चीन को कभी भी हल्के मेें लेने की जरूरत नहीं है। चीन दीवार के उस पार क्या करता है, इसका दुनिया को तब पता चलता है, जब विश्व सुखद अथवा दुःखद आश्चर्य को पाता है। चीन वायरस पैदा कर सकता है। मौसम का रुख बदल सकता है। पड़ोसी देशों में पानी की प्रचंड बाढ़ ला सकता है और अकाल भी डाल सकता है। चीन अपने दुश्मन देशों के साथ मौसम का युद्ध लड़ने के लिए अपनी वैज्ञानिक सुदृढ़ता हासिल कर रहा है।
बाकी एक जमाना था, जब रूस ने स्पुतनिक नाम का उपग्रह बना कर अमेरिका सहित पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया था। उसके बाद तो अमेरिका मैदान में आ गया था। अमेरिका ने अपोलो अंतरिक्ष यान छोंड़ कर मानव को चंद्रमा पर पहुंचा कर दुनिया को दंग कर दिया। उसके बाद मंगल पर चढ़ाई की प्रतियोगिता शुरू हुई। चीन ने ओलम्पिक खेल के समय शहर में बरसात न हो, इसके लिए बादलोें को दूसरे स्थान पर खींच ले जाने की टेक्नोलाॅजी ला कर विश्व को स्तब्ध कर दिया था।
चीन अब अंतरिक्ष में कृत्रिम चंद्रमा भेजने की तैयारी कर रहा है। दरअसल बात यह है कि चीन अपने शहर की सड़कों पर रात मेें भी उजाला कर सके, इस तरह का एक खास उपग्रह छोड़ने की तैयारी कर रहा है। यह उपग्रह पूर्णिमा के चांद की अपेक्षा आठ गुना ज्यादा प्रकाशमान होगा। अगर चीन की यह योजना सफल होती है तो इस कृत्रिम चांद से शहर के 80 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में रात को भी पर्याप्त उजाला फैला रहेगा और स्ट्रीट लाइट की जरूरत नहीं रहेगी।
दक्षिणी-पश्चिमी चीन के छंग्नु शहर के वैज्ञानिकों को लगता है कि इस नकली चंद्रमा से शहर के 10 से 80 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में रात को उजाला फैलाने की योजना अब अंतिम चरण में है। छंग्नु एयरोस्पेश साइंस रिसर्च इंस्टीट्यूट के चेयरमैन चुंफेंग का कहना है कि 50 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को उजाला देने के लिए एक मानवनिर्मित चंद्रमा का उपयोग करने से 12-7 करोड डालर की बिजली की बचत होगी। इस नकली चंदमा का परीक्षण पिछले कई महीनों से चल रहा है। अब यह टेक्नोलाॅजी सफलता के अंतिम चरण में है। चीन का यह नकली चांद-उपग्रह अपने सोलर पैनलों द्वारा सूर्य के प्रकाश को चीन के शहर पर परिवर्तित करेगा। यह एक अद्भुत कल्पना है, जो अब कभी भी वस्तविकता में परिर्विर्तत हो सकती है।अब कुछ वास्तविक बातें। कृत्रिम चंद्रमा का विचार वैसे तो सुंदर लगता है, परंतु विशेषज्ञों का कहना है कि नकली चंद्रमा के कारण व्यवहार मेें तमाम मुश्किलें भी खड़ी हो सकती हैं। खगोलशास्त्रियों का कहना है कि नकली चंद्रमा से प्रकाश प्रदूषण बढ़ेगा। स्ट्रीट लाइट और अन्य मानवनिर्मित स्रोतों द्वारा जिस तरह आकाश में फैलते उजाले को प्रकाश प्रदूषण कहते हैं, जिसका प्राकृतिक चक्र साइकल पर विपरीत असर पड़ता है। चीन के जिस शहर