पर्यावरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है -“परी + आवरण” जिसका अर्थ- ‘परी’ का है -‘चारों ओर’ तथा “आवरण” का अर्थ है- घेरा। यानी हमारे चारों ओर फैले वातावरण के आवरण (घेरे) को पर्यावरण कहते हैं।
वायु, जल, भूमि, वनस्पति, पेड़- पौधे, पशु मानव सब मिलकर पर्यावरण बनाते हैं।{1}
पर्यावरण के अंतर्गत स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल तथा जैव मंडल मिलकर पूर्ण रूप से पर्यावरण बना है। हम जिस जीव -जगत की बात करते हैं जिसके बिना हमारा अस्तित्व ही नहीं है, वह पूर्ण रुप से प्रदूषित हो चुका है। पर्यावरण के बढ़ते प्रदूषण से भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व ग्रसित है।चिंतित है।यह प्रदूषण कई प्रकार का है जैसे; वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, ई कचरा प्रदूषण, प्लास्टिक प्रदूषण नाभिकीय प्रदूषण तथा मोबाइल टावर प्रदूषण इत्यादि वायु, जल, मृदा,ध्वनि यह ईश्वर के उपहार है जिसे आज का मानव से क्षत-विक्षत कर प्रदूषित कर रहा है। जिस कारण इन ईश्वरीय उपहारों के ह्रास से दोष निकलना सत्य है। पर्यावरण प्रदूषण के अनेक कारण है- औद्योगिक करण की गतिविधि, बढ़ते वाहन म, शहरीकरण, बढ़ती जनसंख्या, जीवाश्म ईंधन दहन,कृषि अपशिष्ट, प्लास्टिक प्रयोग, रेडियोधर्मी या परमाणु विकिरण,बढ़ते मोबाइल टावर आदि।
ग्लोबल वार्मिंग के भयावह से भारत सबसे पहले 1980 में ही सजग हो गया था और 1986 में भारत ने ‘पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम’ कानून बनाया।
#वायु प्रदूषण :
शुद्ध वायु के बिना मनुष्य का अस्तित्व ही नहीं है। प्राण वायु आज प्रदूषित हो चुकी है। “वातावरण में प्राकृतिक रूप से उपस्थित गैसों का संतुलित मिश्रण संयुक्त रूप से वायु के रूप में माना जाता है।गैसों का संतुलन जब पर्यावरण द्वारा निर्धारित सीमाओं से अधिक परिवर्तित हो जाता है,तब वायु प्रदूषित हो जाती है। एक सामान्य व्यक्ति प्रतिदिन लगभग 16 किलो वायु ग्रहण करता है। इस वायु मैं जब भी ऑक्सीजन के अतिरिक्त किसी अन्य गेस में वृद्धि होती है तो पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है।{2}
#जल प्रदूषण :
जल ही जीवन है। जल है तो कल है।आज मानव के लिए अति आवश्यक जल भी प्रदूषित हो चुका है।
“जल पृथ्वी का रस है। जल जीवन का आधार है। प्रत्येक वस्तु जल द्वारा उद्भावित है एवं जल द्वारा ही परिचालित है। प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता जीन बूंश के शब्दों में “जल एक महत्वपूर्ण आर्थिक संपत्ति है। अधिक सत्यता यह है कि यह मानव के लिए कोयला या स्वर्ण से भी बड़ी संपत्ति है। सभी स्थानों पर जल क्षेत्र मानव क्रियाओं पर प्रभुत्व रखते हैं।”{3}
मानव शरीर में जल तत्व एक परम आवश्यक पोषक तत्व है। जल एक प्राकृतिक स्रोत है। इसे शुद्ध रखना चाहिए किंतु आज के भौतिकवादी मानव समाज ने इसे प्रदूषित कर दिया है। जो हमारे लिए चिंता और चिंतन का कारण है।
