ओ सुशांत!
जोड़ा था तुमने सबसे पहले “पवित्र रिश्ता” ज़ी.टीवी” के माध्यम से हम दर्शकों के साथ,
बन “अर्चना” के “मानव” तुमने सिखाया हमसब को
कैसे निभाते हैं हर दुःख में अपनी जीवन संगिनी का साथ,
अपनी मां के सपनों को पूरा करने के लिए की तुमने मेहनत दिन रात।
पी.के में तुमने ही तो सिखाया था न “सरफ़राज़” ने धोखा नही दिया,
फिर दिखाया छिछोरे में “”खुदकुशी ना करना”” ,
फिर क्यों खुद तुमने ही कर दिया हम सबके मन को अशांत,
ओ सुशांत!
आखिर क्यों छोड़ कर चले गए हमें,
धोनी के हेलीकॉप्टर शॉट को क्या खूब निभाया था तुमने,
कर तुमने बड़े काम रौशन किये अपनी मां और बिहार का नाम,
“मंसूर” बनकर तुमने बचाई थी कितनों की जान,
अंत मे तुम्हारे मन के अवसाद ने तुम्हे हमसे क्यों छीन लिया “सुशांत”।
ओ सुशांत!
आखिर क्यों बिना कहे,कुछ बोले तुम चले गए,
अभी-अभी ही तो मशहूर होना शुरू हुए,
बताओ न क्यों था तुम्हारा मन अशांत?
बिना सोचे-समझे ही ले लिया तुमने खुदखुशी करने फैसला,
कैसे तुमने मानी हार,कैसे सोच लिए अब आगे कुछ अच्छा न हो पायेगा।
ओ सुशांत!
कर समाप्त अपनी जीवन लीला इस दुनिया से मुँह क्यों मोड़ गए तुम,
कभी भी ये बॉलीवुड जगत तुम्हारा अभिनय भुला न पाएगा,
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ तुमको ,
अब “बॉलीवुड” और “जी. टीवी” को कभी भी,
कोई तुम सा न मिला पाएगा…।
रीमा मिश्रा नव्या आसनसोल(पश्चिम बंगाल)