Wednesday, April 23, 2025
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लेख/विचार

जिंदगी के नियम भी कबड्डी के खेल जैसे हैं – सफलता की लाइन टच करते ही लोग आपके पैर खींचने लग जाते हैं

श्रेष्ठतम सफलता, कांटो का ताज – हिम्मत, हौसला और जज़्बा रूपी मंत्रों का प्रयोग जरूरी – एड किशन भावनानी
किसी ने ठीक ही कहा है कि “तू अपनी खूबियां ढूंढ,कमियां निकालने के लिए लोग हैं”। “अगर रखना ही है कदम तो आगे रख, पीछे खींचने के लिए लोग हैं”, वाह क्या बात है!!!…साथियों हमारे बड़े बुजुर्गों की जो कहावतें हैं, वह आदिलोक आदिकाल की हैं, परंतु हम आज के युग में भी और अपनी अगली पीढ़ियों में भीदेखेंगे तो यह बिल्कुल फिट बैठती है। बड़े बुजुर्गों के एक-एक शब्द हीरे मोती के तुल्य हैं, बस पहचानने वाले जौहरी वाली नजर की जरूरत है।

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आज की पीढ़ी और माँ बाप

कुछ घरों में माँ बाप के हालात देखकर आँखें भर आती है। नये ज़माने के बच्चों की दुनिया में क्यूँ समा नहीं सकते माँ-बाप जब ये बच्चें बड़े हो जाते है। क्यूँ वो बच्चें इतने ज़्यादा समझदार हो जाते है जब माँ-बाप बूढ़े हो जाते है। माँ-बाप दो मिलकर दो तीन बच्चों को लाड़ से पालते है पर दो तीन बच्चें मिलकर माँ बाप को ढंग से रख नहीं सकते।
माना की एक पीढ़ी का अंतर हो जाता है माँ बाप और बच्चों की सोच के बीच। पर जिनको अपने पैरों पर चलना सिखाया वही बच्चें बोलते है की आपको कुछ पता नहीं, आप नहीं समझेंगे या आपको कुछ आता नहीं ये कहाँ के संस्कार है।

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वह कोठे वाली जो ठहरी

“फूलों को कहाँ शौक़ बर्बादी का, भंवरों की फ़ितरत है चूसने वाली”
रुह उसकी छटपटाती पड़ी है खुद के वजूद को समेटे खामोशी ओढ़े एक गंदी नाली के कीड़े सी, आस-पास भूखे भेड़िए रेंगते है तन पिपासा की लालसा लिये। कहाँ शौक़ उसे कोठे वाली कहलाने का, पेट की आग के आगे परवश हो कर बिछ जाता है तन वहसिओं का बिछौना बनकर, उसके मन की पाक भूमि को कचोटती है ये क्रिया। किसको परवाह की दो बोल से नवाज़े शब्दों में पिरोकर हमदर्दी।
भाता है उसे खुद को पहने रहना क्यूँ कोई उसके अहसास को ओढ़े। दिन में नफ़रत भरी नज़रों के नज़रिये से तौलने वाले रात की रंगीनीयों में पैसों का ढ़ेर लगाते है। पी कर उसके हाथों से जाम ज़हर आँखों से घोलते है। कोई तो देह से परे उसकी पाक रुह को छूता जो पड़ी है अनछूई नीर सी निर्मल।
जो जीना चाहती है एक उजली ज़िस्त

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तीसरी लहर के भयावह रूप को न्योता देती लापरवाही चिंता बढ़ाते कोरोना के टूटते नियम

