रायबरेली,पवन कुमारगुप्ता।सरकार द्वारा पुरुष और महिलाओं के अनुपात को बराबर रखने के लिए भले ही नियम बनाए गए हैं लेकिन बीते कुछ वर्षों से और आज की आपराधिक घटनाओं का यदि आंकलन किया जाए तो अब समाज में महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल उठने लगे हैं। हालांकि सरकार और प्रशासन यह कह रहे हैं कि अब पहले जैसी बात नहीं रही, प्रभावी नियम भी बना दिए गए हैं और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर हम बेहद सजग हैं। लेकिन बीते कुछ वर्षों में देश में हैवानियत की ऐसी घटनाएं हुई थी जो कि हर राज्य में हर घर में चर्चा का विषय बनी रही और डरे सहमे लोग यही चर्चा करते रहे होंगे कि हम बेऔलाद रह लेंगे लेकिन बेटियों को जन्म नहीं देंगे। हालांकि ऐसा नहीं है सरकार और प्रशासन ने ऐसी हैवानियत से भरी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो इसके लिए कड़े नियम और कड़ी सजा का प्रावधान भी किया है और अपराध करने वाले लोग नियमों के भुक्तभोगी भी रहे। लेकिन आज भी जब किसी घर की महिला, बेटी या बहन किसी काम से दिन या शाम ढले घर से बाहर निकलती है तो परिवारिक लोगों की चिंताएं बढ़ जाती है और उन्हें निर्भया कांड, अरूणा शानबाग की घटना, बुलंदशहर और मथुरा में हुई हैवानियत की घटनाएं याद आने लगती हैं। उस समय इन घटनाओं को लेकर लोगों का गुस्सा सड़कों पर भी फूट पड़ा था जिसने कानून व्यवस्था को भी झकझोर कर रख दिया था। दिल दहला देने वाली ऐसी घटना देशवासियों के दिलों दिमाग पर हमेशा छाई रहेंगी। जिसे सोच कर लोग आज भी मजबूर हो जाते हैं कि कहीं हमारी बेटी असुरक्षित तो नहीं, वह घर लौट तो आएगी। जब ऐसे विचार लोगों के मन में पनपने लगते हैं तो वह लोग एक बार जरूर यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि हमें बेटा ही चाहिए बेटी नहीं क्योंकि उसकी सुरक्षा कर पाना हमारे लिए चुनौती बन सकता है। इसलिए हम तो यही कहेंगे की बेटी जिंदा रहे यह काफी नहीं उन्हें सुरक्षित रखना भी सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी होनी चाहिए। इसके लिए भी उन्हें कठोर से कठोर नियम बनाने चाहिए जो उन्हें देश और समाज में एक अलग पहचान दे सके। दिन हो या रात वह घर से बाहर निकल सकें और सुरक्षित महसूस कर सकें। वैसे तो आज देश में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं ने शिक्षित होना सीखा है। देश और दुनिया में अपना नाम रोशन किया है, देश का कोई भी कोना हो, कोई भी विधा हो, महिलाओं ने हर तरफ कामयाबी हासिल की है और समाज के लिए एक मिसाल कायम की है। आधुनिक युग में महिलाओं ने डर को पालना नहीं बल्कि उन से लड़ना और उनका हल निकालना भी सीखा है। आज के समय में महिलाएं घर की रसोई ही नहीं, सरकार चलाने के साथ-साथ देश और समाज की सेवा भी कर रही हैं। जो कि पुरुषों से भी एक कदम आगे निकलकर उनके लिए चुनौती भी बनती हैं। ऐसी ही समस्याएं और चुनौतियां घरेलू महिलाओं के साथ भी बनी रहती है। अक्सर उन्हें लगता है कि यदि परिवार से जुड़े लोगों की बातों को सुनना और बर्दाश्त करना नहीं सीखा तो उन्हें अपने परिवारिक और घरेलू जीवन से हांथ धोना पड़ेगा। आखिरकार वह इन बातों को सोच कर घरेलू हिंसा का दंश झेलती रहती है।
घरेलू हिंसा के साथ-साथ सामाजिक विरोधियों से भी महिलाओं का संरक्षण करने अथवा बचाव के लिए, आईपीसी की धारा के कई अधिनियम बनाए गए हैं जिनसे महिलाओं को उचित स्वास्थ्य देखभाल, कानूनी मदद, परामर्श और आश्रय गृह संबंधित मामलों में भी मदद मिल सकती है।
“बेटियां बचाओ,बेटियां पढ़ाओ” इस नारे को साकार करते हुए बेटियों को शिक्षित तो बना दिया गया है। लेकिन समाज में लोगों को महिलाओं के प्रति पनपने वाली अपनी विचारधाराओं को भी बदलना होगा। जिससे कि घर से बाहर निकलने वाली महिलाओं, बेटियों को अपनी सुरक्षा का एहसास हो सके। सभी की मां, बहन, बेटियों को सम्मान की नजर से देखने मात्र से ही उन्हें सुरक्षा का एहसास होगा। हमें अपनी सोच बदलनी होगी और उनकी सुरक्षा अपने आप हो जाएगी। परिवार की संरचना हेतु जन्म देने के लिए मां चाहिए, राखी बांधने के लिए बहन चाहिए, कहानी सुनाने के लिए दादी चाहिए, साथ निभाने के लिए पत्नी चाहिए, ऐसे और कई रिश्ते जिन से यह साबित होता है कि बेटों से अधिक बेटियां सम्मान की हकदार हैं। वह जीवित हैं, तो आज हम हैं, हमारा परिवार है। यदि वह नहीं रही तब, कुछ समय के लिए हमारे वंश को बढ़ाने वाला यह चक्र रुक जाएगा और हम अकेले हो जाएंगे। “पुरुष शरीर से कितना भी मजबूत हो परंतु संयम और धैर्य के मामले में वह नारी का मुकाबला नहीं कर सकता। अगर उनके चरित्र की बात की जाए तो पुरुषों से कई गुना चरित्रवान होती है नारियां।” मेंरे विचार से, अगर किसी बेटी या बहन को हमारी वजह से रास्ता बदलना पड़े, तो गली में घूम रहे आवारा जानवरों और हमारे बीच कोई फर्क नहीं रहेगा। इसलिए हमारा एक विनम्र निवेदन है कि किसी भी बेटी का पिता हर जगह मौजूद नहीं रह सकता और कोई भी बेटी हर वक्त अपने पिता के साथ नहीं हो सकती लेकिन जहां एक बेटी होती है वहां पुरुष के रूप में किसी न किसी का पिता या भाई जरूर मौजूद होता है। आप किसी और की बेटी की स्वयं सुरक्षा करें और कहीं कोई और आपकी बेटी,बहन की सुरक्षा करेगा। ऐसी सोच और विचारधारा के साथ हम सबको मिलकर बेटियों के सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और समाज में एक नई मिसाल कायम करने की कोशिश करनी चाहिए।