हाथरस। जिला कृषि रक्षा अधिकारी राजेश कुमार ने जनपद के किसानों को सलाह दी है कि परम्परागत कृषि विधियों यथा-कतार में बुबाई, फसल चक्र, सहफसली खेती, ग्रीष्मकालीन जुताई आदि कम लागत में गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त करने के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इनको अपनाने से जल, वायु, मृदा व पर्यावरण प्रदूषण में व्यापक कमी होती है तथा कीट रोग नियंत्रण में बहुत लाभकारी है। रबी की फसल की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई आगामी खरीफ फसल के लिये अनेक प्रकार से लाभकारी है। ग्रीष्मकालीन जुताई मानसून आने से पूर्व मई, जून महीने में की जाती है। ग्रीष्मकालीन जुताई का मुख्य उद्देश्य एवं लाभ निम्नवत हैं।
ग्रीष्मकालीन जुताई करने से मृदा की संरचना में सुधार होता है। जिससे मृदा की जलधारण क्षमता बढती है जो फसलों के लिये अत्यन्त उपयोगी होती है। खेत की कठोर परत को तोड कर मृदा को जडों के विकास के लिये अनुकूल बनाने हेतु ग्रीष्मकालीन जुताई अत्यधिक लाभकारी है। खेत में उगे हुये खरपतवार एवं फसल अवशेष मिटटी में दबकर सड जाते हैं तथा जैविक खाद में परिवर्तित हो जाते हैं। जिससे मृदा में जीवांश की मात्रा बढती है। मृदा के अन्दर छिपे हुये हानिकारक कीढे, मकोडे, उनके अण्डे, लार्वा, प्यूपा एवं खरपतवारों के बीज गहरी जुताई के बाद सूर्य की तेज किरणों के सीधे सम्पर्क में आनें से नष्ट हो जाते हैं। जिससे फसलों पर कीटनाशकों एवं खरपतवारनाशी रसायनांे का कम उपयोग करना पडता है। गर्मी की गहरी जुताई के उपरान्त मृदा में पाये जाने वाले हानिकारक जीवाणु, कवक, निमेटोड एवं अन्य हानिकारक सक्ष्म जीव मर जाते हैं जो फसलों में मृदा जनित रोग के प्रमुख कारक होते हैं। निमेटोड का नियंत्रण करने हेतु कीटनाशकों का प्रयोग खर्चीला होता है। परन्तु ग्रीष्म कालीन जुताई से इनका नियंत्रण बिना किसी अतिरिक्त लागत के हो जाता है। मृदा में वायु संचार बढ जाता है जो कि लाभकारी सूक्ष्म जीेवों के वृद्वि एवं विकास में सहायक होता है। जिससे फसलों के गुणवत्तापूर्ण उत्पादन में लाभ मिलता है। मृदा में वायु संचार बढने से खरपतवारनाशी एवं कीटनाशी रसायनों के विषाक्त अवशेष एवं पूर्व फसल की जडों द्वारा छोडे गये हानिकारक रसायनों के अपघटन में सहायक होती है।