“पिछले कई सालों से यह बात प्रकाश में आई है कि जल प्रदूषण सबसे ज्यादा प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों के विसर्जन से होता है। प्लास्टर ऑफ पेरिस दरअसल कैलशियम सल्फेट हेमीहाइड्रेट होता है। एक अनुमान के मुताबिक हर साल लगभग 10,00000 मूर्तियांँ नदी, तालाबों और झीलों के पानी के हवाले की जाती है और उन पर लगे वस्त्र,आभूषण भी पानी में चले जाते हैं{4}
देश की बढ़ती जनसंख्या ने जल प्रदूषण की भयावह समस्या पैदा करदी है। विश्व की सबसे पवित्र मानी जाने वाली पावन गंगा नदी के नीर को भी दूषित कर दिया है। यह राष्ट्र के लिए चिंता का विषय है। प्रदूषित जल राष्ट्र के लिए गंभीर समस्या बनी हुई है।
” हमारे देश में बढ़ते जल प्रदूषण का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि देश के लगभग 2600 शहरों में से केवल 200 शहरों तथा 5,76,2000 ग्रामीण क्षेत्रों में से मात्र 64000 क्षेत्रों में ही पेयजल गुणवत्ता के दृष्टिकोण से अच्छा है। जल प्रदूषण के मामले में देश का जल कश्मीर से कन्या कुमारी तक एक सा हो चला है। ऐसा चिंताजनक अनुमान भी प्रस्तुत किया गया है कि देश में उपलब्ध जल का 70% जल दूषित हो चुका है। ज्ञातव्य है कि विश्व के 123 देशों में अपने नागरिकों को दूषित जल पिलाने वाले देशों में भारत का स्थान 121 वां है।”{5}
#ध्वनि प्रदूषण :
शोर एक अप्रिय ध्वनि है जो मानव के कानों को अप्रिय लगता है। मनुष्य का स्वभाव शांति से जीने का है किंतु वर्तमान में बढ़ती जनसंख्या तथा भौतिक साधनों का प्रयोग के कारण मानसिक तनाव, ह्रदय रोग, चिड़चिड़ापन, पागलपन जैसे रोगों ने जन्म लिया है।
” शोर प्रदूषण अंदर ही अंदर शरीर और मस्तिष्क को रोग ग्रस्त करता रहता है, जिसकी जानकारी लंबे अंतराल के बाद होती है। इसलिए ध्वनि प्रदूषण को ‘कपटी प्रदूषण’ कहा जाता है जो छिपकर धीमे जहर (स्लो पॉइजन) के रूप में हमारे शरीर में फैलता रहता है। शोर- प्रदूषण पर से विशिष्ट अनुसंधान कर रहे डॉक्टर नडसन का कहना है कि-” शोर धुंध की तरह हमें धीरे-धीरे मृत्यु की ओर धकेलने वाला कारक है।””{6}
इस प्रकार ध्वनि प्रदूषण आज के स्वस्थ मानव को मानसिक रोगी तथा हृदय रोगी बनाने वाला एक मीठे तथा घातक जहर के समान है।
“दिवाली के दिन पटाखों के फटने की जगह से करीब 12 मीटर दूरी पर शोर बिंदु मापने पर 120 डेसीबल डिग्री तक पाया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 45 डेसीबल तक शोर डिग्री ही हमारे लिए सुरक्षित बतलाई है। मुंबई, कोलकाता और दिल्ली जैसे महानगरों में साधारणत: शोर डिग्री 90 डेसीबल से भी अधिक पाई गई है। मुंबई शहर विश्व में उच्चतर शोर डिग्री वाला तीसरा महानगर है। अहमदाबाद के एक संगठन द्वारा किए गए सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ है कि हवाई अड्डा (एयरपोर्ट) के निकट की बस्ती में कुछ जन्म दोष है। कभी-कभी उनके मृत शिशु को जन्मते हैं या फिर बहुत कम वजन की अर्ध विकसित संतान पैदा होती है।{7}
“वर्तमान में भारत में करीब करोड़ाे मोटर वाहन है और करीब 35 से 40 करोड़ लोग ध्वनि प्रदूषण ग्रस्त शहरों में रहते हैं। 22 वीं शताब्दी तक यह संख्या करीब 55 करोड़ हो जाएगी।”{8}
#मृदा प्रदूषण :
भूमि का ऊपरी भाग जो मृदा से ढका रहता है वह वर्तमान में प्रदूषित हो चुका है। कृषि कार्य में उपजी उपज हेतु रासायनिक खाद व कीटनाशक के कारण मृदा प्रदूषण बढ़ गया है।
” पृथ्वी की ऊपरी परत को मृदा कहते है। जिसमें पौधों का विकास संभव हो पाता है। वस्तुत: सभी जीव जंतुओं की जीवन विकास को स्वास्थ्य तथा अनुकूल बनाने में मृदा की महत्वपूर्ण भूमिका है। जब भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में अवांछित परिवर्तन होता है और उसकी प्राकृतिक गुणवत्ता प्रतिकूल होने लगती है तो इसे मृदा प्रदूषण कहते हैं।{9}
“भू-प्रदूषण के कारण पृथ्वी के उर्वरा शक्ति तेजी से कम होती जा रही है। भू- प्रदूषण अन्य प्रदूषणों की जननी है ,क्योंकि उस क्षेत्र का जल व वायु भी प्रदूषित भूमि के संपर्क में आने पर प्रदूषित हो जाता है।”{10}
#ई-कचरा प्रदूषण :
ई-कचरा से तात्पर्य अनुपयोगी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से है जो खराब होने के बाद उन्हें फेंक दिया जाता है जो हमारे लिए अनुपयोगी हैं जो मृदा हवा और पानी को दूषित करते हुए हमारे जनजीवन को प्रभावित करते हैं।
“ई-कचरा से आशय उन तमाम पुराने पड़ चुके बेकार इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से हैं जिन्हें उपयोग करने वाले खुली हवा में कहीं भी फेंक देते हैं।{11}
भारत में ई- कचरा भारी मात्रा में बढ़ रहा है जो पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने भारत व चीन को चेतावनी दी है कि इस प्रदूषण के प्रति सजग रहे।
#प्लास्टिक प्रदूषण :
प्लास्टिक प्रदूषण भी मानव जीवन के लिए खतरा बन चुका है। हमारी हर कार्य में प्लास्टिक हमारे साथ हो चला है प्लास्टिक के बिना जीवन अधूरा है इस तरह हमारे जीवन में घुल मिल गया है।
“प्लास्टिक का इजाद लगभग 1907 में हुआ जब से यह मानव जीवन का अहम हिस्सा बना तब से हम इस पर आश्रित होते गए आज स्थिति यह है कि आम जिंदगी में प्लास्टिक के बिना रहने की हम कल्पना भी नहीं करते हैं।” {12}
किंतु आज हमें इस प्लास्टिक से फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो रहा है।
प्लास्टिक की वजह से कितने जलीय जीव मर रहे हैं
” एक अनुमान के मुताबिक हर वर्ष केवल समुद्री जीव जंतु एक लाख के करीब मर जाते हैं।जिसमें सील,व्हेल, समुद्री कछुए पक्षी सहित अनेक समुद्री जीव जंतु सम्मिलित हैं।”{13}
कम्पनियाँ बढ़ते प्लास्टिक उत्पादन को इंसान तक पहुंचा देती है और उपयोग होने के बाद इंसान कचरे के रूप में उसे फेंक देता है और नदी नाले का गंदा पानी तथा बाढ़ का पानी उसे समुद्र तक पहुंचा देता है और समुद्र के प्रदूषित होने से कोई नहीं बचा सकता।
” विश्व में प्रति मिनट 1000000(10लाख) प्लास्टिक बोतले और हर वर्ष 5 ट्रिलियन प्लास्टिक बैग खरीदे जाते हैं। यह ऐसे उत्पाद है जो महज एक बार ही इस्तेमाल किए जाते हैं।प्लास्टिक कचरे के असर से हर वर्ष लगभग 1200000 समुद्री जीव जंतु मौत के शिकार हो रहे हैं और 700 से अधिक प्रजातियांँ विलुप्त होने की कगार पर है। महानगरों में 70% हिस्सा प्लास्टिक का फैला हुआ है इसमें 99 प्रतिशत हिस्सा समुद्र की तलहटी में या समुद्री जीवों के पेट में जा चुका है।”-{14}
आज हमें प्लास्टिक की वजह से अनेक प्रकार की बीमारियां देखने में मिल रही है जिससे हमारा जनजीवन संकट में फंसता जा रहा है.
” केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सीपीसीबी के अनुसार 2017-18 में भारत में प्लास्टिक कचरे का 6,60, 787,85 टन अंबार लग गया था।”{15}
वैज्ञानिकों ने इस प्रकार के पोलूशन की होने की चिंता जताते हुए यह अंदाज़ लगाया है कि ग्लोबल वार्मिंग का एक कारण यह भी हो सकता है-
” जूते बनाने वाली कंपनी एडिडास ने जूते बनाने वाली कंपनी एडिडास ने 2018 में प्लास्टिक कचरे से 5000000 जोड़ी जूते तैयार किए इसमें जो प्लास्टिक उपयोग किया गया वह पोस्ट-कम्यूमर रिसाइक्ल्डि(पिसीआर) प्लास्टिक था, जो महासागरीय तटों और तटीय क्षेत्रों से इकट्ठा किया गया वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का कारण प्लास्टिक प्रदूषण भी हो सकता है।”{16}
” आंकड़ों के मुताबिक विश्व स्तर पर प्रत्येक मिनट 1000000 प्लास्टिक की बोतल खरीदी जाती है जिसमें एक बैग को 12 मिनट इस्तेमाल करते हैं भारत में पवित्र कही जाने वाली गंगा नदी में प्लास्टिक कचरे का सबसे अधिक भार है। इसी तरह भारत सरकार के आंकड़े 2016 के अनुसार प्रतिदिन 15000 टन प्लास्टिक अपशिष्ट निकलता है और लगातार इसमें बढ़ोतरी हो रही है।
केंद्र सरकार ने एक विशेष तरह का कानून 1999 में बनाया यह कानून प्लास्टिक मैन्युफैक्चर सेल एंड यूसेज रूल्स 1999 में बनाया गया यह कानून बाजार में बिकने वाले सिंगल यूज पॉलीथिन थैलों को पूरी तरह बाजार से बाहर करने के लिए इसके आकार और इन्हें तैयार करने वाली सामग्री की मोटाई तय की गई और यह भी तय किया गया कि इससे आकार से अधिक मोटाई वाली प्लास्टिक के थैले बेचे नहीं जा सकेंगे।”{17}
प्लास्टिक पर सबसे पहले राजस्थान हाई कोर्ट ने रोक लगा कर एक अनूठी पहल की है। राज्य के लोकप्रिय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत स्वयं ने सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग बंद कर राज्य की जनता को एक अनोखा संदेश दिया है।
राजस्थान पुलिस अकादमी ने 2 अक्टूबर से (गांधी जयंती की 150 वीं जयंती से) ‘नो प्लास्टिक पॉलिसी’ लागू की।
“प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पर्यावरण दिवस पर घोषणा की कि सिंगल यूज प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से 2022 तक चलने से बाहर किया जाएगा। राष्ट्रीय और संगठनात्मक स्तर पर 2025 तक प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण को कम कर देने का लक्ष्य रखा गया है।”{18}
भारत के कई राज्यों में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की पूरी कोशिश की गई है लेकिन कुछ राज्य में अभी तक इस प्रदूषण के प्रति सजगता नहीं दिखाई है। विश्व के अनेक देशों में जैसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, रूस, अफ्रीका, चीन जैसे देशों ने प्लास्टिक के प्रयोग पर मजबूती से रोकने के कड़े कदम उठाए हैं। किंतु भारत की जनता में इसका असर बहुत कम देखने को मिलता है।यह हमारे लिए सोचनीय एवं दुर्भाग्य की बात है।
#नाभिकीय प्रदूषण या रेडियोधर्मी कचरा :