दुनियाभर में लाखों लोगों की जान ले चुकी कोरोना महामारी से जंग जीतने में इजरायल स्वयं को कोविड मुक्त घोषित करने वाला दुनिया का पहला ऐसा देश बन चुका है, जहां 70 फीसदी से ज्यादा आबादी का वैक्सीनेशन किए जाने के बाद सरकार द्वारा फेस मास्क लगाने के अनिवार्य नियम को हटा दिया गया है। इसके अलावा केवल दो सप्ताह में ही 90 फीसदी से भी ज्यादा व्यस्क आबादी का वैक्सीनेशन करने वाला भूटान, कड़े निर्णयों की बदौलत न्यूजीलैंड, ज्यादातर आबादी का वैक्सीनेशन होने के कारण चीन तथा पूर्ण रूप से वैक्सीनेशन होने के पश्चात् अमेरिका में भी कई जगह मास्क फ्री हो गई हैं। अमेरिका में तो सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन द्वारा घोषणा भी की जा चुकी है कि जो लोग पूरी तरह से कोविड वैक्सीन लगवा चुके हैं, उन्हें अब अकेले चलते समय, दौड़ते, लंबी पैदल यात्रा या बाइक चलाते समय बाहर मास्क पहनने की आवश्यकता नहीं है।

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हमारा गुस्सा और क्रोध हमारे जीवन की सभी समस्याओं की वजह में से एक है

हर बात और स्थिति को अत्यंत सहजता में लेना ही गुस्से और क्रोध पर नियंत्रण का मूल मंत्र हैं – एड किशन भावनानी
आज के युग में हर व्यक्ति को जीवन के किसी न किसी पड़ाव में विपरीत परिस्थितियों का निर्माण होने के कारणों में कहीं ना कहीं एक कारण उसका गुस्सा या क्रोध भी होगा। अगर हम अत्यंत संवेदनशीलता और गहनता से उत्पन्न हुई उन परिस्थितियों की गहनता से जांच करेंगे तो हमें जरूर यह कारण महसूस होगा। गुस्से और क्रोध का वह छोटा सा पल ऐसी अनेकों विकराल स्थितियों और परिस्थितियों को पैदा कर देता है, जिसकी हमें उम्मीद भी नहीं रहती और फिर बड़े बुजुर्ग लोग कहते हैं ना कि, जब चिड़िया चुग गई खेत अब पछतावे का होए। बस हमें उस गुस्से क्रोध के उस पल को काबू में रखने के मंत्र सीखने होंगे जो कि आसान है।

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कुछ यूँ होगा उत्तम स्वास्थ्य तथा खुशहाली का सबब

जैसा कि हम सभी जानते हैं, हमारा देश 2030 के भारत(#SDG2030, #SustainableDevelopmentGoals2030) की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। जिसके अंतर्गत भारत सरकार द्वारा सभी 17 लक्ष्यों को हासिल किया जाना तय है। दरअसल इन लक्ष्यों के अंतर्गत ऐसे विषयों का समागम किया गया है। जिनकी कमी लिए हमारा देश लम्बे समय से गुजर.बसर कर रहा है। इन महत्वपूर्ण विषयों में से एक है उत्तम स्वास्थ्य तथा खुशहालीए जो कहीं न कहीं हमारे स्वस्थ जीवन को लेकर बेहद महत्वपूर्ण लक्ष्य है। भारत सरकार की इस बेमिसाल पहल का सबब यह है कि जनता का सहयोग इसमें प्रखर है। सिर्फ और सिर्फ सरकार द्वारा की जाने वाली तमाम कोशिशें तब तक निरर्थक हैं। जब तक जनता इसमें मजबूती से सहयोग न करे। इसलिए इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए देश को सख्त नियम तथा कानून बनाने होंगे और साथ ही इनका सख्ती से पालन भी करना होगा।

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सोशल मीडिया से पता चल जाता है आदमी की मानसिकता का

अभी जल्दी की एक सच्ची घटना है। एक युवक ने नौकरी के लिए इंटरव्यू दिया था। वह पहले से ही रैंकर था। इंटरव्यू भी उसका सब से अच्छा हुआ था। इंटरव्यू में उससे जितने भी सवाल पूछे गए थे, उसने लगभग सभी सवालों के सही जवाब दिए थे। इम्प्रेशन भी उसने अच्छा जमाया था। सब कुछ बढ़िया होने के बावजूद उसे नौकरी के लिए सिलेक्ट नहीं किया गया। उस युवक ने अपने सोर्स से पता किया कि सब कुछ बढ़िया होने के बावजूद उसे नौकरी पर क्यों नहीं रखा गया? पता चला कि वह युवक सोशल मीडिया पर बिंदास फोटो डालता था और मन में जो आता था, वह लिख देता था। उससे कहा गया कि सोशल मीडिया पर आप जो कारनामा कर रहे हैं, उसकी वजह से आप को नौकरी मिली है।

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खास दिनों का महत्व

मातृदिवस, पिता दिवस या फिर वैलेन्टाइन दिवस या बहुत सारे खास दिवस मनाने पर कई सारे लोगों को ऐतराज़ होता है। उनको ये सब पाश्चात्य संस्कृति या चोंचले लगते है। और कई लोगों का मानना होता है की एक दिवस काफ़ी नहीं होता, माता-पिता या किसी के भी लिए यूँ शब्दों के ज़रिए, कार्ड देकर या पोस्ट डालकर जता देना। क्यूँकि उनका अहसान या ऋण एक दिन प्यार जता कर और संवेदना जता कर नहीं उतार सकते।
कई सारे लोगों को वेलेंटाइन डे मनाने पर भी ऐतराज़ होता है, क्यूँ भई क्या गलत है इसमें? आशिक महबूब के प्रति या पति-पत्नी एक दूसरे के प्रति अगर उस दिन अपनी चाहत का इज़हार करते है तो इसमें बुराई क्या है? क्या हम हर रोज़ दिन में पचास बार एक दूसरे को बोलते है आई लव यू? इस एक दिन भावों को प्रदर्शित करना बंधन को और मजबूत बनाता है। या जो हम प्रेक्टिकली कर नहीं सकते, या कह नहीं सकते उसे लिखकर, फूल देकर या चॉकलेट देकर जता लेते है तो ये एक दिन तो बहुत ही खास होना चाहिए न।

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दुनिया को भारत की सौगात, एम-योगा ऐप से अलग-अलग भाषाओं में होगा योग का प्रसार

सातवें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2021 की थीम, मानव तंदुरुस्ती और कल्याण के लिए योग – भारत के लिए सौभाग्य की बात – एड किशन भावनानी
वैश्विक महामारी कोविड-19 के बीच 21 जून 2021 को योग दिवस को पूरे विश्व में बहुत उत्तेजना, उत्साह खुशी और एक स्वास्थ्य डोज़ के रूप में मनाकर दिखा दिया कि स्वस्थ्य जीवन के लिए योग का कितना महत्व है। भारत के पीएम ने भी कहाहै कि वैश्विक महामारी के दौरान दुनिया के लिए, योग एक उम्मीद की किरण और इस मुश्किल समय में आत्मबल का स्त्रोत बना रहा और योग हमें तनाव से शक्ति का और नकारात्मकता से रचनात्मकता का रास्ता दिखाता है। चिकित्सा विज्ञान जितना उपचार पर ध्यान केन्द्रित करता है, उतना व्यक्ति को निरोगी बनाने पर भी करता है और योग ने लोगों को स्वस्थ बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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पिता के लिए चंद शब्द

आज कल फैशन बन गया है खास दिवस मनाने का तो 20 जून को पिता दिवस भी खूब मनाया जाएगा, बहुत कुछ लिखा जाएगा पर पिता वो शख़्सीयत है जिसको शब्दों में ढ़ालना मुमकिन ही नहीं। एक दिन पर्याप्त नहीं पिता के प्रति भावना जताने के लिए, प्रतिदिन पैर धोकर पिएं फिर भी ॠण न चुका पाएंगे पिता का।
शब्द घट उपकरण है भावों को प्रदर्शित करने का पर कभी-कभी उपकरण पर्याप्त नहीं होते भावनाओं को पूर्णतः दर्शाने के लिए, किसी भी बच्चे की औकात ही नहीं पिता को शब्दों में ढ़ालने की, माँ धुरी है पर पिता नींव है जिसके काँधे पर इमारत खड़ी है पूरे परिवार की। महसूस किया है कभी पिता के गीले गिलाफ़ को किसी ने ?

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