संकट की है घड़ी विकट, एक जुट होकर लड़ना होगा,
आपसी भेदभाव से उठकर, कोरोनॉ से भिड़ना होगा।
हो रहा विषैला पर्यावरण, यह सबसे बड़ी चुनौती है,
प्रकृति से छेड़छाड़ अनुचित, नितप्रति कर रही पनौती है।
क्रुद्ध हुई प्राकृतिक सृष्टि, प्रतिक्रियात्मक प्रकोप दिखाती है,
ऋतु चक्र, कालक्रम बदल बदल, मानव को लक्ष्य बनाती है।
अब भी हम संभले नहीं अगर, यह आफत कहर मचाएगी,
प्राकृतिक चक्र यूं ही टूटेगा, सृष्टि पर विपदा आएगी।
नित नई व्याधियों की आहट, नई नई विपदाओं की दस्तक,
वैज्ञानिक शोध पड़े चक्कर में, चिकित्सा शास्त्र ज्ञानप्रवर्तक
मानव बम, मानव जनित विषाणु, है सर्जक दानव का मानव
मानव मूल्यों को भुला दिया, स्वयंभू मानव बना महादानव।
उल्टी गिनती आरंभ हुई अब, बनना था विश्व की महाशक्ति,
विध्वंसक ज्ञान विज्ञान लेकर, हो रही सृष्टि की महाविनष्टि।
विज्ञान हमारा सहयोगी, पर हावी जब हम पर होता है,
तो दनुजों की दुर्जेय शक्ति से, निज अहंकार में खोता है।
मस्तिष्क संतुलन खो करके, अनुचित करने लग जाता है,
दैवीय योग, अस्तित्व छेड़, अपना प्रभुत्व समझाता है।
है समय अभी सचेत जो हम, त्यागे विनाश के सब हथियार,
विश्वपटल समग्र होगा समृद्ध, ले विज्ञान ज्ञान के चमत्कार।
है भले धर्म सम्प्रदाय पृथक, है एक हमारा स्वर परचम,
मानव संस्कृति से एक हैं हम, भारत की शान न होगी कम।
स्वीकार करें हर एक चुनौती वरदान हमें नचिकेता सा,
जीवन अपना संघर्षशील,सौभाग्य अजेय विजेता का।
हम सजग रहें भयभीत नहीं, हम श्रेष्ठ, सहिष्णु, धैर्यवान,
वनवास नहीं, गृहवास मिला है, समझो हम हैं भाग्यवान।
डटकर टक्कर देंगे इसको, दुम दबा कोरोनॉ भागेगा,
स्वीकार चुनौती है हमको, विजयी भव अपना हिंदुस्तान।
रचनाकार कुसुम सिंह अविचल कानपुर (उ०प्र०)