परमाणु ऊर्जा के उत्पादन के समय निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ को परमाणु कचरा कहा जाता है। चाहे परमाणु बिजली पैदा करने से या परमाणु प्रौद्योगिकी से या नए-नए अनुसंधान से उत्पन्न परमाणु कचरे से वायु, पानी से जीव-जंतु, पेड़-पौधों का जीवन प्रभावित होता है। इसl प्रदूषण से तीन प्रकार की गेसें निकलती है। अल्फा, बीटा और गामा। सबसे ज्यादा खतरनाक विकिरण गामा किरणों से निकलती है। जिससे जीव जंतु और मानव समाज अत्यधिक प्रभावित हुआ है। परमाणु ऊर्जा से बड़े- बड़े हथियार बनाए जा रहे हैं।
जिससे उसके दुष्प्रभाव, समाज को झेलना पड़ रहा है। उसी प्रकार अनुमानों के द्वारा प्रकृति का अधिक से अधिक दोहन हो रहा है। जिसकी वजह से भी हवा और पानी प्रदूषित हो रहे हैं। इसका मजबूत उदाहरण जापान के दो महानगरों हिरोशिमा और नागासाकी पर सन् 1945 में अमेरिका के द्वारा 6 अगस्त को एवं 9 अगस्त को दूसरे विश्व युद्ध के समय परमाणु बम गिराए जाने से 200000 लोगों की मृत्यु हुई थी तथा कई लोग घायल हुए और कई वर्षों तक वहांँ का जनजीवन प्रभावित रहा। इससे अनुवांशिक परिवर्तन जन्म दोष के अनुसार और गर्भपात जैसी अनेक बीमारियांँ इस रेडियोधर्मी या नाभिकीय प्रदूषण से दुष्प्रभाव पड़ते हैं। आजकल इस रेडियोधर्मी अवशिष्ट को समुद्र में डाला जा रहा है जैसे; समुद्री जीव को भी खतरा पैदा हो गया हैं। बताया जाता है कि इस अपशिष्ट की उम्र 100000 वर्ष होती है। यह रेडियोधर्मी/ नाभिकीय प्रदूषण हमारे मानव समाज के लिए विकराल चुनौती बन चुकी है।
जिसे दुनिया की सभी जागरूक एवं बुद्धिजीवी लोग मिलकर संकल्प लें और इसे कटिबद्ध होकर परमाणु ऊर्जा का त्याग करें तभी संभव हो पाएगा।
#मोबाइल टावर से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणों से प्रदूषण :
मोबाईल के इन टावर से निकल ने वाली हानिकारक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणों से संपूर्ण जीव जंतु को अत्यधिक नुकसान पहुंच रहा है। मानव, पशु- पक्षी, प्रभावित हो रहे हैं। इसकी विकिरणों से कैंसर हो रहा है। इंसानों में अत्यधिक थकान का होना,सिरदर्द,चक्कर आना,पाचन क्रिया पर असर पड़ना, ब्रेन ट्यूमर, कैंसर,याददाश्त कमजोर होना,ध्यान भंग होना,आंखों का कमजोर होना,रात को नींद न आना, मर्दाना कमजोरी, सुनने में बाधा होना, आदि अनेक बीमारियों की जड़ मोबाइल टावर से निकलने वाली हानिकारक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणों के प्रदूषण से आने वाले समय में भयंकर एवं डरावनी विभीषिका का हेतु मानव समाज नहीं समझा तो इसका खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहें।
#सारांश :
डॉ. मधुसूदन शाह की कविता पर्यावरण बचाना होगा जो हमें यह संदेश देती है –
“अगर चाहते सुख से जीना पर्यावरण बचाना होगा।
ऐसा काम करें हम हर क्षण
रहे प्रदूषण नहीं कहीं पर
निर्मल शाद्वल स्वच्छ धारा हो
कल्मषता हो नहीं कहीं पर,
घोर प्रदूषण से मिलजुलकर वातावरण बचाना होगा।”-{19}
ठीक इसी प्रकार का संदेश देने वाली राजा चौरसिया की कविता -‘सबसे कहती धरती माता” भी यही संदेश दे रही है-
“मुझे नहीं अब और सताओ, सब से कहती धरती माता। पेड़ों,नदियों और प्रकृति से सबका होता पोषण
लेकिन अंधाधुन रात-दिन इनका होता शोषण।
बचना है तो मुझे बचाओ
सब से कहती धरती माता।”{20}
आज हमें इस बात को समझने की अति आवश्यकता है की हमारी करतूतों की वजह से ही पर्यावरण को क्षति पहुंच रही है। जिसे हमें ही सुधारना चाहिए। ‘हम सुधरेंगे जग सुधरेगा’, ‘हम बदलेंगे जग बदलेगा।’
“वातावरण में हर साल 24,126, 416 हजार मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड उगल रही इंसानी हरकतें इसी रफ्तार से जारी रही तो वह दिन दूर नहीं जब धरती से जिंदगी की सांसें उखड़ने लगेगी।”-{21}
सुप्रीम कोर्ट ने भी देश के राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं को पर्यावरण सुरक्षा को मद्देनजर ध्यान में रखते हुए स्कूली शिक्षा एवं उच्च शिक्षा में पर्यावरण विज्ञान की पढ़ाई को अनिवार्य रूप से लागू करने के निर्देश दिए हैं सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के आधार पर यूजीसी ने ग्रेजुएशन के स्तर पर पर ‘पर्यावरण विज्ञान’ की पढ़ाई को अनिवार्य बना दिया है। स्कूल और टेक्निकल पाठ्यक्रमों के स्तर पर यह जिम्मेदारी एनसीईआरटी और एआईसीटीई को सौंपी गई है।पर्यावरण विज्ञान बेसिक साइंस फॉर सोशल साइंस दोनों का मिश्रित रूप है। रिसोर्स मैनेजमेंट और रिसर्च टेक्नोलॉजी भी पर्यावरण विज्ञान का एक महत्वपूर्ण अंग है। पर्यावरण से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में अपना करियर बनाने के लिए पढ़ाई 12वीं के बाद शुरू की जा सकती है पर इस स्तर पर संस्थानों की संख्या कम है। ग्रीन जॉब्स के क्षेत्र में बेहतर करियर बनाने के लिए पर्यावरण विज्ञान में उच्च शिक्षा प्राप्त करना आपके भविष्य के लिए अच्छा होगा। पर्यावरण विज्ञान में बीटेक का कोर्स भी कई संस्थानों में उपलब्ध है।”-{22}
पर्यावरण के लिए जनजागृति एवं जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून को मनाया जाता है। ओजोन दिवस 16 सितंबर को मनाया जाता है। पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल को मनाया जाता है।जल दिवस 22 मार्च को मनाया जाता है और जैव विविधता दिवस 22 मई को मनाया जाता है।
इन दिवसों को मनाने की सार्थकता तभी कही जा सकती है जब हम सभी भारतवासी सामूहिक रूप से संकल्प लें और प्रत्येक व्यक्ति इसे अपना कर्तव्य समझे कि भारत को पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त करने हेतु तन-मन से साथ दें एवं भविष्य में प्रदूषण की भयावह की चिंता करें तभी उसकी सार्थकता है। covid-19 जैसी विश्व विभीषिका के समय लॉकडाउन की वजह से पर्यावरण प्रदूषण में काफी हद तक सुधार हुआ देखा गया है।यह ताजा उदाहरण है। पर्यावरण और मानव के बीच में काफी संतुलन देखा गया। इसी प्रकार मनुष्य चाहे तो अपने पर्यावरण को ध्यान रखते हुए तरोताजा रखते हुए अपने जीवन को बेहतर बना सकता है।
– डॉ.कान्ति लाल यादव