कोख में दफनाने से पहले
पूछ तो लेते बेटियों से,
गुनाह क्या किया उसने
किस कर्म की सजा पाई उसने।
दुनिया उसे भी देखना था
सपने उसने भी थे सजाए,
जन्म से पहले ही उसको
चिर निद्रा में क्यों सुलाए।
आत्मा का हनन उसका करके
सुखी तुम कैसे रह सकते,
अपराध अक्षम्य होगा यह
काश, बात यह समझ सकते। पालकर देखो बेटी को भी
घर, घर से पहले स्वर्ग लगेगा,
चहकेगी जब वह चहुँ ओर
सूना जग भी रौनक लगेगा।
भेद मिटाकर अब जगवलों
बेटी का भी वरण करो,
बोझ है बेटी मानता है जो
इस मानसिकता का अब क्षरण करो।
-नीलू गुप्ता, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल