⇒नौ प्रमुख परिक्रमा मार्गों के सौंदर्यीकरण पर दिया जा रहा जोर
पर्यटकों की सुविधाओं के लिए डीएम ने दिये निर्देश
मथुराः श्याम बिहारी भार्गव। इस साल लौंद का महीना है। अधिक मास में लाखों की संख्या में ब्रज चौरासी कोसी परिक्रमा करने के लिए देश के कौने कौने से परिक्रमार्थी आते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित कामेश्वर नाथ चतुर्वेदी के मुताबिक वर्ष 2023 में 18 जुलाई से 16 अगस्त तक अधिक मास पड रहा है। अधिक मास को ब्रज में लौंद का महीना कहते हैं। यह श्रावण मास भी होगा, इस लिहाज से अधिक मास में इस बार चौरासी कोस की परिक्रमा लगाने के लिए आने वालों की संख्या कुछ ज्यादा रह सकती है। इसी क्रम में प्रमुख परिक्रमा मार्गों पर सुविधाओं के संबंध में जिलाधिकारी पुलकित खरे ने नौ प्रमुख परिक्रमा मार्गों के सौंदर्यीकरण एवं पर्यटकों की सुविधाओं के लिए विभिन्न निर्देश दिये। चौरासी कोस परिक्रमा के अलावा मथुरा, गोवर्धन, बरसाना, गोकुल, वृन्दावन, कोकिलावन, नंदगांव एवं बल्देव परिक्रमा मार्गों के संबंध में बैठक संपन्न हुई, जिसमें जिलाधिकारी ने निर्देश दिये कि सभी परिक्रमा मार्गों का निरीक्षण संबंधित उप जिलाधिकारी, खण्ड विकास अधिकारी, अधिशासी अधिकारी, नगर निगम के अधिकारी, ग्राम पंचायत सचिव अपने अपने क्षेत्रों में भ्रमण कर आवश्यक कार्यवाही करना सुनिश्चित करें। श्री खरे ने परिक्रमा मार्ग की मरम्मत, स्ट्रीट लाइट, पेयजल, अतिक्रमण, साफ सफाई, कुण्डों का जीणोंद्वार, प्रमुख मन्दिरों पर साफ सफाई आदि के निर्देश दिये। उन्होंने पर्यटन अधिकारी को निर्देश दिये कि परिक्रमा मार्गों पर आने वाले अच्छे होटलों की सूची तैयार की जाए, जिससे जनहित में प्रकाशित कराकर श्रद्धालुओं की सुविधाओं हेतु दी जा सके। उन्होंने दिशा सूचक चिन्ह लगाने के निर्देश दिये तथा जगह जगह पर बैठक के लिए बेंच लगवाने के निर्देश दिये। परिक्रमा मार्गों को पॉलीथिन मुक्त करने तथा उचित दूरी पर डस्टबिन लगाने के निर्देश दिये। उन्होंने पर्यटक मित्रों के संगठन को परिक्रमा मार्गों की विभिन्न समितियों के साथ बैठक कराते हुए उन्हें परिक्रमार्थियों की सहायता करने के निर्देश दिये। श्रावण मास में हर साल बड़ी संख्या में चौरासी कोस की श्रद्धालु परिक्रमा करते हैं। पूरे महीने ब्रज चौरासी कोसी परिक्रमा मार्ग श्रद्धालुओं की मानव श्रृंखला बनी रहती है। स्थानीय स्तर पर परिक्रमा मार्ग में पडने वाले गांवों के ग्रामीण सेवा भाव से श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था करते रहे हैं। यहां तक कि ग्रामीण घरों में इनके रहने और खाने के इंतजाम करते हैं। कुछ वर्षों से भण्डारों का चलन चल निकला है।