन करने की अगुवाई करना चाहिए। विश्व के प्रत्येक व्यक्ति पर समान रूप से लागू होने वाले कड़े अन्तर्राष्ट्रीय कानून बनाने के लिए हमें विश्व न्यायालय की भी स्थापना करनी पड़ेगी। ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय कानून जिसे तोड़ने पर सख्त सजा का प्रावधान हो। मानव जाति इसके लिए युगों-युगों तक इस युगानुकूल तथा 21वीं सदी के सबसे पुनीत अभियान के लिए भारत की हृदय से ऋणी रहेगी। वसुधैव कुटुम्बकम् का उद्घोष करने वाला भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित करेगा। गुफाओं से शुरू हुई मानव सभ्यता की महायात्रा की विश्व एकता की अन्तिम मंजिल अब बस मानव जाति से एक कदम दूर है।