कानपुरः जन सामना संवाददाता। आप सोंच रहे होंगे कि यह कार किसी विधायक जी की है तो आपकी नजरें धोखा खा गई हैं। यह कार तो किसी ‘विधायक के सेवक’ की है, इसमें ‘विधायक’ बड़ा सा लिखा है और ‘सेवक’ सूक्ष्म अक्षरों में ऐसा लिखा है जो हरएक ना पढ़ सके।
अब ऐसे में पहली नजर में तो यह कार किसी विधायक की ही लगती है। यह कार लाॅक डाउन के दौरान पुलिस द्वारा दौड़ाकर बर्रा-8 राम गोपाल चौराहा पर पकड़ी गई। पहले पहल तो जब पुलिस ने रोकने का प्रयास किया तो ड्राईवर ने पुलिस कर्मियों के कहने को नहीं माना और पुलिस को धता बताते हुए कार को सरपट दौड़ा दिया, सशंकित पुलिस कर्मियों ने कार का इस लिये पीछा कर लिया कि अगर विधायक जी होते तो ऐसे नहीं भागते, जिस तरह से भागे थे। पीछा कर कार को पकड़ने के बाद जब चौराहा पर ले आये तो कार में बैठे विधायक के सेवक जी ने अपनी मां जी की बीमारी का हवाला दिया, तब पुिलसकर्मी कुछ कह ना सके। कुछ भी हो कार के आगे लगा झण्डा देखकर यह तो स्पष्ट है कि यह सत्तापक्ष की है और हनक दिखाने व रौब गांठने के लिये ‘विधायक’ स्पष्ट और ‘सेवक’ शब्द का प्रयोग छोटे अक्षरों किया गया है। इससे लगा कि विधायक जी भले ही पीछे हों लेकिन उनके सेवक बहुत आगे हैं। अब ऐसे में पुलिस को सत्ता की हनक का ख्याल तो रखना बनता है और इज्जत से नौकरी भी करने की चिंता है।