छंग्नु में इस नकली चांद से रात को प्रकाश फैलाना है, वह शहर पहले से ही रात प्रकाश से प्रदूषित है। इंटरनेशनल डार्क-स्काई एसोसिएशन के डायरेक्टर जाॅन बेरेंटाइन का कहना है कि चीन के नकली चंद्रमा से रात के समय प्रकाश की चमक बढ़ेगी और उसकी वजह से छंग्नु के लोगों के साथसाथ पशु, पक्षियों और जानवरों को भी असुविधा होगी। पक्षी और जानवर रात को सो नहीं सकेंगें। जानवरों और मनुष्य की नींद चक्र में भी खलल पड़ेगी। पशु-पक्षियों को भी रात में सोने के लिए अंधेरे की जरूरत पड़ती है।
चीन के दैनिक ‘पीपल्स डेली’ ने चीन के नकली चंद्रमा का श्रेय एक फ्रेंच कलाकार को दिया है। उस फ्रेंच कलाकार ने पृथ्वी पर दर्पणों का एक ऐसा हार लटकाने की कल्पना की थी, जो सूर्य के प्रकाश को परिवर्तित कर पूरे पेरिस शहर की सड़कों को पूरे साल रात राश्ेानी से प्रकाशित कर सके। परंतु यह तो एक कलाकार की मात्र कल्पना थी। जिसका अब चीन प्रयोग करने जा रहा है।
पिछले साल एक शोध पेपर प्रस्तुत किया गया था। जिसमें ऐसा उल्लेख था कि एक संपूर्ण चंद्रमा आदर्श परिस्थिति में 0-3 लक्स की चमक उत्पन्न कर सकता है। परंतु व्यवहार में वह चमक सामान्य रूप से 0-15-0-2 लक्स ही होती है। लक्स प्रकाश को नापने का एक पैमाना है। माना जाता है कि एक कृत्रिम चंद्रमा लगभग 1-6 लक्स का प्रकाश पैदा कर सकता है। चीन के नकली चंद्रमा की परावर्तित चमक कितनी होगी, यह अभी कहना मुश्किल है। अगर संपूर्ण आकाश मे 1-6 लक्स की रोशनी सामान्य रूप से फैलती है तो उसका प्रभाव अधिक बस्ती वाले इलाके में रात के समय आकाश में दिखाई देने वाली आभा के बराबर ही होगी। रात को तमाम शहरोें में आकाश मेें इस तरह की आभा देखने को मिलती है। ताराओें पर अध्ययन कर रहे तमाम खगोलशास्त्री पूर्णिमा की रात को इस तरह का अध्ययन नहीं करते। क्योंकि पूर्णिमा के चांद की चमक से दूर के तारे दिखाई नहीं देते। नकली चंद्रमा से यह परेशानी बढ़ेगी।
यह कृत्रिम चंद्रमा का विचार कोई नया नहीं है। 1990 में रूस ने सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी पर परावर्तित करने के लिए एक कृत्रिम उपग्रह अंतरिक्ष में भेजा था। रूस का यह उपग्रह काफी समय तक उत्तरी गोलार्ध को उजाला प्रदान करने में सफल रहा है। रूस ने फिर एक बार 1999 में इसका दूसरा एक उपग्रह इसी हेतु से छोड़ने की कोशिश की थी, परंतु उसका प्रक्षेपण असफल हो गया था।
नार्वे के रजूकन नाम के शहर में ठंड में छह महीने तक सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचता। इस समस्या को दूर करने के लिए 2013 में तीन बड़े कंप्यूटर नियंत्रित दर्पण स्थापित किए गए। इन विशाल दर्पण से शहर के मुख्य चैक पर सूर्य की किरणें परावर्तित की जाती हैं।
खैर, अभी तो चीन के इस नकली चंद्रमा की योजना से एक चर्चा और विवाद खड़ा ही हो गया है।
-वीरेन्द्र बहादुर सिंह, नोण्डा, उप्र