⇒समाज और साहित्य को जोड़ने वाले आयोजन जरूरी – प्रो अरुण चतुर्वेदी
चित्तौड़गढ़। राष्ट्रीय आंदोलन को समग्रता में देखे जाने की जरूरत है जिसने स्वतन्त्रता के साथ सामाजिक संघर्ष भी किया। आज हम एक नाजुक दौर में हैं जहां बहुत सी पहचानों को मिटाने का काम हो रहा है। सुप्रसिद्ध समाज विज्ञानी प्रो अरुण चतुर्वेदी ने महाराणा प्रताप राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्याल में आयोजित स्वतन्त्रता सेनानी रामचन्द्र नन्दवाना स्मृति सम्मान समारोह में कहा कि आज इतिहास लेखन के मन्तव्यों और राजनैतिक निहितार्थों पर बहस है। आयोजन के मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए उन्होंने प्रो बजरंग बिहारी तिवारी की किताब को महत्त्वपूर्ण बताते हुए कहा कि दलित अवहेलनाओं का जैसा दस्तावेजीकरण होना चाहिए वह नहीं हो पाया लेकिन साहित्य के इस काम से समाज विज्ञानों को सीखना चाहिए। उन्होंने संभावना संस्थान के इस आयोजन को यादगार बताते हुए कहा ऐसी वार्ताएं जो समाज और साहित्य को जोड़ती हैं, होती रहनी चाहिए।इससे पहले वर्ष 2020 के श्स्वतन्त्रता सेनानी रामचन्द्र नन्दवाना स्मृति सम्मानश् के लिए सुधीर विद्यार्थी को सम्मानित किया गया। उन्हें प्रो चतुर्वेदी ने शाल, सत्यनारायण नन्दवाना ने माल्यार्पण और रेखा सरकार ने सम्मान राशि ग्यारह हजार रूपये प्रदान कर अभिनन्दन किया। अपने सम्मान को स्वीकार करते हुए विद्यार्थी ने इतिहास और समाज से स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति के विलोपित होते जाने पर क्षोभ व्यक्त किया। उन्होंने अपनी पुस्तक के कुछ प्रसंगों की चर्चा करते हुए अशफ़ाक उल्लाह खान और पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के सम्बन्धों को याद किया और बताया कि यह क्रांतिकारी आंदोलन की एकता और हार्दिकता का सम्बंध है जो भविष्योन्मुखी भी है। विद्यार्थी ने कहा कि यह सम्मान मेरी कृति का नहीं उन क्रांतिकारी स्वतन्त्रता सेनानियों का सम्मान है जिनका उल्लेख इस कृति में हैं। उन्होंने मेवाड़ में जन्मे महान क्रांतिकारी प्रताप सिंह बारहठ की गाथा भी सुनाई और बरेली जेल तथा शहर में मौजूद उनकी स्मृतियों को ताजा किया। अंत में उन्होंने कहा कि मैं इतिहास लेखक नहीं हूँ बस क्रांतिकारियों के निकट बैठकर उनकी आंखों की नमी को देखते हुए कुछ लिपिबध्द करता रहा हूँ। विधाओं का अतिक्रमण करने में मुझे सुख मिलता है तभी मेरी पुस्तकें न इतिहास हैं,न डायरी, न संस्मरण और न रिपोर्ताज़ लेकिन कुछ कुछ सभी हैं।
आयोजन के दूसरे भाग में प्रो बजरंग बिहारी तिवारी को वर्ष 2021 के लिए सम्मानित किया गया। उन्हें प्रो चतुर्वेदी ने शाल, डॉ अखिलेश चाष्टा ने माल्यार्पण और कवि अब्दुल जब्बार ने सम्मान राशि ग्यारह हजार रूपये प्रदान कर अभिनन्दन किया। सम्मान के बाद प्रो तिवारी ने अपने वक्तव्य में कहा कि मनुष्य को गुलामी से मुक्ति तब मिलेगी जब वह गुलामी के रेशे को पहचानना सीख जाएगा। उन्होंने दलित लेखन के तीन बड़े गुण अनुभव, आक्रोश और अधिकार बोध बताते हुए कहा कि मेरा काम संवादी होने का है। उन्होंने कहा कि मेरी कोशिश है कि पूरे भारत के अलग अलग हिस्सों में हो रहे आन्दोलनों को दर्ज करते हुए भारतीय साहित्य के विकास को देख सकूं। प्रो तिवारी ने अपनी पुस्तक के संदर्भ में विवेकानन्द की त्रावणकोर यात्रा का जिक्र किया जिन्होंने वहां के दलित उत्पीड़न को समाप्त करने के लिए लोगों को प्रेरित किया। अंत में तिवारी ने द्विवेदी युग और भारतेन्दु युग के कुछ रचनाकारों के कवित्त सुनाते हुए अभिव्यक्ति की आज़ादी के संकटों की तरफ सभा का ध्यान खींचा।
समारोह में दोनों लेखकों का प्रशस्ति पाठ क्रमशः लक्ष्मण व्यास और प्रो सुरेश चन्द्र राजोरा ने किया। संभावना के अध्यक्ष डॉ के सी शर्मा ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि मेवाड़ और भारत की भूमि आंदोलनधर्मी रही है। महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो गौतम कूकड़ा ने कहा कि यह उच्च शिक्षा जगत के लिए गौरवपूर्ण है कि विषयों के विद्वानों को साक्षात् सुनें और मार्गदर्शन प्राप्त करें। आयोजन में कवि रमेश मयंक, डॉ भगवान साहू, विद्यार्थी अभिषेक ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कवि नंदकिशोर निर्झर, पूर्व प्राचार्य डॉ कमल नाहर, डॉ राजेंद्र सिंघवी, देवाराम, डॉ निर्मल देसाई, डॉ के एस कंग, डॉ लोकेन्द्र सिंह चुण्डावत, संस्कृतिकर्मी गुरविंदर सिंह, संतोष कुमार शर्मा, अध्यापक विकास अग्रवाल, अपनी माटी के सम्पादक माणिक, शिवशंकर नंदवाना, मनोज जोशी, सुनीता शर्मा, निर्मला शर्मा, सुषमा लोठ सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी और विद्यार्थी उपस्थित थे। संयोजन डॉ कनक जैन ने किया और अंत में नन्दवाना के दोहित्र डॉ पल्लव ने आभार व्यक्त किया।